Firaq Gorakhpuri: जब शादी में मिले धोखे ने पलट दी फ़िराक़ गोरखपुरी की पूरी जिंदगी, शराब और शायरी में ढूंढ़ने लगे दर्द का इलाज, सारे अपने छोड़ गए साथ
Firaq Gorakhpuri Life Wiki Bio: बिना प्रेम के दो बच्चे होने पर फ़िराक़ बड़ी साफगोई से कहते थे कि यौन जरूरतों के सामने कोई भी बदसूरत चेहरा या भावनात्मक लगाव नहीं देखता। मैं चाहता था कि मेरे बच्चे हों। लेकिन मेरी शादी ने मुझे अकेलेपन का शिकार बना दिया।
![Firaq Gorakhpuri](https://static.tnnbt.in/thumb/msid-116063205,thumbsize-61840,width-1280,height-720,resizemode-75/116063205.jpg)
फिराक गोरखपुरी
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
ये शेर है फ़िराक़ गोरखपुरी का। कभी भी शेर-ओ-शायरी की बात हो और फ़िराक़ गोरखपुरी का नाम ना आए ऐसा नामुमकिन है। फ़िराक़ गोरखपुरी उर्दू के ऐसे अलहदा शायर थे जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल के क्लासिक मिज़ाज को नई ऊंचाई दी। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाक्टर ख़्वाजा अहमद फ़ारूक़ी की मानी जाए तो अगर फ़िराक़ न होते तो उर्दू ग़ज़ल की सरज़मीन बेरौनक़ रहती, उसकी मेराज इससे ज़्यादा न होती कि वो उस्तादों की ग़ज़लों की कार्बन कापी बन जाती या मुर्दा और बेजान ईरानी परम्पराओं की नक्क़ाली करती।
मशहूर शायर निदा फाज़ली तो फ़िराक़ को कबीर और नानक की परंपरा से जोड़ा करते थे। फ़िराक़ के बारे में जोश मलीहाबादी ने अपनी किताब ‘यादों की बारात’ में तो यहां तक लिखा है कि वे शायरी की मांग का संदल और उर्दू ज़ुबान की आबरू हैं। कुछ ऐसे थे फ़िराक़ गोरखपुरी।
बेपरवाह शख्स, अज़ीम शायर और शानदार चिंतक
फ़िराक़ शायर के साथ चिंतक भी थे। फ़िराक़ गोरखपुरी महसूस करते थे कि उर्दू अदब ने अभी तक औरत की कल्पना को जन्म नहीं दिया। उर्दू ज़बान में शकुन्तला, सावित्री और सीता नहीं। जब तक उर्दू अदब देवीयत को नहीं अपनाएगा उसमें हिन्दोस्तान का तत्व शामिल नहीं होगा और उर्दू सांस्कृतिक रूप से हिन्दोस्तान की तर्जुमान नहीं हो सकेगी क्योंकि हिन्दोस्तान कोई बैंक नहीं जिसमें रूमानी और सांस्कृतिक रूप से अलग अलग खाते खोले जा सकें। इसी एहसास ने फ़िराक़ गोरखपुरी को प्रेम और सौन्दर्य का सबसे बड़ा नग़्मागार बना डाला।
आलोचक फ़िराक़ गोरखपुरी को हिन्दुस्तानी शायरी का पूरा एक युग मानते हैं। शायद ही इंसानी जिंदगी का कोई ऐसा पहलू हो जिसका बिम्ब खींचने में फ़िराक़ के शब्द लड़खड़ाए हों। भावनाओं और संवेदनाओं की जो व्याख्या उनकी रचनाओं में मिलती है, उसकी तुलना आलोचक सिर्फ ग़ालिब से करने को तैयार होते हैं।
28 अगस्त 1896 ई. में गोरखपुर में पैदा हुए फ़िराक़ गोरखपुरी का असल नाम रघुपति सहाय था। फ़िराक़ को शायरी का हुनर विरासत में मिला था। उनके वालिद गोरख प्रशाद ज़मींदार, वकील और शायर थे। फ़िराक़ को उर्दू और फ़ारसी की शिक्षा घर से मिली। मैट्रिक का इम्तिहान गर्वनमेंट जुबली कॉलेज गोरखपुर से सेकंड डिवीज़न में पास हुए तो 18 साल की उम्र में ही उनकी शादी किशोरी देवी से कर दी गई। यह शादी फ़िराक़ की ज़िंदगी में एक नासूर साबित हुई।
जब शादी में मिला धोखा
रोली बुक्स से प्रकाशित अजय मानसिंह की किताब ‘फ़िराक़ गोरखपुरी: द पोएट ऑफ पेन एंड एक्स्टसी’ से पता चलता है कि फ़िराक़ गोरखपुरी को शादी में धोखा मिला था। यह धोखा दिया था उनके परिवार के ही एक बेहद करीबी शख्स ने। दरअसल फ़िराक़ और उनके पिता चाहते थे कि घर में जो बहू आए वह शिक्षित हो। उनका वह करीबी फ़िराक़ के लिए एक जमींदार की बेटी का रिश्ता लेकर आया। लड़की को देखने के लिए फ़िराक़ के परिवार की महिलाएं गईं, जहां उन्हें लड़की को कुछ किताबों के साथ दिखाया गया ताकि वह शिक्षित मालूम पड़े।
परिवार को लड़की मनमुताबिक और फ़िराक़ के लिए मुफीद लगी। शादी तय हो गई। शादी के कुछ ही दिन बाद पता चल गया कि फ़िराक़ के परिवार को दिखाई गई लड़की उनकी पत्नी नहीं है। धोखे से किसी और लड़की से शादी करवा दी गई है।
फ़िराक़ इस धोखे से बहुत निराश हुए। ये कहें कि इस शादी ने फ़िराक़ को अंदर से तोड़ दिया तो गलत ना होगा। जब तक वह शादी में रहे उनका वैवाहिक जीवन प्रेमहीन ही रहा। बावजूद इसके फ़िराक़ और किशोरी देवी के दो बच्चे हुए। बिना प्रेम के दो बच्चे होने पर फ़िराक़ बड़ी साफगोई से कहते थे कि यौन जरूरतों के सामने कोई भी बदसूरत चेहरा या भावनात्मक लगाव नहीं देखता। मैं चाहता था कि मेरे बच्चे हों। लेकिन मेरी शादी ने मुझे अकेलेपन का शिकार बना दिया। अपने इस हालात को फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने इसे शेर में बयां किया है:
ग़मे-फ़िराक़ तो उस दिन ग़मे-फ़िराक़ हुआ,
जब उनको प्यार किया मैंने जिनसे प्यार नहीं।
जब फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपनी पत्नी को वापस भेज दिया मायके
शादीशुदा जीवन में बीतते समय के साथ एक दौर ऐसा भी आया जब फ़िराक़ अपनी पत्नी किशोरी देवी के लिए थोड़े बेरहम भी हो चले। एक बार तो उन्होंने मनपसंद अचार ना मिलने के कारण किशोरी देवी को वापस मायके भेज दिया था। रमेश चंद्र द्विवेदी की किताब ‘फ़िराक़ साहब’ इस बात की तस्दीक करती है।
किताब से पता चलता है कि एक बार किशोरी देवी अपने मायके से बिना फ़िराक़ की पसंद का अचार लिए वापस चली आई थीं। वह जैसे ही सिर पर टोकरी लिए घर में पहुंचीं, फ़िराक़ ने अपने अचार को लेकर सवाल किया। जवाब में पता चला वो अचार नहीं लायी हैं। फ़िराक़ ने सिर टोकरी नीचे भी नहीं रखने दिया और अचार लाने वापस भेज दिया।
फ़िराक़ गोरखपुरी ने लोकप्रियता और प्रसिद्धि की उन बुलंदियों को छुआ जहां पहुंचने का ख्वाह लगभग हर शायर देखता है। हालांकि सफलता के शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद फ़िराक़ की निजी जिंदगी में प्रेम का हिसाब अधूरा रहा। बावजूद इसके फ़िराक़ ने प्रेम और सौंदर्य पर जो नज्में लिखीं वो हमेशा के लिए अमर हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी के जीवन में प्रेम को लेकर जो एक खालीपन था उसे उन्होंने अपनी शायरी में कुछ यूं कलमबद्ध किया:
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
बिछड़े सभी बारी बारी..
निजी ज़िंदगी में फ़िराक़ हमेशा बेढंगे रहे। वह अपनी खुद पसंदी के लिए कुख्यात होने लगे। शादी में रहते हुए भी उन्होंने कुछ शौक़ ऐसे पाल लिये जिन्हे समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता लेकिन न तो वो उनको छुपाते थे और न शर्मिंदा होते थे। उनके सगे-सम्बंधी उनकी इन आदतों से तंग आने लगे। फ़िराक़ ने अपने जिस छोटे भाई यदुपति सहाय को बेटे की तरह पाला था वह भी उनसे अलग हो गया। इस वाकये ने फ़िराक़ को बहुत दर्द दिया। फ़िराक़ के इकलौते बेटे ने जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सत्रह-खुदकुशी कर ली थी। बीवी किशोरी देवी 1958 ई. में अपने भाई के पास चली गई थीं और उनके जीते जी वापस नहीं आईं।
अपनी बेबसी को फ़िराक़ ने अपने इस शेर में कुछ यूं बयां किया:
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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