वाराणसी

सुर सम्राट छन्नूलाल के निधन के बाद परिवार में कलह शुरू, भाई और बहन आमने-सामने

महान भारतीय शास्त्रीय गायक छन्नूलाल महाराज के निधन के बाद ही परिवार में कलह शुरू हो गया है। भाई-बहन के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया। महाराज छन्नूलाल की बेटी ने भाई पर पिता का विधि विधान से अंतिम संस्कार न करने का आरोप लगाया है।

music maestro Chhannulal

सुर सम्राट छन्नूलाल के निधन के बाद परिवार में कलह शुरू (Photo - X)

महान भारतीय शास्त्रीय गायक छन्नूलाल महाराज की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि उनके परिवार में कलह शुरू हो गया है। बेटी नम्रता मिश्रा और बेटे रामकुमार के बीच में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। बेटी नम्रता ने अपने बड़े भाई पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि बड़े भाई ने पिता छन्नूलाल महाराज का विधि विधान से अंतिम संस्कार नहीं किया।

विधि विधान से नहीं किया अंतिम संस्कार

सुर सम्राट छन्नूलाल मिश्र का 2 अक्टूबर को मिर्जापुर स्थित अपनी बेटी के आवास पर निधन हो गया था। वह लंबी बीमारी से ग्रस्त थे। उनके निधन पर राष्ट्रपति प्रधानमंत्री समेत तमाम लोगों ने शोक संवेदना व्यक्त की थी। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ छन्नूलाल मिश्र को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके आवास पर भी पहुंचे थे। इस बीच छन्नूलाल की बेटी नम्रता मिश्रा ने अपने बड़े भाई रामकुमार मिश्रा पर गंभीर आरोप लगा दिए हैं।

उनका कहना है पिता छन्नूलाल का जीवन अध्यात्म को समर्पित रहा। आखिरी वक्त तक वो हिंदू रीति रिवाजों का पालन करते रहे। लेकिन उनकी 13वीं न करना कहीं ना कहीं उनकी आत्मा को ठेस पहुंचाने की तरह है। उनकी बेटी ने कहा की भाई रामकुमार मिश्रा द्वारा 13 दिन तक विधि विधान से तेरहवीं करने की बजाय कुछ दिन में वह लौट गए। इन अवस्थाओं में निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया, जिसके बाद उनकी बेटी द्वारा विधि विधान से 13 दिन तक सनातन परंपरा के तहत 13वीं को पूरा किए जाने का निर्णय लिया है।

पिता को हिंदू धर्म शास्त्रों में अटूट विश्वास था

पंडित छन्नूलाल मिश्रा की बेटी नम्रता मिश्रा ने कहा कि पिताजी राम नाम का सुमिरन करते हुए ही अपनी अंतिम सांस ली। हिंदू धर्म शास्त्रों और परंपराओं में उनका अटूट विश्वास रहा है। इतना ही नहीं जब कोविड में मां और बहन का निधन हुआ था उस दौरान वह अंतिम संस्कार से जुड़ी हुई इन क्रियाकर्मों में देरी पर बेचैन हो गए थे, जिसके बाद पिशाच मोचन पर पूजा करवाई गई थी। अब ऐसी स्थिति में जो व्यक्ति अपने परिजनों के लिए और दूसरे लोगों के लिए इन नियमों को लेकर इतना पाबंद रहता है तो यह कहां का न्याय संगत है कि उनके ही अंतिम संस्कार क्रियाकर्मों से जुड़े हुए इन कार्यों को 13 दिन की बजाय तीन दिन में ही करके मुक्त हो जाया जाए।

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आशुतोष सिंह
आशुतोष सिंह Author
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