Munshi Premchand ka Jivan Parichay
Munshi Premchand ka Jivan Parichay in Hindi: आज यानी 08 अक्टूबर को मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि है। हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार मुशी प्रेमचंद की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं। अपनी समावेशी साहित्यिक दृष्टि द्वारा समाज में कौड़ियों से ले कर बेशक़ीमती मोतियों तक को एक धागे में पिरोकर साहित्य की सर्वप्रिय जयमाला बनाने वाले हिंदी कहानी के प्रतीक-पुरुष मुंशी प्रेमचंद जी की लेखनी ने समाज के शोषित, वंचित और पीड़ित वर्ग की व्यथा को स्वर दिया। प्रेमचंद जी उनकी गोदान, कफन, नमक का दारोगा जैसी कृतियां आज भी सामाजिक चेतना को झकझोरती हैं और यथार्थ का आईना दिखाती हैं। प्रेमचंद जी की रचनाएं सदैव हमें न्याय, समानता और मानवीय संवेदनाओं के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहेंगी। हिन्दी कथा-उपन्यास की दुनिया के सबसे प्रसिद्ध हस्ताक्षर मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पुण्यतिथि पर उनका साहित्य अवश्य पढ़ें, ताकि एक साधारण व्यक्ति की धनपत राय से कथा सम्राट 'प्रेमचंद' तक की यात्रा का रहस्य समझ सकें।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही में हुआ था उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था । पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे। प्रेमचंद जब 8 साल के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया। जीवन के शुरुआती दौर में वो अपने गांव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पांव जाया करते थे। सी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।
Munshi Premchand Ka Jivan Parichay: मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय
साल 1921 में मुंशी प्रेमचंद ने असहयोग आंदोलन से सहानुभूति रखने के चलते उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके बाद हंस नामक पत्रिका निकाली। अपनी रचनाओं से देश और समाज के सभी समस्याओं पर उन्होंने प्रकाश डाला। लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन होगा। प्रेमचंद को बचपन से ही साहित्य में काफी दिलचस्पी रही। यही वजह है कि उनका ध्यान हिंदी रचनाओं की ओर ज्यादा रहा।
साल 1925 में आई रंगभूमि' प्रेमचंद का सबसे बड़ा उपन्यास है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने गांधी युग के अहिंसात्मक आदर्शों का एक प्रतीक खड़ा किया था। इसके बाद 1932 में कर्मभूमि और फिर प्रेमाश्रम और सेवा सदन ने भी युवाओं के दिमाग में गहरी छाप छोड़ी। प्रेमचंद की रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि दी थी। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं नीचे देख सकते हैं-
मुंशी प्रेमचंद्र ने अपनी रचनाओं से ब्रिटिश हुकूमत तक को हिला दिया था। यह समय था जून 1908 का जब उनका कहानी संग्रह सोजेवतन प्रकाशित हुआ। इसमें देशप्रेम की कहानियां जैसे सांसारिक प्रेम और देशप्रेम, दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर और यही मेरी मातृभूमि शामिल थीं। उनकी रचनाएं युवाओं में देशप्रेम की भावना जगाने में काफी सफल साबित हुईं।
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