उदासी दूर करने के लिए स्क्रॉल करते हैं Reels, खतरनाक है तुरंत हंसने का ये तरीका, डॉक्टर से जानें ऐसे खुश होने के नुकसान

Social Media Scrolling Affect On Mental health: आज के समय में लोगों के लिए सोशल मीडिया खुश रहने का सबसे अच्छा तरीका बन गया है। लोग जब भी उदास होते हैं, वह मोबाइल में रील्स स्क्रॉल करना शुरू कर देते हैं और दांत फाड़कर हंसते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस तरह रील्स देखकर खुश होना आपके स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक हो सकता है। इस लेख में डॉक्टर से जानें क्यों नुकसानदेह है इस तरह खुश होना।

Social Media Scrolling Affect On Mental health

Social Media Scrolling Affect On Mental health

Social Media Scrolling Affect On Mental health: आजकल जैसे ही मूड खराब होता है या अकेलापन महसूस होता है, हम सीधे फोन उठाते हैं और सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लगते हैं। इंस्टाग्राम पर मजेदार रील्स और मीम्स हमारी उदासी को कुछ समय के लिए भुला देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह आदत असल में आपकी मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है? जब हम बार-बार रील्स देखते हैं, तो हमारा दिमाग तात्कालिक खुशी का आदी हो जाता है।

लेकिन जैसे ही स्क्रीन से नजर हटती है, वही उदासी और खालीपन लौट आता है। यही नहीं, यह आदत ध्यान भटकाने, नींद खराब करने और असली खुशियों से दूर करने का कारण बन सकती है। सोशल मीडिया स्क्रोल करके खुश होना हमारे मानसिक स्वास्थ्य कैसे प्रभावित करता है, इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद की मनोचिकित्सक डॉ. मीनाक्षी जैन से बात की, जो सायकायट्री विभाग में सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर हैं। जानने के लिए आगे पढ़ते रहें...

रील्स से मिलने वाली खुशी असली नहीं होती!

मनोचिकित्सक डॉ. मीनाक्षी बताती हैं कि "जब हम रील्स देखते हैं और हंसते हैं, तो हमारे दिमाग में एक खास केमिकल रिलीज होता है जिसे डोपामिन कहते हैं। यह हमें अच्छा महसूस कराता है, लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकती। जैसे ही हम स्क्रॉल करना बंद करते हैं, फिर वही उदासी लौट आती है। और फिर हम फिर से फोन उठाते हैं और यह साइकिल चलती रहती है।"

इस आदत के नुकसान क्या हैं?

  • असली खुशियों से दूर: हम छोटी-छोटी खुशियों को नजरअंदाज करने लगते हैं और असली दुनिया से कटने लगते हैं।
  • ध्यान भटकता है: पढ़ाई या काम में फोकस करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बार-बार फोन देखने की आदत लग जाती है।
  • मेंटल हेल्थ पर असर: जब हमें सोशल मीडिया से डोपामिन नहीं मिलता, तो हम चिड़चिड़े और बेचैन हो जाते हैं।
  • नींद खराब होती है: देर रात तक फोन चलाने से दिमाग एक्टिव रहता है और गहरी नींद नहीं आती।
  • खर्च बढ़ सकता है: सोशल मीडिया पर दिखाए गए ट्रेंड्स और विज्ञापन हमें बिना सोचे-समझे खर्च करने के लिए उकसाते हैं।
  • इमोशनल डिपेंडेंसी: धीरे-धीरे सोशल मीडिया ही खुशी का एकमात्र जरिया बन जाता है, जिससे असल ज़िंदगी की खुशियां फीकी लगने लगती हैं।

क्या सोशल मीडिया पूरी तरह छोड़ना होगा?

नहीं, सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करना सीखना जरूरी है, उसे पूरी तरह छोड़ना समाधान नहीं है। बस आपको सही तरीके से इसे मैनेज करने की जरूरत है, इसके लिए आप कुछ सरल टिप्स फॉलो कर सकते हैं,

  • सोशल मीडिया का समय तय करें: हर समय फोन देखने के बजाय, दिन में एक या दो बार ही चेक करें।
  • रियल लाइफ में खुशियां ढूंढें: बाहर टहलें, दोस्तों से मिलें, परिवार के साथ समय बिताएं।
  • कोई नया शौक अपनाएं: पढ़ना, लिखना, पेंटिंग करना या गार्डनिंग जैसे काम आपको असली खुशी दे सकते हैं।
  • फिजिकल एक्टिविटी करें: एक्सरसाइज़ करने से भी डोपामिन रिलीज़ होता है, जो नेचुरल और हेल्दी तरीका है खुश रहने का।
  • माइंडफुलनेस अपनाएं: ध्यान (मेडिटेशन) और गहरी सांस लेने की तकनीक से मानसिक शांति पाई जा सकती है।

असली खुशी कहां मिलेगी?

रील्स देखना बुरा नहीं है, लेकिन जब यह आपकी असली खुशियों की जगह लेने लगे, तो सतर्क हो जाना चाहिए। खुश रहना जरूरी है, लेकिन असली खुशी वो होती है जो लंबे समय तक रहे, न कि कुछ सेकंड के लिए। असली रिश्तों, अनुभवों और खुद की मानसिक शांति का ध्यान रखें, यही सच में खुशी पाने का सबसे अच्छा तरीका है।

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Vineet author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर चीफ कॉपी एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से दिल्ली का रहने वाला हूं। हेल्थ और फिटनेस जुड़े विषयों में मेरी खास दिलचस्पी है।...और देखें

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