Thakur ka Kuan Poem Controversy: कौन थे ओम प्रकाश वाल्मीकि, जानें उनकी कविता 'ठाकुर का कुआं' पर कैसे छिड़ा विवाद
Thakur ka Kuan Poem Controversy: हाल ही में राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान राजद सांसद मनोज झा द्वारा पढ़ी गई कविता 'ठाकुर का कुआं' ने अब बिहार में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जानें कौन थे 'ठाकुर का कुआं' कविता के रचयिता व क्यों छिड़ी इस पर बहस
ठाकुर का कुआं
Thakur ka Kuan Poem Controversy: हाल ही में राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर बहस चल रही थी। इस दौरान राजद सांसद मनोज झा ने 'ठाकुर का कुआं' नाम की कविता पढ़ी, जिसके बाद से बिहार में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। जानें कौन थे 'ठाकुर का कुआं' कविता के रचयिता व क्यों छिड़ी है इस पर बहस
क्यों छिड़ा है विवाद
यह तो आप जानते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक हाल ही में राज्यसभा में पास हुआ है। यह संसद के उद्घाटन के बाद महिला आरक्षण विधेयक पहला विधेयक था, जिसे पास किया गया था। अब मुद्दे पर आते हैं — महिला आरक्षण विधेयक पर राज्यसभा में बहस ही चल रही थी कि ज्यसभा सदस्य और आरजेडी नेता मनोज झा ने 'ठाकुर का कुआं' नाम की कविता पढ़ी, जिसके बाद बिहार में ठाकुर बनाम ब्राह्मण जैसी स्थिति पैदा हो गई। मामला इतना गरमा गया कि बीजेपी के ठाकुर विधायक ने मनोज झा का मुंह तोड़ने की बात कह दी जबकि एक पूर्व सांसद ने मनोज झा की जुबान खींचने की बात कही।
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किसने लिखी 'ठाकुर का कुआं'
'ठाकुर का कुआं' नाम की कविता दलित साहित्य का लेखन करने वाले ओम प्रकाश वाल्मीकि ने लिखी। ओम प्रकाश वाल्मीकि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर जिले से हैं, इन्होंने इस कविता को 1981 में लिखा था।
'ठाकुर का कुआं' का इतिहास
यह कविता 1981 में लिखी गई थी, लेकिन जब 1989 में ओम प्रकाश वाल्मीकि का पहला कविता संग्रह ‘सदियों का संताप’ जारी हुआ, तब यह सबके सामने आई या यूं कहें कि प्रसिद्ध हुई।
कौन थे ओम प्रकाश वाल्मीकि
'ठाकुर का कुआं' कविता के लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि का जन्म 3 जून 1950 को यूपी के मुजफ्फरनगर के दलित किसान परिवार में हुआ। उनका शुरुआती जीवन आर्थिक और सामाजिक दिक्कतों के बीच बीता। उनकी आत्मकथा का नाम 'जूठन' है। इन्होंने पढ़ाई में एम.ए. किया है। इसके बाद यह महाराष्ट्र में रहे और यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं से प्रभावित होकर उन्होंने भी लेखक कार्य शुरू किया। ओम प्रकाश वाल्मीकि की मृत्यु 17 नवंबर 2013 को देहरादून में कैंसर की वजह से हुई थी।
इस कविता पर छिड़ी है विवाद
चूल्हा मिट्टी का,
मिट्टी तालाब की,
तालाब ठाकुर का.
भूख रोटी की,
रोटी बाजरे की,
बाजरा खेत का,
खेत ठाकुर का.
बैल ठाकुर का,
हल ठाकुर का,
हल की मूठ पर हथेली अपनी,
फसल ठाकुर की.
कुआं ठाकुर का,
पानी ठाकुर का,
खेत-खलिहान ठाकुर के,
गली-मोहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
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उत्तर प्रदेश की राजधानी, नवाबों के शहर लखनऊ का रहने वाला हूं। स्कूली शिक्षा, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री सब इसी शहर से प्राप्त की। मीडिया क्ष...और देखें
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