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भारत का करेंसी सिस्टम कैसे करता है काम? जानें नोट छपाई से जुड़ा पूरा नियम

अगर आप सोच रहे हैं कि सरकार जितनी चाहे उतनी नोटें छाप सकती है और इससे तुरंत अमीर बन जाएगी, तो ये बिल्कुल गलत है। असल में नोट छापना जितना आसान दिखता है, उतना नहीं है। कई देशों ने जरूरत से ज्यादा नोटें छापने की गलती की और उसके नतीजे बहुत खतरनाक रहे अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, नोट का मूल्य मिट्टी जैसा हो गया, और आम लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए कर्जदार हो गए।

Indian Currency

भारत में 10,20, 50, 100 और 500 रुपए की नोटें चलती हैं जिनकी RBI के ऑफिस में प्रिंटिंग होती है। ऐसे में अक्सर लोगों के मन में सवाल आता है कि जब भारतीय रिजर्व बैंक के पास नोट छापने की मशीन है, तो फिर सरकार जितना चाहें उतनी नोटें क्यों नहीं छाप कर लोगों में बांट देती है जिससे देश की गरीबी भी खत्म हो जाए और सब अमीर भी बन जाएं और देश से बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी। ये बात सोचने में जितनी अच्छी लगती है उतनी ही अलग इसकी असलियत भी है।

अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि सरकार जितनी चाहें उतनी नोटें छाप सकती है तो ये बात बिलकुल गलत है। असल में नोट छापना जितना आसान दिखता है, उससे जुड़ी आर्थिक काम उतनी ही मुश्किल हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कई देशों ने ज्यादा करेंसी छापने की गलती की और परिणाम बहुत ही खतरनाक रहे हैं, अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, नोट का मूल्य मिट्टी जैसा हो गया, और लोग खाने तक के लिए कर्जदार हो। ऐसे में आइए आपको बताते हैं अगर भारत में ही नोट छपते हैं तो सरकार ज्यादा नोट छाप कर अमीर क्यों नहीं बन जाती है और करेंसी सिस्टम कैसे काम करता है ये भी जानते हैं?

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खुद नोट छापकर अमीर क्यों नहीं बन जाती सरकार

सरकार के पास नोट छापने की ताकत जरूर है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह जब चाहे उतने नोट छाप सकती है। नोट सिर्फ कागज और स्याही का टुकड़ा नहीं है, इसकी कीमत इसलिए है क्योंकि सरकार इसे वैध और भरोसेमंद मानती है। अगर सरकार अचानक हर नागरिक को करोड़ों रुपये दे दे, तो चीजों की कीमतें अचानक बढ़ जाएंगी और महंगाई बेकाबू हो जाएगी। इसे कहते हैं आर्थिक संतुलन का बिगड़ना।

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करेंसी सिस्टम कैसे काम करता है?

किसी देश की करेंसी की वैल्यू उसके उत्पाद और सेवाओं यानी GDP पर निर्भर करती है। सरकार आमतौर पर जितने नोट छापती है, वह देश की GDP के 1-2 प्रतिशत के बराबर होता है ताकि बाजार में पैसे और सामान का संतुलन बना रहे। अगर नोट जरूरत से ज्यादा छाप दिए जाएं, तो महंगाई बढ़ती है, करेंसी की वैल्यू गिरती है, विदेशी निवेश घटता है और देश की सॉवरेन रेटिंग यानी क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसीलिए नोट छापने में सिर्फ शक्ति नहीं, बल्कि सोच-समझ और संतुलन भी जरूरी है।

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रिचा त्रिपाठी
रिचा त्रिपाठी Author

लखनऊ शहर से आने वाली रिचा त्रिपाठी ने नोएडा में अपनी अलग पहचान बनाई है। रिचा त्रिपाठी टाइम्स नाउ नवभारत में सीनियर कॉपी एडीटर हैं। रिचा 7 साल से मीडि... और देखें

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