ईरान में सरेआम उछाली जा रही मौलवियों की पगड़ी, सोशल मीडिया में वायरल हुआ विरोध का नया तरीका
Iran news : ईरान के शहरों में अब प्रदर्शनकारी कुछ इसी तरह संकरी गलियों से लेकर भीड़भाड़ वाले चौराहों तक मौलवियों और मुफ्तियों की टोपी उछाल रहे हैं। कट्टरपंथ से आजादी की मांग को लेकर विरोध का ये सबसे नया तरीका है।
Anti-hijab protests in
मौलवियों और मुफ्तियों की उछाली जा रही टोपी
ईरान के शहरों में अब प्रदर्शनकारी कुछ इसी तरह संकरी गलियों से लेकर भीड़भाड़ वाले चौराहों तक मौलवियों और मुफ्तियों की टोपी उछाल रहे हैं। कट्टरपंथ से आजादी की मांग को लेकर विरोध का ये सबसे नया तरीका है। हालांकि ईरान में ये वो खता है जिस पर सिर कलम हो जाए। गोलियां चल जाएं। पुलिस के बेहिसाब लाठी डंडे पड़ें लेकिन लोग भी जिद पर अड़े हैं। हिजाब क्रान्ति और बाल क्रान्ति के बाद अब प्रदर्शनकारियों का कारवां 'टोपी क्रान्ति' तक पहुंच चुका है।
महसा अमीनी की मौत के बाद लोगों का गुस्सा चरम पर
गत 17 सितंबर को पुलिस हिरासत में 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में हिजाब के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं। ईरान में इस्लामिक कट्टरपंथ से आजादी को लेकर प्रदर्शनों का सिलसिला एक महीने से नॉनस्टॉप चल रहा है। सैकड़ों प्रदर्शनकारी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। मगर जैसे-जैसे सितम बढ़ रहे हैं वैसे वैसे क्रान्ति भी गहरी होती जा रही है। इस क्रांति की मशाल युवाओं ने थाम रखी है।
सोशल मीडिया पर शेयर की जा रहीं तस्वीरें
इस वक्त इस यंग शेफ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं और ईरान की सरकार को निरंकुश बताते हुए बदले की बात भी कही जा रही है। हालांकि मेहरशाद इकलौता ऐसा शख्स नहीं है जो सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया। ऐसे लोगों की लिस्ट बहुत लंबी है। यही कारण है कि युवाओं ने अब कट्टरता की जड़ मौलवियों की इज्जत पर भी प्रहार शुरू कर दिया है।
क्या है इमामा?
ईरान में इस पगड़ी को इमामा कहते हैं जिसे आम लोगों को पहनने का हक नहीं है। यह एक सम्मान है। इमामा एक पद की तरह है। इसे वे मौलवी पहनते हैं जिन्होंने मज़हबी तालीम में डॉक्टरेट उपाधि ली हो। इमामा उन्हें भी मिलती है जो 'अहल अल-बैयत' के सदस्य हों--अहल-अल-बैयत पैगंबर मोहम्मद के घराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इमामा यानी की टोपी भी दो तरह की होती है-एक काली-दूसरी सफेद। काला इमामा वे मौलवी पहनते हैं, जो पैगंबर मुहम्मद के बाद उनकी बेटी और दामाद के कुनबे की पीढ़ीयों से हैं। जबकि सफेद इमामा वो पहनते हैं जो पैगंबर मुहम्मद के बाद उनकी बेटी दामाद के कुनबे की पीढ़ियों से नहीं हैं। इसे ऐसे समझिए जैसे शिया मौलवी और ईरान के पूर्व सुप्रीम लीडर 'आयातुल्ला ख़ौमैनी' काला इमामा पहनते थे--क्योंकि वो सांतवें इमाम मूसा के कुनबे से हैं।
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