Faridabad: ऐतिहासिक है सूरजकुंड झील, सूर्य को श्रद्धांजलि देने के लिए 10वीं सदी में हुआ निर्माण, जानें रोचक तथ्य

Faridabad: सूरजकुंड आज भले ही अपने हस्तशिल्प मेले के लिए प्रसिद्ध हो, लेकिन इसका इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रहा है। सूरजकुंड 10 सदी से यहां के लोगों के पेयजल जरूरतों को पूरा करता आ रहा है। इस कुंड का निर्माण 10वीं सदी में तोमर कुल ने किया था। इस कुंड का उपयोग ब्रिटिश काल तक प्रमुख जलस्रोत के रूप में किया जाता रहा।

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हस्तशिल्प मेला ही नहीं, अपने इतिहास के लिए भी जाना जाता है सूरजकुंड

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
1. सूरजकुंड का निर्माण तोमर कुल ने 10वीं सदी में कराया 2. यह कुंड सूरज को समर्पित, देखने पर प्रतित होता उगता सूरज 3. ब्रिटिश काल तक यह कुंड बना रहा क्षेत्र के लिए प्रमुख जलस्रोत

Faridabad: फरीदाबाद के सूरजकुंड का नाम सुनते ही सामने प्रसिद्ध हस्तशिल्प मेले का रंगीन सा दृश्य उभर आता है। आज के समय में यह जगह इस मेले के कारण ही पूरे देश में प्रसिद्ध है। बहुत कम लोग हैं, जिन्हें पता है कि इस जगह के साथ कई सदियों का इतिहास जुड़ा है। आज हम आपको इसी इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। जिस जगह पर यह प्रसिद्ध मेला लगता है, उसके ठीक पीछे सभागार जैसा एक बड़ा सा कुंड जलाशय बना है। करीब 6 एकड़ में फैले इस कुंड की चौड़ाई 130 मीटर है। इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके पूरे ढांचे को मिलाकर यह जलाशय कितना व्यापक है।

इतिहासकारों के अनुसार इस कुंड का निर्माण सूर्य को श्रद्धांजलि देने हेतु किया गया था। जिसके कारण ही कुंड के पूर्वी दिशा में ढलान बना हुआ है। अगर इस कुंड को दूर से देखा जाए तो यह उगते हुए सूर्य सा प्रतीत होता है। पहली बार इस सूरजकुंड को देखने पर खुले में चलने वाले किसी रोमन सभागार जैसा लगेगा। जहां पर चारों ओर पत्थरों की बड़ी-बड़ी सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों के बीचोबीच एक बड़ा सा खुला मैदान है। इस जलाशय के तरफ एक मंच जैसी संरचना बनाई गई है। यह मंच पुराने जमाने में राजाओं को बैठने के लिए हुआ करता था।

तोमर कुल ने 10वीं सदी में कराया था निर्माण इतिहासकारों के अनुसार इस कुंड का निर्माण तोमर कुल ने 10वी शताब्दी में कराया था। तोमर कुल के शासक सूरज पाल सूर्य उपासक हुआ करते थे, इसलिए इसका नाम सूरजकुंड रखा। इतिहास के अनुसार यह जगह पहले तोमर राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। लेकिन बाद में राजधानी को लालकोट में स्थानांतरित कर दिया गया। जिसके पीछे आज कुतुब मीनार स्थित है। सूरजकुंड वास्तव में एक सुनियोजित जलाशय है जो आस-पास के क्षेत्र की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। इस जलाशय को आगे जाकर अनंग बांध से जुड़ा गा है। यह सबकुछ इस प्रकार से बनाया गया है कि जब नदी में पानी की मात्र बढ़े तो वह इस कुंड तक पहुंच जाए।

आधुनिक इतिहास में भी सूरजकुंड का महत्व

भारत के आधुनिक इतिहास में भी सूरजकुंड का बड़ा महत्व रहा है। ब्रिटिश काल तक सूरजकुंड का प्रयोग इस क्षेत्र के प्रमुख जलस्रोत के रूप में किया जाता रहा। वहीं मध्यकाल के आरंभिक काल के दौरान दिल्ली पर शासन करने वाले तुगलक वंशज भी इस जलाशय का उपयोग करते थे। इस वंश ने कई बार इस कुंड का सुधारीकरण भी कराया।

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Kishor Joshi author

राजनीति में विशेष दिलचस्पी रखने वाले किशोर जोशी को और खेल के साथ-साथ संगीत से भी विशेष लगाव है। यह टाइम्स नाउ हिंदी डिजिटल में नेशनल डेस्क पर कार्यरत ...और देखें

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