Exclusive: पिता की एक सीख ने बदल दी थी इस संगीतकार की जिंदगी, जानिए कैसे प्रसिद्ध बांसुरी वादक के रूप में उभरे पद्म श्री रोणू मजूमदार

Ronu Majumdar Padma Shri Award: भारत कलाकारों का देश माना जाता है। बांसुरी, जो क‍ि एक ऐसा लोक वाद्य है जिसकी धुन सभी का मन मोह लेती है। भारतीय संगीतकारों की श्रृंखला में एक नाम ऐसे बांसुरी वादक का आता है जिन्होंने विश्व मंच पर कई बार अपनी मुरली की तान से भारतीय संगीत को गौर्वांगित किया है। हम बात कर रहे हैं पद्म श्री रोणू मजूमदार की। हमसे एक खास मुलाकात में उन्‍होंने अपनी संगीत यात्रा के बारे में दिल खोलकर बात की।

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पद्म श्री रोणू मजूमदार

Ronu Majumdar Padma Shri Award: वैसे तो कई संगीतकारों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के नाम को रोशन करने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है, लेकिन बांसुरी वादक रोणू मजूमदार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कैनवास पर अपनी बांसुरी की धुन से कुछ अलग ही रंग बिखेरे हैं। रोणू मजूमदार ने पंडित रवि शंकर जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ Passages और Chants of India जैसे एल्बमों में अपना सहयोग दिया है। 30 से अधिक ऑडियो रिलीज के साथ, उन्हें 1999 में संगीत और संस्कृति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2001 में सहारा इंडिया परिवार के द्वारा इन्हें आजीवन उपलब्धि पुरस्कार(Life Time Achievement) से सम्मानित किया गया। 2014 में, इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 26 जनवरी, 2025 को इन्हें भारत सरकार ने इन्हें प्रतिष्ठित पद्म श्री से सम्मानित किया है। टाइम्स नाउ नवभारत (डिजिटल) के साथ भारतीय बांसुरी वादक रोणू मजूमदार की एक खास और दिलचस्प बात-चीत हुई, जिसमें उन्होंने ने अपने बचपन, गुरुओं, करियर और जीवन यात्रा साझा की है। ये लेख इसी बात चीत पर आधारित है।

6 साल की उम्र से जुड़ा बांसुरी से साथ

रोणू मजूमदार का जन्म बनारस के सारनाथ में 22 जून 1963 को हुआ था। यहां इनका बचपन भी बीता। इनके पिता एक होम्योपैथी चिकित्सक और अपने समय के प्रसिद्ध आयल पेंटर आर्टिस्ट थे। इनके पिता को बांसुरी बजाने का शौक था। बांसुरी के साथ अपनी यात्रा को याद करते हुए रोणू कहते हैं कि जब वह छह साल के थे, तब लड़कपन में आकर मैंने अपने पिता की बांसुरी खो दी। इसके दण्ड स्वरूप पिता जी ने मुझे 6 घंटे तक बांसुरी बजाने का अभ्यास करने को कहा। बस यहीं से बांसुरी की धुन के साथ मेरे तार जुड़ गए। यही वजह है कि रोणू आज भी अपने पिता को पहला गुरु मानकर पूजते हैं।

मिला विश्व प्रसिद्ध गुरुओं का साथ

रोणू मजूमदार ने अपनी शिक्षा के बारे में बताया कि अपने पिता के बाद कई महान संगीतकारों से उन्‍होंने शिक्षा ली जिसमें भारत रत्न पंडित रवि शंकर, पंडित विजय राघव राव जैसे नाम शामिल हैं। स्वरों की शिक्षा इन्होंने पंडित लक्ष्मण प्रसाद जयपुर वाले से अर्जित की है। संगीत के इन महान धुरंधरों के साथ इन्होंने कई महफिलों में चार-चांद लगाए और विश्व स्तर पर भारतीय संगीत का नाम किया।

बॉलीवुड का सुरीला सफर

अपनी युवा अवस्था में रोणू मजूमदार अपने पिता के साथ मुंबई आ गए थे। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत रेडियो के साथ की, जहां आकाशवाणी पर ये नंबर 1 आर्टिस्ट चुने गए। रोणू बताते हैं कि रेडियो के माध्यम से इनको बॉलीवुड में एंटी मिली और सबसे पहला मौका उनको आर.डी. बर्मन ने कुमार गौरव की पहली फिल्म लव स्टोरी में तेरी याद आ रही है... गाने में दिया था। इसके बाद आर.डी. के साथ मिलकर रोणू ने 300 से अधिक गानों में अपनी बांसुरी की धुन दी है। इनका सबसे लोकप्रिय संगीत फिल्म 1942 लव स्टोरी के गीत कुछ न कहो का है।

किशोर कुमार के बारे बताते हुए रोणू भावुक और खुश एक साथ नजर आए। उन्‍होंने बताया कि उनके जैसा गायक सदी में एक ही बार जन्म लेता है। किशोर दो के बेटे अमित कुमार से भी रोणू की खास दोस्‍ती है। इसके अलावा बॉलीवुड के कई दिग्गज संगीतकारों के साथ रोणू ने काम किया है जिसमें रविंद्र जैन, खय्याम, नौशाद, ओ.पी नय्यर और आधुनिक युग में हिमेश रेशमिया जैसे नाम उल्‍लेखनीय हैं। 2022 में आई फिल्म रक्षाबंधन में इन्होने अपना संगीत दिया जिसके संगीतकार हिमेश रेशमिया थे। इन्होंने अमेरिका और न्यूजीलैंड में अपने शोज से भारतीय संगीत का नाम रोशन क‍िया है।

आज भी याद है मास्को का वो दृश्य

संगीत की भावुक यादों की बात पर रोणू मजूमदार ने 1998 का एक वाकया बताया। तब वह अपने गुरु पंडित रवि शंकर के साथ भारत सरकार की ओर से एक म्यूजिक फेस्टिवल के लिए मास्को गए थे। उन्‍होंने वहां एक विदेशी वाद्य यंत्र को इतनी खूबसूरती से बजाया कि इनके गुरु पंडित रवि शंकर गौर्वांगित हो उठे और इन्हें ढेरों आशीर्वाद दिया था। वहीं पूरा हॉल उनके लिए तालियों से गूंज रहा था। सच में किसी भी कलाकार का ऐसा सम्‍मान उसकी यादों में गर्व मिश्रित भावनाओं के साथ बसा होगा।

पुरस्कार और ग्रैमी नॉमिनेशन

रोणू मजूमदार को भारत सरकार द्वारा 2014 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार म‍िला। इनके नाम से एक ग्रैमी नॉमिनेशन भी है जिसकी जूरी में महान संतूर वादक शिव कुमार शर्मा मौजूद थे। रोणू को 1999 में संगीत और संस्कृति के प्रति अपने योगदान के लिए आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2001 में सहारा इंडिया परिवार ने इन्हें आजीवन उपलब्धि पुरस्कार(Life Time Achievement) से सम्मानित किया गया। इतने पुरस्‍कारों में के बाद उनके लिए सबसे गर्व की बात ये रही जब 2025 में उनको भारत सरकार की ओर से पद्म श्री प्रदान किए जाने की घोषणा हुई।

युवा पीढ़ी और फ्लूट फैंटसी

युवाओं को संगीत और संस्कृति से जोड़ने के लिए टाइम्स म्यूजिक ने एक एल्बम निकाली थी जिसका नाम डीजे नशा था। इसमें रोणू मजूमदार ने फ्लूट फैंटसी नाम से एक सोलो एल्बम भी किया था, जो वेस्टर्न म्यूजिक पर आधारित था। इसके 50 लाख से अधिक कैसेट 90 के दौर में बाजार में बिके थे और आज भी इसकी धुनें सीधा दिल में उतर जाती हैं।

बांसुरी का अभ्यास

युवाओं के ल‍िए रोणू मजूमदार ने कहा कि संगीत और इसके वाद्यों को बजाना एक साधना है। अपनी फ्लूट फाउंडेशन का उल्लेख करते हुए इन्होंने बताया क‍ि मेरे पास बहुत से युवा आते हैं बांसुरी सीखने के ल‍िए लेकिन कुछ ही विद्यार्थियों के अंदर सीखने की प्रतिभा होती है। आर्टिस्ट को सफलता से नहीं, अपनी कला और उसके अभ्यास से प्यार करना चाहिए और ये एक फाइन आर्ट है जिसके लिए समय और धैर्य लगता है।

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