Ghosi By-Election: मतदान ने कुछ घंटे पहले BSP ने बढ़ाई टेंशन, अब दलित वोटर्स पर टिकी सपा-भाजपा की नजर
Ghosi By-Election: घोसी उपचुनाव में सपा और भाजपा प्रत्याशी के बीच दिख रही सीधी जंग में जातियां भी दो धड़ों में बंटी दिख रही हैं। एक मात्र बसपा का कैडर वोट कहे जाने वाले दलित मतदाताओं का रूझान बहुत कुछ तय करेगा।
घोसी उपचुनाव
Ghosi By-Election: घोसी उपचुनाव के लिए मतदान शुरू होने में कुछ घंटे ही बाकी हैं। चुनाव आयोग अपनी पूरी तैयारी कर चुका है। पोलिंग पार्टियां बूथों तक पहुंच चुकी हैं, मंगलवार यानी 5 सितंबर को सुबह 7 बजे से मतदान शुरू हो जाएगा। हालांकि, वोटिंग से कुछ घंटे पहले ही BSP ने सपा और भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। चूंकि, बसपा ने उपचुनाव में कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है, ऐसे में माना जा रहा है कि इसके मतदाता चुनावी गणित को बदल सकते हैं। इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है, जिसने जनता के बीच जमकर प्रचार किया है।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले घोसी विधानसभा सीट पर हो रहे चुनावों के परिणाम बहुत कुछ तय करने वाले हैं। इसे लोकसभा का लिटमस टेस्ट भी माना जा रहा है, जिसमें भाजपा का मुकाबला सीधे तौर पर INDIA गठबंधन से है। ऐसे में यह NDA और INDIA की कड़ी परीक्षा है। जातीय समीकरण के जरिए चुनाव लड़ रहे दोनों धड़ों की निगाहें इस समय बसपा के कैडर दलित वोटरों पर लगी हैं। सपा और भाजपा प्रत्याशी के बीच दिख रही सीधी जंग में जातियां भी दो धड़ों में बंटी दिख रही हैं। एक मात्र बसपा का कैडर वोट कहे जाने वाले दलित मतदाताओं का रूझान बहुत कुछ तय करेगा।
बसपा ने नहीं उतारा प्रत्याशी
इस उपचुनाव में बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि बसपा का वोटर जिधर जाएगा उसका पलड़ा भारी होगा। हालांकि, उपचुनाव में मतदान से पहले बसपा ने बड़ा सियासी दांव चल दिया है। बसपाई या तो घर बैठेंगे और यदि बूथ तक जाएंगे तो नोटा दबाएंगे। बसपा के इस निर्णय से घोसी के उपचुनाव में एक अलग स्थित होगी क्योंकि इस सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या बहुत है जो चुनाव को प्रभावित करने का दम रखते हैं।
मायावती ने चला ये दांव
बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि हमारी पूरी टीम आने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर लगी है। इस उपचुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के निर्देश के मुताबिक हमारे लोग भाग नहीं लेंगे। चूंकि यह चुनाव प्रलोभन देकर विधायक तोड़कर हो रहा है जिसका भार जनता पर जा रहा है, इसलिए हम इसका विरोध करते हैं। बसपा के लोग अगर अपने मत का प्रयोग करेंगे तो सिर्फ नोटा का ऑप्शन ही प्रयोग में लाएंगे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि घोसी उपचुनाव में भले ही मुकबला सपा और भाजपा के बीच में है, लेकिन बसपा का वोटर इस चुनाव का गेमचेंजर होगा। पिछले चुनाव की स्थित यही बयां कर रही है। बीते तीन चुनाव के परिणाम भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
मैदान में नहीं पर BSP की मजबूत पकड़
राजनीतिक दलों के आंकड़ों की मानें तो यहां बसपा की पकड़ अब भी मजबूत दिखाई दे रही है। 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी को 81,295 मत मिले थे। जबकि 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट मिले थे। 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 मत मिले थे। इन आंकड़ों से यही पता चलता है कि दलित मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में हैं। ज्ञात हो कि चुनाव में भाजपा ने सपा छोड़कर पार्टी में शामिल हुए पूर्व विधायक एवं मंत्री दारा सिंह चौहान को ही प्रत्याशी बनाया है। वहीं सपा ने क्षत्रिय समाज के सुधाकर सिंह पर दांव लगाया है। सुधाकर सिंह 2017 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर तीसरे और 2019 में निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस उप चुनाव में 4,30,391 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इनमें 2,31,536 पुरूष और 1,98,825 महिला मतदाता है।
90 हजार दलित मतदाता
राजनीतिक दलों के आंकड़ों की मानें तो इस क्षेत्र में सर्वाधिक करीब 90 हजार दलित मतदाता हैं। क्षेत्र में करीब 90 हजार मुस्लिम मतदाता बताए जाते हैं। पिछड़े वर्ग में 50 हजार राजभर, 45 हजार नोनिया चौहान, करीब 20 हजार निषाद, 40 हजार यादव, 5 हजार से अधिक कोइरी और करीब 5 हजार प्रजापति वर्ग के वोट हैं। अगड़ी जातियों में 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य मतदाता हैं।
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