'आपातकाल में हमारा संविधान अस्तित्वहीन हो गया', उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- संकट में था लोकतंत्र का मूल स्तंभ
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नई दिल्ली स्थित उपराष्ट्रपति आवास पर राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अब आप सभी विवेकी युवा हैं। एक राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति, अर्थात प्रधानमंत्री की सलाह पर कार्य नहीं कर सकता। संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करना चाहिए।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (फोटो साभार: @VPIndia)
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नई दिल्ली स्थित उपराष्ट्रपति आवास पर राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ''आज मैं एक ऐसी घटना पर विचार कर रहा हूं, जिसकी बरसी सात दिनों के भीतर आती है। यह घटना भारत की आज़ादी के 28वें वर्ष में घटी। 25 जून, 1975 की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर देश में आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर किए। यह पहली बार था।
उपराष्ट्रपति ने क्या कुछ कहा?
उन्होंने कहा कि अब आप सभी विवेकी युवा हैं। एक राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति, अर्थात प्रधानमंत्री की सलाह पर कार्य नहीं कर सकता। संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करना चाहिए। यह पहला उल्लंघन था। और इसका परिणाम क्या हुआ? कुछ ही घंटों में इस देश के एक लाख से अधिक नागरिकों को जेल में डाल दिया गया।
लोकतांत्रिक संस्थाओं के ध्वस्त होने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को उनके घरों से खींचकर देशभर की जेलों में डाल दिया गया। हमारा संविधान अस्तित्वहीन हो गया। मीडिया बंधक बन गया। देश के कुछ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठ खाली छपने लगे। गिरफ्तार लोगों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आप जानकर चौंकेंगे कि जिन्हें जेल में डाला गया, उनमें कई ऐसे लोग थे, जो आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री बने- अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, चंद्रशेखर जी। कई मुख्यमंत्री, राज्यपाल, वैज्ञानिक और प्रतिभाशाली युवा। उनमें से कई आपकी उम्र के थे।”
'संकट में था लोकतंत्र का मूल स्तंभ'
न्यायपालिका की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “यह वह समय था जब लोकतंत्र का मूल स्तंभ संकट में था। लोग न्यायपालिका की ओर देखते हैं। देश के नौ उच्च न्यायालयों ने गौरवपूर्ण ढंग से यह कहा था कि आपातकाल हो या न हो, नागरिकों के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहते हैं और न्याय तक पहुंच बनी रहती है। दुर्भाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने उन नौ निर्णयों को पलट दिया और ऐसा निर्णय दिया जो किसी भी लोकतांत्रिक न्यायिक संस्था के इतिहास में सबसे काला निर्णय माना जाएगा। इस फैसले में कहा गया कि कार्यपालिका की इच्छा अनुसार आपातकाल अनिश्चितकाल तक चल सकता है।”
“दूसरे शब्दों में, आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं रह जाता। इस निर्णय ने भारत- जो विश्व का सबसे पुराना और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र है- में तानाशाही और निरंकुशता को वैधता दे दी। आप सबको यह स्मरण रखना चाहिए, क्योंकि तब आप उपस्थित नहीं थे। मैं था।”
'संविधान हत्या दिवस'
उन्होंने आगे कहा कि इसीलिए वर्तमान सरकार ने बहुत सोच-विचार कर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। 11 जुलाई 2024 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई, जिसमें 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित किया गया। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि हम अपने गणराज्य के 28वें वर्ष में प्रवेश कर रहे थे। यह दिवस एक गंभीर स्मृति बनकर हमें लोकतांत्रिक मूल्यों का रक्षक बनने की प्रेरणा देता है। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करें। तभी आप लोकतंत्र की कीमत समझ पाएंगे”
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