Independence Day Desh Bhakti Geet: ये हैं देशभक्ति वाली कविताएं, जो कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा करती हैं
अपने देश प्रेम की भावना को दर्शाने के लिए और दूसरों के दिलों में वतन परस्ती को जगाने के लिए कई गीतकार, संगीतकार और कवियों ने अपने लफ्जों के जादू से प्रयत्न किया हैं। तो आइये उन कवियों के चुनिंदा कविताओं को पढ़ते हैं।
Independence day 2023, Best Desh Bhakti Kavita
Desh Bhakti Kavita 2023: देश भर में स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां पूरे जोर शोर से की जा रही हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि वो इस राष्ट्रपर्व में अपनी भागीदारी किसी तरह दे सकें। जिसको लेकर सोशल मीडिया पर बहुत सारे देशभक्ति गीत व कविताएं सर्च किये जा रहे हैं। ऐसे में आपको हम कुछ बेहतरीन देशभक्ति कविताओं के बारे में बताते हैं जिसे पढ़ने के बाद आप भी उत्साह से भर जाएंगे। आपके दिल में भी अपने वतन के लिए कुछ कर गुजर जाने का जज्बा पैदा होगा। यहां पढ़ें देशभक्ति से संबंधित कुछ बेहतरीन कविताएं...
Independence Day 2023: 'कदम कदम बढ़ाए जा'
कदम कदम बढ़ाए जा
खुशी के गीत गाए जा;
ये जिंदगी है कौम की,
तू कौम पे लुटाए जा।
उड़ी तमिस्र रात है, जगा नया प्रभात है,
चली नई जमात है, मानो कोई बरात है,
समय है, मुस्कुराए जा,
खुशी के गीत गाए जा।
ये जिंदगी है क़ौम की
तू कौम पे लुटाए जा।
जो आ पड़े कोई विपत्ति मार के भगाएंगे,
जो आए मौत सामने तो दांत तोड़ लाएंगे,
बहार की बहार में
बहार ही लुटाए जा।
कदम कदम बढ़ाए जा,
खुशी के गीत गाए जा।
जहां तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेंगे हम,
खड़ा हो शत्रु सामने तो शीश पै चढ़ेंगे हम,
विजय हमारे हाथ है
विजय-ध्वजा उड़ाए जा।
कदम कदम बढ़ाए जा,
खुशी के गीत गाए जा।
कदम बढ़े तो बढ़ चले, आकाश तक चढ़ेंगे हम,
लड़े हैं, लड़ रहे हैं, तो जहान से लड़ेंगे हम;
बड़ी लड़ाइयां हैं तो
बड़ा कदम बढ़ाए जा।
कदम कदम बढ़ाए जा
खुशी के गीत गाए जा।
निगाह चौमुखी रहे, विचार लक्ष्य पर रहे,
जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ नजर रहे,
स्वतंत्रता का युद्ध है,
स्वतंत्र होके गाए जा।
कदम कदम बढ़ाए जा,
खुशी के गीत गाए जा।
ये जिंदगी है कौम की
तू कौम पे लुटाए जा।
स्त्रोत: पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 114), संपादक : सुरेश सलिल, रचनाकार : वंशीधर शुक्ल, प्रकाशन : राजपाल एंड संस, संस्करण : 2018
15 August 2023: 'जन्मभूमि'
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!
जिसका गौरव भाल हिमाचल,
स्वर्ण धरा हंसती चिर श्यामल,
ज्योति ग्रथित गंगा यमुना जल,
वह जन जन के हृदय में बसी!
जिसे राम लक्ष्मण औ' सीता
बना गए पद धूलि पुनीता,
जहां कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी!
सीता सावित्री सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापस सकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी!
शांति निकेतन जहां तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि मुनि गण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
जहां सत्य की किरणें बरसीं!
आज युद्ध जर्जर जग जीवन,
पुनः करेगी मंत्रोच्चारण
वह वसुधैव बना कुटुंबकम्,
उसके मुख पर ज्योति नव लसी!
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि है गरीयसी!
पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 258), संपादक : नंद किशोर नवल, रचनाकार : सुमित्रानंदन पंत, प्रकाशन : साहित्य अकादेमी, संस्करण : 2006
Best Hindi Kavita: 'बढ़े चलो'
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं, दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं, तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
प्रात हो कि रात हो, संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो, चंद्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
एक ध्वज लिए हुए, एक प्रण किए हुए
मातृ भूमि के लिए, पितृ भूमि के लिए
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
अन्न भूमि में भरा, वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो, रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
पुस्तक : दूर्वा (कक्षा-6) (पृष्ठ 126), संपादक : श्वेता उप्पल, रचनाकार : द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, प्रकाशन : एनसीआरटी, संस्करण : 2006
'जवानी का झंडा'
घटा फाड़कर जगमगाता हुआ
आ गया देख, ज्वाला का बान;
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
सहम करके चुप हो गए थे समुंदर
अभी सुनके तेरी दहाड़,
जमीं हिल रही थी, जहाँ हिल रहा था,
अभी हिल रहे थे पहाड़;
अभी क्या हुआ? किसके जादू ने आकार के
शेरों की सी दी जबान?
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
खड़ा हो कि पच्छिम के कुचले हुए लोग
उठने लगे ले मशाल(*),
खड़ा हो कि पूरब की छाती से भी
फूटने को है ज्वाला कराल!
खड़ा हो कि फिर फूंक विष की लगा
धुर्जटी ने बजाया विषान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
गरजकर बता सबको, मारे किसी के
मरेगा नहीं हिंद-देश,
लहू की नदी तैरकर आ गया है,
कहीं से कहीं हिंद-देश!
लड़ाई के मैदान में चल रहे लेके
हम उसका उड़ता निशान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
आह! जगमगाने लगी रात की
मांग में रौशनी की लकीर,
अहा! फूल हंसने लगे, सामने देख,
उड़ने लगा वह अबीर!
अहा! यह उषा होके उड़ता चला
आ रहा देवता का विमान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!
पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 284), संपादक : नंद किशोर नवल, रचनाकार : रामधारी सिंह दिनकर, प्रकाशन : साहित्य अकादेमी संस्करण : 2006
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