कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव:क्या गलती कर बैठे हैं अशोक गहलोत,चर्चा में ये नाम
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 30 सितंबर तक नामांकन की प्रक्रिया संपन्न होनी है। चुनाव पर्यवेक्षक मधुसूदन मिस्त्री का कहना है कि अभी तक शशि थरूर ने नामांकन पत्र लिया है।
राजस्थान के सीएम हैं अशोक गहलोत
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बीच राजस्थान में पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ है कि अगला सीएम कौन। अशोक गहलोत के बारे में माना जाता था कि वो गांधी परिवार के करीबी हैं और जीत का सेहरा उनके सिर बंध सकता है। लेकिन जिस तरह से उनके समर्थक मंत्री के घर विधायकों की जमघट हुई उसके बाद केंद्रीय नेतृत्व खुद को असहज महसूस कर रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि गहलोत के बाद वो कौन से लोग हैं जो अध्यक्ष पद के लिए चुनावी रेस का हिस्सा बन सकते हैं।
ये लोग कर सकते हैं नामांकनमीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अध्यक्ष पद के चुनावी रेस में अशोक गहलोत की जगह कमल नाथ, मुकुल वासनिक, दिग्विजय सिंह संभावित उम्मीदवारा हो सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कमलनाथ, मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खड़गे या यहां तक कि दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार हो सकते हैं।एक दूसरे कांग्रेसी नेता ने कहा कि एक वैकल्पिक उम्मीदवार आदर्श रूप से उत्तर भारत से होना चाहिए, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच प्रमुख युद्ध का मैदान है। पार्टी में दक्षिण भारत का अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व है। राहुल गांधी वायनाड से सांसद हैं ... केसी वेणुगोपाल महासचिव संगठन हैं, खड़गे, कर्नाटक से विपक्ष के नेता राज्य सभा में हैं।
शशि थरूर के नाम पर रजामंदी की कमी
चुनाव लड़ने के लिए तैयार दूसरे उम्मीदवार शशि थरूर को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन नहीं मिलने की संभावना है।पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि गहलोत पर कांग्रेस के राष्ट्रपति चुनाव के लिए विचार नहीं किया जाना चाहिए और अन्य उम्मीदवारों की तलाश की जानी चाहिए। कुछ अन्य नेताओं का कहना है कि राजस्थान का मामला सुलझने के बाद ही चुनाव कराया जा सकता है।
सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने वाले नाथ ने जोर देकर कहा कि उन्हें इस पद में कोई दिलचस्पी नहीं है। जब तक कि अगले कुछ दिनों में विद्रोह का सौहार्दपूर्ण समाधान नहीं मिल जाता। माना जाता है कि गहलोत ने अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को अपने उत्तराधिकारी के रूप में संभावित परिस्थितियों के खिलाफ 92 सांसदों के विद्रोह के बाद उनके प्रति वफादारी खो दी थी। विद्रोह को गांधी परिवार के अधिकार के लिए एक सीधी चुनौती के रूप में देखा गया है
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