Vaishakha Amavasya Vrat Katha: वैशाख अमावस्या के दिन उपवास रखने वाले लोग जरूर पढ़ें ये कथा, नहीं तो अधूरा रह जाएगा व्रत

Vaishakha Amavasya Vrat Katha 2025 (वैशाख अमावस्या कथा): वैशाख महीने में पड़ने वाली अमावस्या को वैशाख अमावस्या के नाम से जाना जाता है। जो इस साल 27 अप्रैल को पड़ी है। शास्त्रों अनुसार इस अमावस्या पर धर्म-कर्म के कार्य करना जैसे स्नान-दान, पूजा-पाठ और पितरों का तर्पण करना बेहद शुभ माना जाता है। चलिए जानते हैं इस अमावस्या की कथा क्या है।

Vaishakha Amavasya Vrat Katha

वैशाख अमावस्या कथा

Vaishakha Amavasya Vrat Katha 2025 (वैशाख अमावस्या कथा): हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार वैशाख अमावस्या पितरों को मोक्ष दिलाने वाली तिथि होती है। इसलिए इस तिथि का धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व माना गया है। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और विधि विधान पूजा करते हैं। कहते हैं इस दिन उपवास रखने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर-परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। चलिए जानते हैं इस दिन के व्रत में कौन सी कथा पढ़नी चाहिए।

Vaishakh Amavasya Puja Vidhi And Time Check Here

वैशाख अमावस्या की व्रत कथा (Vaishakh Amavasya Ki Vrat Katha)

वैशाख अमावस्या की पौराणिक कथा अनुसार बहुत समय पहले की बात है। धर्म वर्ण नाम के एक ब्राह्मण रहा करते थे। जो बेहद ही धार्मिक स्वभाव के थे। वो हमेशा व्रत-उपवास करते रहते थे और ऋषि-मुनियों का बहुत आदर करते और उनसे ज्ञान ग्रहण करते रहते थे। एक दिन उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलयुग में भगवान विष्णु के नाम के स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं होता है। धर्म वर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण के लिए निकल गए

एक दिन घूमते-घूमते वह पितृलोक में पहुंचे। जहां उन्होंने देखा कि उनके पितर बहुत कष्ट भोग रहे हैं। पितरों ने ब्राह्मण को बताया कि उनकी ऐसी हालत उसके संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई बाकी नहीं बचा है। तब पितरों ने कहा कि अगर तुम वापस जाकर अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो और संतान उत्पन्न करो तो हमें इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करने के लिए भी कहा। पितरों की बात सुनने के बाद धर्मवर्ण ने उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने का वचन दिया। इसके बाद धर्मवर्ण ने अपना संन्यासी जीवन छोड़ दिया और वह फिर से सांसारिक जीवन में आ गए। फिर वैशाख अमावस्या की तिथि को उन्होंने विधि-विधान से पिंडदान किया और अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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