जब मजरूह सुल्तानपुरी का ये गीत सुन भड़क गई थी नेहरू सरकार, 2 साल के लिए भेज दिया था जेल

हिंदुस्तान में एक से बढ़कर एक फनकार हुए हैं। कुछ ने अपने गीतों से लोगों के दिल जीते तो कुछ अपनी शायरी और गजलों से हमेशा के लिए अमर हो गए। 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के मुस्लिम राजपूत परिवार में एक बालक पैदा हुआ। आगे चलकर यब बालक मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से मशहूर हुआ।

Majrooh Sultanpuri vs Jawahar Lal Nehru

Kunal Kamra Controversy: जब मजरूह सुल्तानपुरी का गीत सुन भड़ गए थे नेहरू, 2 साल के लिए भेज दिया था जेल

Majrooh Sultanpuri: हिंदुस्तान की सरजमीं पर एक से बढ़कर एक फनकार हुए हैं। उन्हीं में से एक थे मजरूह सुल्तानपुरी। मजरूह का अर्थ होता है घायल। उनकी कलम से ऐसे ऐसे शेर औऱ गीत निकले जिन्होंने घायल आशिकों के लिए मरहम का काम किया। ऐसा नहीं था कि मजरूह सुल्तानपुरी ने सिर्फ प्यार और दर्द के नगमें लिखे। उन्होंने अपने गीतों से क्रांति की मसाल भी जलाई। एक बार तो उनका गीत सुन तत्कालीन नेहरू सरकार भी बौखला गई थी। उन्हें 2 साल के लिए जेल भेज दिया। उन्होंने जेल से ही कई लाजवाब गीत लिख डाले जो आज भी गाए-गुनगुनाए जाते हैं।

मजरूह सुल्तानपुरी बनाम नेहरू सरकार

मजरूह सुल्तानपुरी आशिकों के शायर थे। जब उन्होंने मोहब्बत पर लिखा तो वह गीत आशिकों के लिए गीता कुराण बन गए। वहीं जब उन्होंने अपने गीतों के जरिए सत्ता से सवाल किया तो जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचे। लेकिन वह मजरूह ही थे जो सरकार के आगे कभी ना झुके। जिस काल कोठरी में अच्छे-अच्छे अपराधी पसीना छोड़ देते हैं उसके आगे भी मजरूह तनकर खड़े रहे। वो चाहते तो माफी मांग कर मामले से निकल सकते थे लेकिन उन्होंने इसे अपनी शान के खिलाफ समझा और दो साल सलाखों के पीछे बिताए।

क्या था पूरा मामला

मजरूह सुल्तानपुरी विचारधारा से कम्युनिस्ट थे। मार्क्स और लेनिन का उनपर खूब प्रभाव रहा। उन्होंने समाजवाद पर खूब पढ़ा और लिखा। शायर मजरूह सुल्तानपुरी के अंदर हमेशा एक क्रांतिकारी रहा जो समय-समय पर मजदूरों और शोषितों के साथ खड़ा नजर आया। आजादी के बाद एक दिन मजदूरों की किसी सभा में मजरूह सुल्तानपुरी ने एक गीत सुनाया। अपने इस गीत में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को कॉमनवेल्थ का दास और हिटलर का चेला तक कह दिया। गीत था-

"मन में जहर डॉलर के बसा के,

फिरती है भारत की अहिंसा,

खादी की केंचुल को पहनकर,

ये केंचुल लहराने न पाए,

ये भी है हिटलर का चेला,

मार लो साथी जाने न पाए,

कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू,

मार लो साथी जाने न पाए।"

सरकार के आगे नहीं झुके सुल्तानपुरी

मजरूह सुल्तानपुरी का ये गीत सत्ताधीशों को चुभ गया। नेहरू सरकार ने कार्रवाई करते हुए मजरूह सुल्तानपुरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। मजरूह सुल्तानपुरी के सामने माफी मांगने की शर्त पर जेल से रिहा करने की शर्त रखी गई। लेकिन वो नहीं माने और अगले दो साल तक जेल में ही रहे। जेल में ठूंसकर भी जब सत्ता को चैन ना आया तो उसने मजरूह सुल्तानपुरी के इस गाने पर ही बैन लगा दिया।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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