भारत के लिए Rafale-M क्यों जरूरी, जानें कितनी ताकत, कैसे साबित होगा गेम चेंजर?
भारत ने इस महीने की शुरुआत में 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक के दौरान 26 राफेल समुद्री लड़ाकू विमानों के लिए अपने अब तक के सबसे बड़े रक्षा सौदे को मंजूरी दी थी।

Rafale-M क्यों जरूरी
What is Rafale-M Deal: भारत सरकार और फ्रांस के बीच एक बड़ा रक्षा सौदा हुआ है जिसके तहत भारत को फ्रांस से 26 राफेल-एम लड़ाकू विमान मिलेंगे। ये सौदा कुल 63 हजार करोड़ रुपये का है। लड़ाकू विमान मिलने के बाद भारतीय नौसेना ताकत बढ़ जाएगी और दुश्मनों से निपटना आसान होगा। ये डील सरकार से सरकार (G2G) स्तर पर हुई है। इसके तहत भारतीय नौसेना को 22 सिंगल-सीटर और 4 ट्विन-सीटर राफेल M (Marine) फाइटर जेट्स मिलेंगे। ये एडवांस नेवल वर्जन के लड़ाकू विमान INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर तैनात किए जाएंगे। आइए जानते हैं कि आज के परिदृश्य में ये डील भारत के लिए क्यों इतना जरूरी है और क्या है राफेल-एम की ताकत।
इस महीने की शुरुआत में सौदे को मंजूरी
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने इस महीने की शुरुआत में इस सौदे को मंजूरी दे दी थी। मिग-29के (MiG-29K) लड़ाकू विमानों के मौजूदा बेड़े ने रखरखाव समस्या और कई तकनीकी दिक्कतों के कारण भरोसेमंद साबित नहीं हो रही है। राफेल एम जेट मिलने से मौजूदा तस्वीर बदलने की उम्मीद है। राफेल जेल मिलने के बाद इन्हें भारतीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अनुकूलित किया जाएगा। इनकी तैनाती आईएनएस विक्रांत पर होगी।
इस सौदे में क्या-क्या शामिल
लॉजिस्टिक सपोर्ट और ग्राउंड मेंटेनेंस, पायलट्स और टेक्नीशियन्स की ट्रेनिंग, भारत में कुछ पार्ट्स का निर्माण। अगर सब कुछ योजना के अनुसार रहा तो 2029 के अंत तक पहला बैच भारत पहुंचेगा और 2031 तक सभी 26 विमान डिलीवर कर दिए जाएंगे।
ये डील क्यों जरूरी?
समंदर में चीन की बढ़ती मौजूदगी, खासकर हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक चुनौती बन चुकी है। ऐसे में राफेल M की तैनाती से भारत की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा पहले से कहीं अधिक मजबूत हो जाएगी। यह कदम न केवल भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में अहम है, बल्कि चीन को यह साफ संदेश देता है कि भारत समुद्र में किसी भी चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। राफेल-एम की तैनाती भारत को एक मजबूत समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करेगी। राफेल-एम डील भारतीय नौसेना के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकती है। यह कदम भारत की समुद्री सुरक्षा, रक्षा रणनीति और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक निर्णायक पहल है।
राफेल M की खासियतें
- STOBAR टेक्नोलॉजी (Short Take-Off But Arrested Recovery) से लैस
- मजबूत लैंडिंग गियर और अरेस्टर हुक
- AESA रडार और Spectra वॉरफेयर सिस्टम से युक्त
- Meteor, SCALP और Exocet जैसी लॉन्ग रेंज मिसाइलें
- 1.8 Mach की टॉप स्पीड और 1850+ किमी की ऑपरेशनल रेंज
- एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग की सुविधा
मिग-29K की जगह लेगा राफेल-एम
मौजूदा समय में भारतीय नौसेना मिग-29K विमानों का इस्तेमाल कर रही है, जिन्हें 2004 में रूस से खरीदा गया था और 2009 में सेवा में शामिल किया गया था। ये विमान INS विक्रमादित्य पर तैनात हैं। हालांकि अब ये विमान तकनीकी रूप से पुराने हो चुके हैं और कई दिक्कतें पेश आ रही हैं। इसके साथ 30-40 साल पुरानी तकनीक, पुर्जों की अनुपलब्धता, कम होती लड़ाकू क्षमता जैसी दिक्कतें हैं। ऐसे में राफेल M एक अत्याधुनिक विकल्प बनकर सामने आया है।
9 अप्रैल को सौदे पर लगी थी मुहर
भारत ने इस महीने की शुरुआत में 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक के दौरान 26 राफेल समुद्री लड़ाकू विमानों के लिए अपने अब तक के सबसे बड़े रक्षा सौदे को मंजूरी दी थी। सरकार-से-सरकार अनुबंध में 22 सिंगल-सीटर और चार ट्विन-सीटर जेट शामिल हैं, साथ ही बेड़े के रखरखाव, रसद सहायता, कर्मियों के प्रशिक्षण और स्वदेशी कंपोनेंट निर्माण के लिए एक व्यापक पैकेज भी शामिल है।
कुल 62 राफेल जेट होंगे
राफेल एम जेट आईएनएस विक्रांत से संचालित होंगे और मौजूदा मिग-29के बेड़े की मदद करेंगे। भारतीय वायु सेना पहले से ही 2016 में हस्ताक्षरित एक अलग सौदे के तहत हासिल किए गए 36 राफेल विमानों का बेड़ा संचालित करती है। ये विमान अंबाला और हासीमारा में स्थित हैं। नए सौदे से भारत में राफेल जेट की कुल संख्या 62 हो जाएगी, जिससे देश के 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के बेड़े में अहम बढ़ोतरी होगी।
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