वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे: दूसरों से लगातार तुलना भर देगी इतना तनाव, हर सांस पर उठाएंगे सवाल, बचने के लिए करें बात
World Suicide Prevention Day: जहां जीवन का हर नया दिन एक नई उम्मीद लेकर आता है, वहीं कुछ लोग हर सुबह के साथ और तनाव व अवसाद में घिरते चले जाते हैं। बात यहां तक बिगड़ जाती है कि उनके मन में सुसाइड के ख्याल आने लगते हैं। इसकी एक वजह तुलनात्मक रवैया भी है। जानें इस बारे में विस्तार से।
World Suicide Prevention Day
तस्वीर साभार : IANS
World Suicide Prevention Day: अपेक्षाओं और उपेक्षाओं से भरे जीवन में हर आयु वर्ग के लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। स्कूली बच्चे भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं। परिवार से झगड़ा हुआ हो, परीक्षा में नंबर कम आए हों या कोई पर्सनल रिलेशनशिप, व्यक्ति को तनाव हो ही जाता है। ऐसे में कई लोग आगे बढ़कर समस्या से निपटने के तरीके खोजते हैं, लेकिन वहीं कुछ लोगों के मन में आत्महत्या का विचार आता है। लोगों को इसी आत्महत्या रूपी दलदल से बाहर निकालने के लिए 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है।
दुनिया में तेजी से आत्महत्या मामले बढ़ रहे हैं। यह एक वैश्विक चुनौती बनकर सामने आ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी है। इस दिन को मनाने का मकसद दुनियाभर के लोगों को समझाना है कि आत्महत्या हल नहीं बल्कि विकल्प कई हैं।
कब आते हैं नेगेटिव थॉट्स
इस बारें में साइकोलॉजिस्ट, कॉग्निटिव हाइप्नोथेरेपिस्ट चरणजीत कौर कहती हैं - जीवन में किसी को कभी भी सुसाइड करने का ख्याल आ सकता है। ऐसे में व्यक्ति को लगता है कि उसे कोई नहीं समझ रहा है। वह दर्द में इतना ज्यादा होता है कि उसे लगता है कि अब मैं जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाऊंगा, तो मुझे अपने आप को खत्म कर देना चहिए। वह लाइफ को लेकर इतना परेशान हो जाता है कि उसे नेगेटिव थॉट्स आने लगते है।
तो क्या ये सडन (अचानक) होता है या फिर स्लो प्रोसेस है? इस सवाल के जवाब में मनोवैज्ञानिक कहती हैं, सुसाइड करने का फैसला व्यक्ति एक दिन में तो नहीं ले लेता, वह काफी समय से अपने आप को कोस रहा होता है कि वह अब लाइफ में कुछ नहीं कर पाएगा। आज के समय में कंपैरिजन बहुत अधिक हो गया है, पेरेंट्स अपने बच्चों को कंपेयर करते हैं वहीं टीचर्स अपने स्टूडेंट को कंपेयर करते हैं। इसके अलावा वर्क प्लेस में आपका एंपलॉयर आपको कंपेयर करता है। यह भी मन में सुसाइड की ओर कुछ लोगों को धकेलता है।
कंपैरिजन कब तक है मोटिवेशन
चरणजीत कौर कहती हैं, कंपैरिजन कुछ देर तक तो मोटिवेशन का काम करता है मगर जब यह हद से ज्यादा होने लगता है तो नेगेटिविटी की तरफ चल जाता है, और ऐसे में व्यक्ति के मन में आता है कि वह अब कुछ नहीं कर पाएगा। उसे लगता है मेरी कोई वैल्यू नहीं है मेरे पास कोई स्ट्रैंथ नहीं है और लाइफ में लोग मेरे से बहुत आगे निकल गए हैं, मैं कुछ नहीं कर पा रहा/रही हूं, जिसके चलते वह यह खतरनाक कदम उठाने के बारे में सोचने लगते हैं।
कैसे बचें इस सिचएुशन से
साइकोलॉजिस्ट ने इससे बचने के तरीके भी सुझाए। वह कहती हैं, ऐसे में परिवारों को अपने सदस्यों के साथ इतना मजबूत रिश्ता कायम करना चहिए कि जिस व्यक्ति के मन में ऐसे विचार आ रहे हैं वह आपसे खुलकर अपनी समस्या के बारे में बात कर सके।
आगे कहा , इसके अलावा उनको हेल्प के जरिए एजुकेटेड करने की जरूरत है, ताकि वह लाइफ में आने वाली हर परेशानी का सामना करने के लायक बन सके। प्रोफेशनल हेल्प लेनी चाहिए और प्रोफेशनल हेल्प लेने में कोई भी बुराई नहीं है और कोई भी शर्म की बात नहीं है क्योंकि जो साइकोलॉजिस्ट है वह जानता है कि ऐसे लोगों को कैसे डील किया जाता है। क्योंकि इंसान उनसे ओपन माइंड से बात कर पाता है।
Note: ये कंटेंट न्यूज एजेंसी आईएएनएस से लिया गया है।
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