भारत की नहीं जलेबी, जानिए किस देश से और कब आई भारत
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मातूराम की जलेबी का स्वाद लिया। इस दौरान उन्होंने जलेबी को लेकर एक रैली में भाषण भी दिया, जिसको लेकर भाजपा ने उनका खूब मजाक भी बनाया। हालांकि, राहुल गांधी अपने उस बयान पर कायम रहे। जलेबी के बारे में राहुल गांधी ने इसे दुनियाभर के देशों में पहुंचाने की बात कही। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलेबी भारत की मिठाई नहीं है, बल्कि यह विदेश से ही भारत आई है। चलिए जानते हैं -
राहुल गांधी की तारीफ
हरियाणा विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान राहुल गांधी ने सोनीपत जिले के गोहाना में मातूराम की मशहूर जलेबी का स्वाद लिया। उन्होंने इसकी तारीफ अपनी बहन प्रियंका से की और उनके लिए भी पैक करवाई। मातूराम की जलेबी बहुत मशहूर है और लोग यहां से पैक करवाकर ले जाते हैं। मातूराम की एक जलेबी 250 ग्राम की होती है।और पढ़ें
नाश्ते में जलेबी
देशभर में जलेबी को नाश्ते के समय खाया जाता है। भले ही वह पोहा-जलेबी, समोसा-जलेबी हो या फाफड़ा-जलेबी और दही-जलेबी और रबड़ी-जलेबी। हालांकि, दिल्ली जैसे कुछ शहरों में जलेबी शाम के समय गर्मागर्म दूध के साथ परोसी जाती है।
जलेबी नहीं,जलबिया है नाम
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि जलेबी भारत की अपनी नहीं, बल्कि यह विदेश से यहां आई है। मिडल-ईस्ट से भारत आई जलेबी को वहां जलबिया (Zalabiya) या फारस (ईरान) में जल्बिया (Zulbiya) कहा जाता है।
10वीं शताब्दी की मिठाई
जलेबी का जल्बिया (Zulbiya) के रूप में सबसे पुराना जिक्र 10वीं सदी की एक फारसी किताब (किताब-अल-ताबीख) में मिलता है। मुहम्मद बिन हसन अल-बग्दादी ने अपनी इस किताब में जिक्र किया है कि रमजान और अन्य त्योहारों के अवसर पर इसे बांटा जाता था। 10वीं सदी की अरबी किताब अल-वारक (al-Warraq) में भी इसका जिक्र है।
जल्बिया से अलग जलेबी
हालांकि, भारत में मशहूर जलेबी पूर्व में मिडल-ईस्ट से आई जल्बिया का ही रूप है, लेकिन कई मायनों में यह अलग भी है। जल्बिया में फ्लोरल कॉइल पैटर्न होता है, जबकि जलेबी में सर्कुलर कॉइल होते हैं। मिडल ईस्ट की जल्बिया में शहद और रोज वाटर का सिरप होता है, जबकि जलेबी में शुगर सिरप का इस्तेमाल होता है।
फारसी व्यापारी भारत लाए जल्बिया
फारसी व्यापारियों के साथ जल्बिया भारत आई और देखते ही देखते यह भारत की अपनी मिठाई बन गई। 15वीं शताब्दी के अंत तक यह घर-घर पहुंच गई और त्योहारों व उत्सव का अभिन्न अंग बन गई। भारत में जलेबी का सबसे पुराना उल्लेख 1450 ईस्वी का मिलता है।
भारत में जलेबी के नाम
दक्षिण भारत में जलेबी को जिलेबी और बंगाली में जिलापी कहा जाता है। इंदौर में बड़ी जलेबी को जलेबा नाम से सर्व किया जाता है। मध्य प्रदेश में मावा जलेबी भी मशहूर है, जिसे हैदराबाद में घोवा जलेबी कहते हैं। इमरती और आंध्र प्रदेश में मुगल बादशाह जहांगीर के नाम पर जहांगीरी जलेबी मशहूर है।
मातूराम की जलेबी
जैसा कि हमने पहले ही बताया कि मातूराम की एक जलेबी 250 ग्राम की होती है और चार जलेबी के एक डिब्बे की कीमत 320 रुपये है। इसकी सेल्फ लाइफ भी 1 सप्ताह की होती है।
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