मर्ज की दवा देते-देते गीतकार बन गए मजरूह सुल्तानपुरी, देने लगे दिल के दर्द की दवा
मजरूह सुल्तानपुरी मरीजों को दवा दिया करता था लेकिन एक मुशायरे ने उनकी जिंदगी बदल दी। इस मुशायरे ने उन्हें हिंदी सिनेमा का महान गीतकार बना दिया।

Untold story of famous lyricist
फिल्म बुढ्ढा मिल गया का गाना 'रात अकेली एक ख्वाब में आई' हो, या कालिया फिल्म का गाना 'जहां तेरी ये नजर है' हो, सीआईडी फिल्म का गाना 'लेके पहला पहला प्यार' हो, या हम किसी से कम नहीं फिल्म का गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' हो, मजरूह सुल्तानपुरी ने ऐसे नगमे लिखे जो अमर हो गए। साल 1945 में मजरूह सुल्तानपुरी जिगर मुरादाबादी के साथ वह मुशायरे में शामिल होने मुंबई चले गए। मुशायरे में राशिद कारदार भी मौजूद थे। मजरूह साहब ने ऐसी शायरी पढ़ी कि तालियां बजने लगीं।
मुशायरा खत्म हुआ तो राशिद कारदार ने जिगर मुरादाबादी से अपनी फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने की पेशकश की तो जिगर ने मजरूह से लिखवाने की बात कह दी। फिल्म शाहजहां 1946 में रिलीज हुई और इसमें मजरूह साहब का पहला गाना 'जब दिल ही टूट गया...हम जी के क्या करेंगे...' शामिल हुआ। इस गीत का संगीत नौशाद ने दिया और इसे आवाज दी थी के.एस सहगल ने। वह ऐसे गीतकार थे जिनके गीतों ने मोहब्बत की गहराई बताई और हर इश्क करने वाले को उसे बयां करने की जुबां दी।
दिग्गज गायक मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले, शमशाद बेगम के वह प्रिय गीतकार थे। फिल्म दोस्ती के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे' के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किश था। वह इस दुनिया से 24 मई, 2000 को 80 साल की उम्र में रुख्सत हो गए। मजरूह पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के सम्मान दिया गया। फिल्म दोस्ती के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे..आवाज मैं न दूंगा..' के लिए दिया गया था।
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