Varanasi News: वाराणसी में मां शैलपुत्री के सबसे पुराने मंदिर की यात्रा, नवरात्र में काशी-विश्वनाथ से ज्यादा होती है भीड़

Varanasi News: नवरात्र का प्रथम दिन मां शैलपुत्री का होता है। जो हिमालय की पुत्री हैं, परंतु मां शैलपुत्री ने रहने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी को चुना था। वरुणा नदी के किनारे मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है। जहां पर मां शैलपुत्री खुद से विराजमान हुईं।

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महादेव से नाराज होकर यहां रहने आई थीं पार्वती।

मुख्य बातें
  1. काशी के वरुणा नदी के किनारे स्थित है मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर
  2. इस मंदिर में शिवलिंग के ऊपर विराजमान है देवी मां
  3. नवरात्र में बड़ी संख्या में जुटते है श्रद्धालु

Varanasi News: नवरात्र का प्रथम दिन मां शैलपुत्री का होता है। जो हिमालय की पुत्री हैं, परंतु मां शैलपुत्री ने रहने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी को चुना था। वाराणसी की वरुणा नदी के किनारे मां शैलपुत्री का यह प्राचीन मंदिर स्थित है। भारत देश में ये इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर मां शैलपुत्री खुद से विराजमान हुईं। वहीं अन्य दूसरे शक्तिपीठों में मां शैलपुत्री की प्रतिमा और पिंडियों का दर्शन-पूजन होता हैं।

मंदिर वाराणसी के अलईपुरा क्षेत्र में है स्थित

मां शैलपुत्री मंदिर के पुजारी के अनुसार- मान्यता है कि, जब मां शैलपुत्री किसी बात पर भोलेनाथ से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गई थी, तो कुछ दिनों के बाद बाबा भी उन्हें मनाने यहां पर आए। परंतु उन्होंने देखा कि, मां वरुणा नदी के किनारे उनकी तपस्या कर रही थीं। तब महादेव ने उनसे वापस कैलाश चलने का निवेदन किया। लेकिन मां शैलपुत्री को वरुणा नदी का किनारा इतना अच्छा लगने लगा थी कि, उन्होंने वापस जाने से महादेव को मना कर दिया था। मां शैलपुत्री ने चलने से मना कर दिया तो महादेव उन्हें काशी में अकेला छोड़ कर कैलाश चले गए थे। तब से मां शैलपुत्री यहीं पर विराजमान हैं।

माता के साथ ही होती है शिवलिंग की पूजा

वाराणसी का प्राचीन शैलपुत्री मंदिर दूसरे शक्तिपीठों से बहुत ही अलग है। यहां पर मंदिर के गर्भग्रह में मां शैलपुत्री के साथ ही शैलराज शिवलिंग भी मौजूद है। भारत देश का यही ऐसा भगवती मंदिर है, जहां पर शिवलिंग के ऊपर देवी मां विराजमान है। वहीं मंदिर का जो रंग है वो गहरा लाल है, क्योंकि यही रंग मां शैलपुत्री को पसंद है। मंदिर परिसर से मात्र 150 मीटर की दूरी पर वरुणा नदी है। हिमालय से आकर मां शैलपुत्री काशी में इसी जगह पर तप करने के लिए बैठी हुई थीं। इस मंदिर का आधार खुद मां भगवती ही हैं।

नवरात्र के प्रथम दिन होती है अधिक श्रद्धालुओं की भीड़

नवरात्र के शुरू होने पर प्रथम दिन इस मंदिर परिसर श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ होती है कि पैर तक रखने की जगह नहीं होती है। मां शैलपुत्री की सुबह 8 बजे मंगला आरती के बाद रात 12 तक श्रद्धालु मंदिर में मां शैलपुत्री के दर्शन करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु देवी पर लाल चुनरी, लाल फूल और सुहाग का सामान चढ़ाया करते हैं। हर वर्ष नवरात्र में यहां 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।

आरती में हलवा-चना और मालपुआ का भोग

इसमें भी सबसे अधिक प्रथम दिन भीड़ होती है। प्रथम दिन तो बाबा विश्वनाथ के मंदिर से भी अधिक भीड़ यहां पर रहती है। वहीं महिलाएं हवन-पूजन कर मां शैलपुत्री से अपने सुहाग की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना किया करती हैं। वाराणसी में भगवान विश्वनाथ के साथ मां विशालाक्षी और शैलपुत्री विराजती हैं। पूरे देश में देवी शैलपुत्री का सबसे प्राचीन मंदिर वाराणसी में वरुणा नदी के किनारे है, मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां पर मां शैलपुत्री की तीन बार आरती की जाती है। मां शैलपुत्री का पंसदीदा हलवा-चना और मालपुआ प्रसाद में अर्पित किया जाता है।

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