Akashdeep Test Debut: कांटों भरा रहा है आकाशदीप का बिहार से निकलकर टेस्ट क्रिकेटर बनने तक का सफर

भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले 313वें खिलाड़ी बने बिहार के रोहतास जिले के आकाशदीप का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। पिता और बड़े भाई के देहांत के बाद भी नहीं मानी हार और टेस्ट क्रिकेटर बनने का अपना सपना पूरा कर दिखाया।

Akash Deep

आकाशदीप (साभार BCCI)

तस्वीर साभार : भाषा

रांची: इंग्लैंड के खिलाफ शुक्रवार को यहां चौथे टेस्ट में पदार्पण करने वाले आकाशदीप की मां लाडुमा देवी अपने बेटे को पदार्पण ‘कैप’ मिलते देखकर भावुक हो गयी जिससे उनकी आंखों में आंसू के साथ गर्व भी देखा जा सकता था। जब गुरुवार को आकाशदीप ने अपनी मां को फोन कर कहा,'मां, मैं कल भारत के लिए टेस्ट पदार्पण करना होगा और तुम्हें आना होगा।’ तो वह कुछ घंटों में 300 किमी की यात्रा करते हुए बिहार के रोहतास जिले के बड्डी गांव से रांची के जेएससीए स्टेडियम पहुंच गयीं। उनके साथ आकाशदीप की दो भतीजी और उनका चचेरा भाई बैभव कुमार भी मौजूद थे।

बेटे आकाश पर है मां को गर्व

तेज गेंदबाज आकाशदीप ने पहली ही घंटे में इंग्लैंड के शीर्ष क्रम के तीन बल्लेबाजों को पवेलियन पहुंचाकर अपने पहले ही मैच में प्रभावित किया, इससे लंच तक मेहमान टीम का स्कोर पांच विकेट पर 112 रन था। बेटे के प्रदर्शन पर फक्र महसूस कर रहीं उनकी मां ने पीटीआई से कहा,'उसके पिता हमेशा उसे सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे लेकिन क्रिकेट उसका जुनून था और मैं उसका हमेशा साथ दिया। मैं उसे छुपकर क्रिकेट खेलने भेज देती थी। उस समय अगर कोई सुनता कि तुम्हारा बेटा क्रिकेट खेल रहा है तो वे कहते, ये तो आवारा मवाली ही बनेगा। लेकिन हमें उस पर पूरा भरोसा था और छह महीने के अंदर मेरे मालिक (पति) और बेटे के निधन के बावजूद हमने हार नहीं मानी क्योंकि हमें आकाशदीप पर भरोसा था।'

पिता और भाई का हो चुका है निधन

आकाशदीप के पिता रामजी सिंह सरकारी हाई स्कूल में ‘फिजिकल एजुकेशन’ शिक्षक थे और वह कभी भी अपने बेटे को क्रिकेटर नहीं बनाना चाहते थे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें लकवा मार गया और पांच साल तक बिस्तर पर रहे। उन्होंने फरवरी 2015 में अंतिम सांस ली। इसी साल अक्टूबर में आकाशदीप के बड़े भाई धीरज का निधन हो गया। इसके बाद अब बड़े भाई की पत्नी और उनकी दो बेटियों की जिम्मेदारी भी उनके ही ऊपर थी। लाडुमा देवी की आंखों से आंसू बह रहे थे, उन्होंने कहा,'अगर उसके पिता और भाई जीवित होते तो वे आज खुशी से फूले नहीं समाते। यह जिंदगी का सबसे यादगार दिन है। मुझे बेटे पर फक्र है।'

मां ने कहा बदल गई है पुरानी कहावत

उन्होंने कहा, 'सब बोलते हैं, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे, कूदोगे बनोगे खराब। ये तो उल्टा हो गया।' पूरा परिवार पिता की मासिक पेंशन पर निर्भर था तो आकाशदीप ने क्रिकेट के जुनून को छोड़कर कमाई का साधन जुटाने पर ध्यान लगाना शुरू किया। वह छह भाई बहनों में सबसे छोटे हैं जिसमें तीन बहन बड़ी हैं। पहले आकाशदीप ने धीरज के निधन के बाद डंपर किराये पर लेकर बिहार-झारखंड सीमा पर सोन नदी से रेत बेचने का बिजनेस शुरू किया। तब वह टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते थे और उन्हें अपने क्रिकेट के सपने को साकार करने के लिए मदद की जरूरत थी। उनके चचेरे भाई बैभव ने ‘लेदर बॉल’ क्रिकेट में कोचिंग दिलाने में मदद की।

चचेरे भाई ने की क्रिकेटर बनने में मदद

बैभव ने कहा,'उसकी प्रतिभा को देखकर मैं उसे दुर्गापुर ले गया जहां उसका पासपोर्ट बनवाया और वह दुबई में टूर्नामेंट खेलने गया।' फिर बेहतर मौके खोजने के लिए दोनों कोलकाता पहुंचे और केस्तोपुर में किराये के फ्लैट में रहने लगे। लेकिन जिंदगी आसान नहीं थी क्योंकि आकाशदीप को तीन क्ल्ब यूनाईटेड सीसी, वाईएमसीए और कालीघाट ने खारिज कर दिया। बैभव ने कहा,'उन्होंने एक और साल इंतजार करो। मुझे लगा वह वापस चला जायेगा। लेकिन यूसीसी ने उसे एक दिन बुलाया और कहा कि वे किसी भी भुगतान के बिना उसे खिलायेंगे।' आकाशदीप ने अपने पहले ही सत्र में कोलकाता मैदान (2017-18) में 42 विकेट झटक लिये। फिर उन्हें सीके नायडू ट्रॉफी में बंगाल के लिए खेलने का मौका मिला जिसने उस साल खिताब जीता।

आईपीएल करार के बाद सुधरी परिवार की हालत

उन्हें इंडियन प्रीमियर लीग में राजस्थान रॉयल्स के लिए बतौर नेट गेंदबाज चुना गया और अंत में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर ने उनसे करार किया। आईपीएल अनुबंध मिलने के बाद परिवार की आर्थिक हालात सुधरने लगे और उनका तीन मंजिला मकान अभी बन रहा है जिसे बनवाने में उनकी मां व्यस्त थी जब आकाशदीप ने उन्हें टेस्ट पदार्पण की खबर देने के लिए फोन किया था।

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