Sant Ravidas Ji Ke Dohe: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' यहां देखें संत रविदास जी के प्रसिद्ध दोहे

Sant Ravidas Ji Ke Dohe: संत रविदास जी 15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि, समाज-सुधारक, दर्शनशास्त्री और ईश्वर के अनुयायी थी। हर साल माघी पूर्णिमा के दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। गुरु रविदास जी की जयंती के शुभ अवसर पर देखें इनके प्रसिद्ध दोहे।

Sant Ravidas Ji Ke Dohe

Sant Ravidas Ji Ke Dohe

Sant Ravidas Ji Ke Dohe: “मन चंगा तो कठौती में गंगा” संत रविदास का यह एक लोकप्रिय दोहा है। जिसका अर्थ है कि अगर व्यक्ति का मन शुद्ध तो उसका हर कार्य गंगा के समान पवित्र है। संत रविदास जी ने अपने लेखन के जरिए कई प्रकार के आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। इनके प्रसिद्ध दोहे जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। कहते हैं कि जो कोई भी रविदास जी के दोहों में दी गई सीख को अपनाता है उसके जीवन की तमाम मुश्किलें दूर हो जाती हैं। यहां देखें संत रविदास जी के दोहे।

संत रविदास जी की दोहे (Sant Ravidas Ji Ke Dohe)

1. ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,

पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

इस दोहे का अर्थ है किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह ऊंचे कुल में जन्मा है। यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजा जाना चाहिए। बल्कि उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह किसी भी जाति से हो।

2. कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै

तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै

इसका अर्थ है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। यदि व्यक्ति में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन निश्चित ही सफल होता है। ठीक वैसे जैसे एक बड़े शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है।

3. मन चंगा तो कठौती में गंगा

इस दोहे का अर्थ है कि जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती में भी आ जाती हैं।

4. करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस

कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

इस दोहे का अर्थ है कि व्यक्ति को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोड़नी चाहिए, क्‍योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना सौभाग्य।

5. मन ही पूजा मन ही धूप,

मन ही सेऊं सहज स्वरूप

इस दोहे का अर्थ है कि निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, या कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है। ऐसे मन में ही ईश्वर वास करते हैं।

6. जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास

प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास

इस दोहे का अर्थ है कि जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिसके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में किसी की दोबारा से उत्पत्ति हुई हो।

7. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

इसका अर्थ है कि राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।

8. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस

ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास

इस दोहे का अर्थ है कि हीरे से बहुमूल्य हैं हरि। जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य किसी चीज की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है।

9. रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच

नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

इस दोहे का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है।

10. जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

इस दोहे का अर्थ है जिस प्रकार केले के तने को छीलने पर पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ भी नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति हमेशा बनी रहती है।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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