गांधी परिवार के सबसे करीबी ही दे रहे हैं धोखा, जानें कहां चूक रही है पार्टी
गांधी परिवार से दशकों या पीढ़ियों का साथ रखने वाले नेताओं और परिवारों की लंबी लिस्ट है। लेकिन इस लिस्ट में अब धीरे-धीरे नाम कम होते जा रहे हैं। कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को ऐसा लगता है कि अब गांधी परिवार में चुनाव जिताने की क्षमता नहीं है। और इसका असर उनके रसूख पर दिख रहा है।
- राजनीति में एक तय नियम है, जिस लीडर के पास सत्ता और चुनाव जिताने की क्षमता होती है, उसके आगे सब नतमस्तक होते हैं।
- गांधी परिवार को जिस तरह गहलोत प्रकरण से झटका लगा है, उससे यही लगता है कि उन्होंने पंजाब से सबक नहीं लिया।
- साल 2014 से गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस 36 प्रमुख चुनावों में हार चुकी है।
Congress Crisis: अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के ताजा विवाद ने गांधी परिवार (Gandhi Family) के लिए, अभी तक की सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। पहले से ही नेताओं के पार्टी छोड़ने से परेशान, आलाकमान के लिए अब अपने बेहद खास करीबी ही मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। इस लिस्ट में ताजा नाम अशोक गहलोत का है। अशोक गहलोत का गांधी परिवार (Sonia, Rahul And Priyanka Gandhi) से करीब चार दशक पुराना नाता है। और उनके इसी रिश्ते के कारण, गांधी परिवार ने बहुत भरोसे के साथ अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम आगे किया था। लेकिन जिस तरह उन्होंने राजस्थान (Rajasthan) में अपनी ताकत दिखाकर, रिमोट कंट्रोल अपने पास रखने की कोशिश की है, उससे साफ है कि अब गांधी परिवार के बेहद करीबी भी उन्हें धोखा दे रहे हैं। जो कि राजनीतिक रूप से गांधी परिवार के लिए बेहद कठिन चुनौती है।
अशोक गहलोत अकेले नहीं
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गांधी परिवार से दशकों या पीढ़ियों का साथ रखने वाले नेताओं और परिवारों की लंबी लिस्ट है। लेकिन इस लिस्ट में अब धीरे-धीरे नाम कम होते जा रहे हैं। सिंधिया परिवार, प्रसाद परिवार, देव परिवार, जाखड़ परिवार के साथ-साथ गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आर.पी.एन. सिंह जैसे करीबी नेताओं गांधी परिवार का साथ छोड़ दिया है। साफ है कि गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार भी अब भरोसेमंद नहीं रह गए हैं। नेताओं की देखें लिस्ट
1.ज्योतिरादित्य सिंधिया
2.जितिन प्रसाद
3.सुष्मिता देव
4.सुनील जाखड़
5.कपिल सिब्बल
6.आर.पी.एन.सिंह
7.इमरान मसूद
लगातार हार से गांधी परिवार का रसूख हुआ कम
राजनीति में एक तय नियम है, जिस लीडर के पास सत्ता और चुनाव जिताने की क्षमता होती है, उसके आगे सब नतमस्तक होते हैं। गांधी परिवार के साथ भी ऐसा ही होता रहा है। लेकिन 2014 से तस्वीर बदल गई है। साल 2014 से गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस 36 प्रमुख चुनावों में हार का सामना कर चुकी है। ऐसे में अब कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को ऐसा लगता है कि अब गांधी परिवार में चुनाव जिताने की क्षमता नहीं है। और इसका असर उनके रसूख पर दिख रहा है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में पहली बार गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। साल 1999 में शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस के एक धड़े ने सोनिया गांधी के नेतृत्व को अस्वीकार करते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया था। उस समय शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। उस वक्त पीए संगमा और तारिक अनवर ने भी सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए शरद पवार का साथ दिया था। उसी दौर में 1998 में ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। हालांकि उन्होंने सोनिया गांधी के नेतृत्व की वजह से पार्टी नहीं छोड़ी थी। उनकी नाराजगी सोनिया गांधी से पहले, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके सीता राम केसरी से थी। जो उन्हें पश्चिम बंगाल में आगे बढ़ने का मौका नहीं दे रहे थे।
पंजाब जैसा समझ कर दी गलती
गांधी परिवार को जिस तरह गहलोत प्रकरण से झटका लगा है, उससे यही लगता है कि उन्होंने पंजाब से सबक नहीं लिया। असल में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह गांधी परिवार ने मुख्यमंत्री पद से हटाया था और उसके बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था। वैसा ही प्रयोग आलाकमान राजस्थान में करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पंजाब जैसे हालात वहां नहीं थे। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को विधायकों का साथ नहीं था। लेकिन राजस्थान में अशोक गहलोत की मजबूत पकड़ है। और उसी गलत कैलकुलेशन का खामियाजा अब गांधी परिवार को उठाना पड़ रहा है।
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