जिस BRICS का सदस्य है भारत, उसकी किस बात से डरे हैं US प्रेसिडेंट ट्रंप; दे डाली धमकी; समझिए दबदबे की पूरी कहानी

ब्रिक्स देशों की अपनी मुद्रा की योजना पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप काफी भड़के हुए दिख रहे हैं। ट्रंप बार-बार इस मुद्दे को लेकर धमकी दे रहे हैं। हालांकि भारत इस मामले पर साफ कर चुका है कि ऐसी किसी भी योजना प्रस्ताव नहीं है।

trump on brics

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

मुख्य बातें
  • ब्रिक्स की अपनी मुद्रा से अमेरिका खफा
  • ट्रंप ने दी टैरिफ लगाने की धमकी
  • भारत ने किया स्पष्ट, ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं

डोनाल्ड ट्रंप जब से अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, ब्रिक्स (BRICS) को लेकर कई बार धमकी दे चुके हैं। ऐसा लगता है कि ब्रिक्स को लेकर ट्रंप के मन ऐसी शंका घर कर चुकी है, जिसे लेकर वो डरे हुए हैं। ब्रिक्स का भारत भी सदस्य है और जिस मुद्दे को लेकर ट्रंप लगातार धमकी दे रहे हैं, उसपर भारत साफ कर चुका है कि ब्रिक्स की ऐसी कोई मंशा नहीं है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर इस मामले को लेकर भारत का रुख स्पष्ट कर चुके हैं।

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ब्रिक्स को लेकर ट्रंप के मन में शंका

दरअसल ट्रंप को डर है कि ब्रिक्स देश (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी करेंसी लाने की योजना बना रहे हैं, अगर ऐसा होगा तो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को बहुत बड़ी चुनौती मिलेगी, इसी को लेकर ट्रंप शायद डरे हैं और बार-बार धमकी दे रहे हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में मुद्रा लाने पर चर्चा जरूर हुई है, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।

क्या बोले ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अब यह खत्म हो चुका है कि ब्रिक्स देश डॉलर से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं और हम देखते रहे। हमें इन शत्रुतापूर्ण प्रतीत होने वाले देशों से एक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है कि वे न तो ऐसी किसी करेंसी की निर्माण करेंगे न समर्थन करेंगे, जो अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करने की मंशा रखेगा। अगर वो ऐसा करेंगे तो 100 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ेगा और अमेरिका से व्यापार को बाई-बाई करना होगा।

ब्रिक्स की मुद्रा थ्योरी

BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने अपनी अलग मुद्रा बनाने की संभावना के बारे में कुछ बार विचार किया है, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। हालांकि, BRICS देशों ने एक साझा विकास बैंक (New Development Bank - NDB) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के विकास और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है, लेकिन मुद्रा को लेकर किसी गंभीर पहल का आरंभ नहीं हुआ। BRICS देशों की अलग मुद्रा बनाने का विचार वैश्विक व्यापार और वित्तीय प्रणाली में उनके योगदान को मजबूत करने के लिए किया गया था। खासकर चीन और रूस, दोनों देशों ने इस विचार को आगे बढ़ाया है, ताकि अमेरिकी डॉलर की एकाधिकार स्थिति को चुनौती दी जा सके। पिछले साल, ब्रिक्स समूह ने एक विस्तार की घोषणा की जिसके परिणामस्वरूप चार नए सदस्य शामिल हुए: मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात। इस साल की शुरुआत में, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने ब्रिक्स देशों से वैश्विक व्यापार में डॉलर की जगह लेने के लिए एक वैकल्पिक मुद्रा बनाने का आह्वान किया था। अक्टूबर में रूस के कज़ान में सबसे हालिया ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, एक प्रतीकात्मक ब्रिक्स बैंकनोट का अनावरण किया गया था, जबकि समूह ने द्विपक्षीय व्यापार को व्यवस्थित करने के लिए अपनी स्थानीय मुद्राओं के उपयोग का समर्थन किया था।

एक साझा BRICS मुद्रा बनाने में कई तरह की चुनौतियां भी हैं:-

  • आर्थिक असमानताएं: BRICS देशों की अर्थव्यवस्थाएं बहुत अलग हैं, जैसे कि चीन की अर्थव्यवस्था काफी बड़ी है, जबकि अन्य देशों की तुलना में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाएं उसके लेवल की नहीं है। यह एक साझा मुद्रा को लागू करने में कठिनाई पैदा करता है।
  • राजनीतिक मतभेद: इन देशों के बीच राजनीतिक, रणनीतिक और कूटनीतिक मतभेद भी हैं, जिससे एक साझा मुद्रा के लिए सहयोग और समझौता बनाना कठिन हो जाता है।
  • मुद्रा नीति: एक साझा मुद्रा की स्थापना के लिए सभी देशों को एक समान मुद्रा नीति अपनानी होगी, जो आसान नहीं है। प्रत्येक देश की अपनी मुद्रा नीति और केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता है, जो एकजुट करने में मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।

भारत ने ब्रिक्स मुद्रा पर क्या कहा

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहले ही इस मुद्दे पर साफ कर दिया था कि भारत को अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने में "कोई दिलचस्पी नहीं" है। उन्होंने कहा-"जहां तक ब्रिक्स का मुद्दा है, हमने हमेशा कहा है कि भारत कभी भी डी-डॉलराइजेशन के पक्ष में नहीं रहा है, फिलहाल ब्रिक्स मुद्रा रखने का कोई प्रस्ताव नहीं है। ब्रिक्स वित्तीय लेनदेन पर चर्चा करता है...अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है, डॉलर को कमजोर करने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।"

BRICS का उद्देश्य

  • आर्थिक सहयोग और विकास: BRICS का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना और वैश्विक विकास में योगदान करना है। यह संगठन व्यापार, निवेश, और वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
  • वैश्विक शांति और सुरक्षा: BRICS देशों का संयुक्त उद्देश्य वैश्विक सुरक्षा और शांति बनाए रखना है, खासकर विकासशील देशों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए।
  • वैश्विक समस्याओं पर साझी नीति: BRICS ने संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO), और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में वैश्विक निर्णयों में अधिक आवाज उठाने का प्रयास किया है, ताकि विकासशील देशों के हितों की रक्षा हो सके।

ब्रिक्स से अमेरिका-यूरोप को कितना खतरा

ब्रिक्स की शुरुआत, शीर्ष विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के एक अलग समूह और विकसित देशों के जी 7 (इटली, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) समूह के विकल्प के रूप में शुरू हुआ। यह समूह वैश्विक स्तर पर आर्थिक सहयोग, व्यापार, और विकास के लिए काम करता है। BRICS का गठन मुख्य रूप से इन देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने और वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर संयुक्त दृष्टिकोण अपनाने के उद्देश्य से किया गया था। BRICS देशों की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हैं। ये पांच देश मिलकर वैश्विक GDP का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 25-30%) योगदान करते हैं और इनके पास वैश्विक संसाधनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह समूह वैश्विक व्यापार, निवेश, और अन्य आर्थिक मुद्दों पर एक नया दृष्टिकोण लाने की कोशिश करता है। BRICS संगठन का गठन मुख्य रूप से इस उद्देश्य के साथ हुआ था कि विकासशील देशों के विचारों को एक मंच पर लाकर वैश्विक मामलों में उनकी आवाज को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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