Navaratri 2022: मध्य प्रदेश के जबलपुर की मां त्रिपुर सुन्दरी थीं दानवीर कर्ण की कुलदेवी
MP: जबलपुर शहर से 14 किमी की दूरी पर गांव तेवर में हथियागढ़ नामक स्थान पर मौजूद है साक्षात मां त्रिपुर सुंदरी। इनका वरदान पाकर ही कर्ण सोने का दान करने वाला महादानी बना। मां त्रिपुर सुंदरी के मंदिर व प्रतिमा की स्थापना को लेकर कई तरह की दंत कथाएं प्रचलित हैं। कोई इन्हें राजा कर्ण की कुलदेवी बताता है तो कोई 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्णदेव के द्वारा प्रतिमा को स्थापित करना बताता है। इतिहास को लेकर समान जानकारी किसी के पास नहीं है।
मध्य प्रदेश के जबलपुर की मां त्रिपुर सुन्दरी थीं दानवीर कर्ण की कुलदेवी।
- मां त्रिपुर सुंदरी से वरदान पाकर ही कर्ण बना था महादानी
- गांव तेवर में हथियागढ़ नामक स्थान पर है साक्षात मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर
- मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर व प्रतिमा को लेकर कई तरह की प्रचलित हैं दंत कथाएं
MP: नवरात्रि में आराधना का दौर जारी है। देवी मां के उपासक उनकी भक्ति में लीन हैं। ऐसे में एक मां ऐसी भी है जो द्वापर में दानवीर कर्ण की कुलदेवी रही हैं। इनका वरदान पाकर ही कर्ण सोने का दान करने वाला महादानी बना। मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर से करीब 14 किमी की दूरी पर गांव तेवर में भेड़ाघाट रोड पर हथियागढ़ नामक स्थान पर मौजूद है साक्षात मां त्रिपुर सुंदरी। भक्त इन्हें मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी मां भी पुकारते हैं। मंदिर के बारे में चर्चा है कि, यह करीब 5 हजार साल पुराना है।
मंदिर पुजारी समिति के मुताबिक, पुरातत्व विभाग की जांच में मां की प्रतिमा को दो हजार साल पुराना बताया गया है। मां त्रिपुर सुंदरी के मंदिर व प्रतिमा की स्थापना को लेकर कई तरह की दंत कथाएं प्रचलित हैं। कोई इन्हें राजा कर्ण की कुलदेवी बताता है तो कोई 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्णदेव को मां त्रिपुर सुंदरी को स्थापित करना बताता है। इतिहास को लेकर समान जानकारी किसी के पास नहीं है। इस मंदिर की एक खास बात ये भी बताई जा रही है कि, सिर्फ यही एक मंदिर ऐसा है जहां मां तीन स्वरूपों महाकाली, महा सरस्वती व महादुर्गा के रूप में विराजमान हैं। हालांकि मंदिर में मां के दर्शनों के लिए लाखों लोग प्रतिवर्ष आते हैं। मगर इस समय नवरात्रा में मां के आराधकों की भीड़ रहती है। मंदिर में एक स्थान ऐसा भी है जहां लोग मनोकामना को लेकर चुनरी व नारियल बांधते हैं।
कर्ण की कुलदेवी थीं मां त्रिपुर सुंदरी
जनश्रुति है कि, राजा कर्ण मां की सच्चे मन से उपासना करते थे। यही वजह थी कि, मां ने प्रसन्न होकर राजा कर्ण को वरदान दिया था कि, दान करने से उसका खजना कभी रिक्त नहीं होगा। इसके लेकर दंतकथा है कि, मां त्रिपुर सुंदरी की तपस्या कर रहे कर्ण से जब मां ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा तो कर्ण ने कहा था कि, मां जैसे मैंने स्वयं को आपकी सेवा में समर्पित कर दिया है। वैसे ही आप भक्तों के लिए कोई ऐसे उपाय तय करें कि, आपकी उपासना करने वाले की मनोकामना पूर्ण हो। इसके बाद मां त्रिपुर सुंदरी ने कर्ण को वरदान देने के साथ ही ये कहा कि, जो उनके दरबार में आकर मनोकामना मांगेगा उसकी कामना पूरी होगी।
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