'5 साल की उम्र में पहला नाटक, पृथ्वी थिएटर की नींव रखने में की पिता की मदद...' पत्रकार प्रदीप सरदाना ने पलटे थिएटर संग राज कपूर के गहरे रिश्ते के कई पन्ने
पत्रकार प्रदीप सरदाना राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में आयोजित ‘राज कपूर जन्म शताब्दी’ व्याख्यान में शामिल हुए, जहां उन्होंने राज कपूर के थिएटर संग गहरे नाते पर बात की। प्रदीप सरदाना ने बताया कि राज कपूर बड़े होकर भारत के पहले शोमैन बने, जिसमें थिएटर की अहम भूमिका थी। राज कपूर 5 साल की उम्र से ही थिएटर से जुड़े हुए थे, जिस कारण वो एक कलाकार के तौर पर इतने समृद्ध थे।

pradeep sardana
महान फिल्मकार राज कपूर ने सिनेमा को जो योगदान दिया उसे दुनिया जानती है, लेकिन राज कपूर का रंगमंच से भी गहरा नाता रहा। नाट्य जगत के लिए भी उन्होंने बहुत कुछ किया। राज कपूर की जड़ों में रंगमंच की ही शक्ति थी। वरिष्ठ पत्रकार और विख्यात फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने 14 फरवरी की शाम को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में आयोजित ‘राज कपूर जन्म शताब्दी’ व्याख्यान में शामिल हुए और उन्होंने राज कपूर और नाट्य मंच के रिश्ते पर अपने विचार रखे। इन दिनों विश्व के सबसे बड़े नाट्य उत्सव ‘भारत रंग महोत्सव’ का आयोजन भी चल रहा है, जिसमें प्रदीप सरदाना ने कहा, 'राज कपूर ने 37 बरस पहले मुझसे बातें करते-करते जब सदा के लिए आंखें मूँद ली थीं तो मैं अवाक रह गया था।'
राज कपूर के साथ अपने बरसों के अनुभव और संस्मरण सुनाते हुए प्रदीप सरदाना ने महान फिल्मकार को लेकर ऐसी बहुत सी बातें शेयर कीं, जिन्हें सुन सभी मंत्रमुग्ध हो गए। सरदाना ने कहा, 'राज कपूर ने 5 वर्ष की उम्र में अपना पहला नाटक ‘द टॉय कार्ट’ किया था। बाद में जब उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में अपने ‘पृथ्वी थिएटर’ की शुरुआत की तो पृथ्वी के पहले नाटक ‘शकुंतला’ की सेट डिजायन से प्रकाश और संगीत व्यवस्था का जिम्मा राज कपूर ने संभाला। साथ ही राज कपूर ने नाटक ‘दीवार’ में तो रामू की ऐसी भूमिका की, जिसके बाद फिल्मों तक में नौकर की भूमिका करने वाले चरित्र का नाम रामू या रामू काका हो गया। राज कपूर का यह नाट्य जगत से लगाव ही था कि 1948 में जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘आग’ बनाई तो उसकी कहानी भी नाट्य जगत से जुड़ी थी।
बात करते हुए ही वह कोमा में चले गए
प्रदीप सरदाना ने यह भी कहा कि राज कपूर ने अपनी ‘आवारा’ फिल्म से अपने नाम के साथ भारत के नाम को भी दुनिया में बुलंद किया। रूस, ताशकंद, ईरान और चीन जैसे कितने ही देशों में आज भी राज कपूर का जादू बरकरार है। राज कपूर से पहले और उनके बाद कितने ही अच्छे और दिग्गज फिल्मकार देश में आए लेकिन उन जैसा ग्रेट शोमैन आजतक कोई और नहीं हुआ। यह संयोग था या उनसे पूर्व जन्म का कोई रिश्ता 1988 में राष्ट्रपति से फाल्के सम्मान लेने से पूर्व ही राज कपूर को जब अस्थमा का भयावह दौरा पड़ा तब मैं ही उन्हें राष्ट्रपति भवन की एंबुलेंस से एम्स लेकर गया। उनकी अंतिम चेतनावस्था में अस्पताल में उनकी पत्नी और मैं ही उनके साथ थे। जहां मुझसे बात करते हुए ही वह कोमा में चले गए थे।'
100 बरस के दस्तावेज समेटे हुए हैं
इस व्याख्यान में रंगमंच और सिनेमाई दुनिया के कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद रहे। समारोह में एनएसडी के पूर्व निदेशक और वर्तमान में ‘गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी’ के निदेशक दिनेश खन्ना ने प्रदीप सरदाना का स्वागत करते हुए कहा,"आज देश में सिनेमा के अच्छे समीक्षक और ज्ञाता बहुत कम रह गए हैं, लेकिन प्रदीप सरदाना अपने में सिनेमा का 100 बरस के दस्तावेज समेटे हुए हैं। उनकी स्मृतियों में ऐसे हजारों संस्मरण हैं जिन्हें घंटों दिलचस्पी के साथ सुना जा सकता है।"
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