बलात्कार-हत्या मामले की 40 साल चली सुनवाई, दोषी ठहराए गए बुजुर्ग को SC ने दी जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 17 मई के आदेश को रद्द करते हुए उससे उचित कड़े नियम और शर्तें तय करने का अनुरोध किया, जिसके आधार पर अपीलकर्ता को उसकी अपील का अंतिम निपटान होने तक जमानत दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने में 40 साल की असाधारण देरी को ध्यान में रखते हुए, 1983 के बलात्कार और हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए एक बुजुर्ग व्यक्ति को जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट से 75 वर्षीय इस व्यक्ति की दोषसिद्धि के खिलाफ उसकी अपील को आउट-ऑफ-टर्न प्राथमिकता देने का भी निर्देश दिया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट को किसी मामले में फैसला करने के लिए एक समय-सारिणी तय करने के वास्ते संवैधानिक अदालत या किसी अन्य अदालत को निर्देश जारी नहीं करना चाहिए। पीठ ने 25 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा, इस मामले की एक अनोखी विशेषता है कि सुनवाई में 40 साल लग गए। इसलिए, हम हाई कोर्ट से कानून के अनुसार अपील के निपटान को प्राथमिकता देने का अनुरोध करते हैं।
पीड़िता का मामा है आरोपी
सुप्रीम कोर्ट दोषी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उच्च न्यायालय के 17 मई के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि अपीलकर्ता पीड़िता का मामा है। हाई कोर्ट ने कहा था कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और अपराध की गंभीरता को देखते हुए अपीलकर्ता की सजा को निलंबित करना उचित नहीं है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह मामला एक लड़की के साथ बलात्कार और हत्या से जुड़ा है।
1983 की घटना
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि घटना 1983 में हुई थी और मुकदमे में देरी होने के कुछ कारण हैं। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की 21 अप्रैल, 2023 को दोषसिद्धि के आदेश के साथ मुकदमा समाप्त हो गया। अपीलकर्ता इस पूरी अवधि के दौरान जमानत पर था। अपीलकर्ता की उम्र लगभग 75 वर्ष है। हाई कोर्ट के समक्ष अपील को अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
पीठ ने मुकदमे के निपटारे में देरी को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह घटना 1983 की है और अपीलकर्ता की वर्तमान आयु के मद्देनजर वह उचित कड़े नियमों और शर्तों पर उच्च न्यायालय के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक जमानत पाने का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 17 मई के आदेश को रद्द करते हुए उससे उचित कड़े नियम और शर्तें तय करने का अनुरोध किया, जिसके आधार पर अपीलकर्ता को उसकी अपील का अंतिम निपटान होने तक जमानत दी जाएगी।
जब पीठ को सूचित किया गया कि अपीलकर्ता बार का सदस्य है, तो उसने कहा कि उससे यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि शीर्ष अदालत के आदेश को ईमानदारी से लागू किया जाए और अपील का शीघ्र निपटारा किया जाए। पीठ ने कहा कि इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता किसी भी अनुचित आधार पर स्थगन का अनुरोध नहीं करेगा और अपील के शीघ्र निपटान के लिए हाई कोर्ट के साथ सहयोग करेगा।
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