Delhi NCR Pollution: क्यों जहरीली होती जा रही दिल्ली-एनसीआर की हवा? विस्तार से जानें क्या है AQI और PM 2.5, लेख में मिलेंगे सारे जवाब
Diwali Festival 2024, Delhi NCR Pollution, AQI kya hota hai: हर साल मौसम बदलने पर हवा प्रदूषित होने लगती है। जहां देखो वहां एक्यूआई और पीएम 2.5 की बात होती है। इनके आधार पर ही हवा के प्रदूषण को नापते हैं। आज हम विस्तार से इन दोनों के अंतर को समझेंगे।
Cough and cie dx
दिल्ली एनसीआर ही नहीं वायु प्रदूषण का असर पूरे देश में दिखता है। मौसम बदलने के साथ ही खास तौर पर दिवाली के आसपास अखबारों और न्यूज साइट्स पर एक्यूआई से जुड़ी खबरों की भरमार आ जाती है। हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, और सांस से जुड़ी समस्याएं भी होने लगती हैं। जिनको पहले से सांस संबंधी बीमारी है उन्हें ऐसी स्थिति में बहुत ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। हवा की क्वालिटी के स्तर को मापने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें एक अहम भूमिका निभाता है पीएम 2.5 और पीएम10। आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
क्या होता है पीएम 2.5?
पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर ये पार्टिकुलेट ठोस और तरल दोनों ही तरह के कणों का मिश्रण है, जो हवा में घूमते रहते हैं। धूल से लेकर धुएं तक इसके कण हो सकते हैं। इन्हें तीन केटेगरी में बांटा गया है, पीएम10, पीएम2.5 और पीएम1. पीएम10 दस माइक्रोन या उससे ऊपर के रेडियस वाले कण होते हैं जो नंगी आंखों से दिख सकते हैं। जैसे- धूल, परागकण यानी पॉलेन आदि। पीएम2.5 उन कणों को कहते हैं जिनका आकार 2.5 माइक्रोन या उससे कम हो. जैसे, धुआं, धुंध आदि। पीएम1 यानी वे कण जिनका रेडियस एक माइक्रोन या उससे कम हो। इनके उदाहरण में बैक्टीरिया और वायरस वगैरह आते हैं.
कैसे नापते हैं एक्यूआई?
एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स को अलग अलग देश अपने हिसाब से नापते हैं। भारत में एक्यूआई 7 प्रदूषण कारकों के आधार पर तय करते हैं। ये हैं, पीएम10, पीएम2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया और ओजोन होते हैं। 24 घंटे में इनकी मात्रा ही हवा की क्वालिटी तय करती है।
एक्यूआई लेवल के मानक कुछ ऐसे होते हैं
0 से 50 - अच्छा
51 से 100 - मध्यम
101 से 150 – बीमार लोगों के लिए चिंताजनक
151 से 200 – खराब
201 से 300 - बहुत खराब
301 और अधिक - खतरनाक
वायु प्रदूषण के नुकसान
वायु प्रदूषण के बढ़ने से गले, आंख और फेफड़े की समस्या बढ़ने लगती है। 10 माइक्रोन या उससे छोटे कण हमारी नाक और फेफड़ों में जा सकते हैं और 2.5 माइक्रोन या उससे छोटे कण हमारे खून में भी जा सकते हैं। ये अस्थमा को और अधिक गंभीर बना सकते हैं और सीओपीडी जैसी फेफड़ों की बीमारियों को और खराब कर सकते हैं. इस बात के भी सबूत हैं कि ये कण दिल के दौरे और स्ट्रोक के खतरे को भी बढ़ा सकते हैं.
कैसे रहें सुरक्षित
जितना हो सके घर के अंदर रहें. अगर आपको या आपके परिवार में किसी को सांस संबंधी कोई समस्या है तो कमरे में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। दिन में घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें। .स्मॉग वाली जगह पर एन95 मास्क का इस्तेमाल करें।ज रूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलें।
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हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक की रहने वाली हूं। कई फील्ड्स में करियर की प्लानिंग करते-करते शब्दों की लय इतनी पसंद आई कि फिर पत्रकारिता से जुड़ गई।...और देखें
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