बेनेट यूनिवर्सिटी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन को संबोधित करते कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल।
ग्रेटर नोएडा। बेनेट यूनिवर्सिटी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल शामिल हुए। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन सेंटर फॉर फैमिली लॉ, बेनेट लॉ स्कूल, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम, यूनाइटेड किंगडम के सहयोग से आयोजित किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने उद्घाटन भाषण में 19वीं शताब्दी में भारत में लागू हुए डॉक्ट्रिन ऑफ इक्लिप्स, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858, और बाद में लागू हुए भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) तथा साक्ष्य अधिनियम जैसे प्रमुख विधिक सिद्धांतों और कानूनों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख किया। उन्होंने इन कानूनों की दार्शनिक आधारभूमि की चर्चा करते हुए बताया कि कैसे स्वतंत्रता के बाद भी दंड आधारित सोच (दंड का सिद्धांत) कानूनों में बनी रही, जबकि हाल ही में किए गए विधायी सुधारों में 'न्याय' की भावना को केंद्र में रखा गया है।
सम्मेलन के मुख्य विषय से जुड़ते हुए इंटरसेक्शनैलिटी की अवधारणा ने कहा कि 'इंटरसेक्शनैलिटी' भारत के सांस्कृतिक और दार्शनिक चिंतन में कोई नई बात नहीं है। उन्होंने राजस्थान की मैना बाई के उदाहरण से समझाया कि किस प्रकार उन्होंने सामाजिक पहचान को केवल लिंग आधारित न मानकर मानवता के व्यापक दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने मैना बाई की स्वामी विवेकानंद से हुई भेंट का उल्लेख करते हुए भजन "प्रभु जी मेरे अवगुण चित न धरो" गाकर इस बात को रेखांकित किया कि कैसे शारीरिक अक्षमता सामाजिक अदृश्यता और बहिष्कार का कारण बन सकती है।
कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि इंटरसेक्शनैलिटी की अवधारणा और लिंग से परे सोचने की प्रवृत्ति न्याय व्यवस्था को अधिक समावेशी और मानवीय बना सकती है। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदानों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर यह स्मरणीय है कि डॉ. अंबेडकर ने कार्य घंटे सीमित करने और मातृत्व अवकाश जैसे अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 (महिला आरक्षण विधेयक) को भी समावेशी दृष्टिकोण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और इस बात पर बल दिया कि न्याय केवल लिंग के द्वैध में सीमित न रहे, बल्कि समाज के हाशिए पर रह रहे वर्गों के जटिल अनुभवों को भी संबोधित करे।
इस उद्घाटन समारोह में संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (ICPS), नई दिल्ली की निदेशक डॉ. सीमा कौल सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया। इसके अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के ग्लोबल लीगल एजुकेशन के प्रोफेसर प्रो. पॉल मैककॉनेल ने भी शिरकत की, जो विधिक शिक्षण और मानवाधिकार शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ माने जाते हैं।
समारोह में अन्य प्रमुख अतिथियों में कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार के विधायी विभाग के सचिव डॉ. राजीव मणि तथा तेल इंडिया लिमिटेड (महानवरत्न पीएसयू), पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के मानव संसाधन निदेशक डॉ. अंकुर बरुआ भी उपस्थित रहे। इस एकदिवसीय सम्मलेन में जेंडर जैसे सेंसिटिव विषय पर चर्चाएं हुई जिसमे प्रतिभागियों ने अपने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
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