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Ratan Tata के जाने के 1 साल बाद ही विरासत पर मंडराया संकट, सत्ता संघर्ष ने बढ़ाई चिंता, टाटा समूह का 'सुनहरा युग' खतरे में?

आपको बता दें कि टाटा ग्रुप में टाटा संस की 66%, मिस्त्री परिवार के पास 18.4%, टाटा ग्रुप कंपनीज के पास 13% और 2.6% अन्य के पास है। हाल के दिनों में यह विवाद तब और बढ़ गया जब टाटा संस के नामांकित निदेशक विजय सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

टाटा ग्रुप में विवाद

टाटा ग्रुप में विवाद

भारत के दिवंगत बिजनेसमैन, बेहतरीन इंसान और टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की आज पुण्यतिथि है। पिछले साल आज के दिन यानी 9 अक्टूबर, 2024 को रतन टाटा ने 86 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा था। आज पूरा देश उनके बेहतरीन काम को याद कर रहा है। रतन टाटा ने टाटा समूह की विरासत को न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक फैलाया। उन्होंने आम से खास के बीच 'टाटा' को विश्वास का दूसरा पर्यायवाची शब्द बनाया। शायद इसलिए आज करोड़ों लोग टाटा ब्रांड पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं। रतन टाटा ने अपनी सूझबूझ से वैश्विक ताकतों के बीच स्वेदशी का पताका पहराया। इसी का परिणाम है कि टाटा नमक से लेकर टाटा स्टील ने घर-घर अपनी पहचान बनाई, लेकिन अफसोस कि उनके जाने के ठीक 1 साल बाद ही टाटा समूह का 'सुनहरा युग' सत्ता संघर्ष के कारण खतरे में है! आइए जानते हैं कि टाटा समूह में ताजा विवाद की जड़ में क्या है और कैसे यह टाटा समूह की ब्रांड इमेज को धूमिल कर रहा है?

रतन टाटा के निधन के बाद विवाद की क्या वजह?

रतन टाटा के जाने के बाद, उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि यह निर्णय ट्रस्ट के भीतर सर्वसम्मति से नहीं लिया गया था। इसके बाद, ट्रस्ट के भीतर एक गुट बन गया जिसमें मेहली मिस्त्री जैसे ताकतवर पुराने सदस्य शामिल थे, जो नोएल टाटा और टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन के फैसलों में सीधा हस्तक्षेप चाहते थे। इसके बाद दो गुटों में बंटा टाटा ट्रस्ट में आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई।

ट्रस्ट की आंतरिक लड़ाई का सबसे ज्यादा असर टाटा संस के बोर्ड पर पड़ा, जहां कुछ नामित निदेशकों के सेवानिवृत्त होने के कारण सीटें खाली हो गईं। टाटा ट्रस्ट्स को इन सीटों पर नए सदस्यों की नियुक्ति करनी थी, लेकिन नोएल टाटा और मिस्त्री समूह के नेतृत्व वाला समूह किसी भी नाम पर सहमत नहीं बनी। यहां तक कि उदय कोटक जैसे बड़े नामों को भी खारिज कर दिया गया। आसान शब्दों में कहे तो टाटा ट्रस्ट में कथित तौर पर दो धड़े बन गए हैं। एक धड़ा नोएल टाटा के और दूसरा गुट साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री के साथ बताया जा रहा है।

आपको बता दें कि टाटा ग्रुप में टाटा संस की 66%, मिस्त्री परिवार के पास 18.4%, टाटा ग्रुप कंपनीज के पास 13% और 2.6% अन्य के पास है। हाल के दिनों में यह विवाद तब और बढ़ गया जब टाटा संस के नामांकित निदेशक विजय सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। नोएल टाटा चाहते थे कि विजय सिंह बोर्ड में बने रहें, लेकिन मिस्टी समूह ने उनकी पुनर्नियुक्ति को स्वीकार नहीं किया।

सरकार को करना पड़ा हस्तक्षेप

टाटा समूह में विवाद इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार को दखल देना पड़ा है। मिली जानकारी के अनुसार, गृह मंत्री अमित शाह ने नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन से मुलाकात की और सख्त निर्देश दिए कि टाटा समूह में स्थिरता लायी जाए और मजबूत कदम उठाए जाएं।

टाटा समूह
टाटा समूह

रतन टाटा के रहते ऐसी नौबत कभी नहीं आई

दशकों तक ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे रतन टाटा अपने व्यापक अधिकार के लिए जाने जाते थे। टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्टियों और नामित निदेशकों ने टाटा संस द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों की पुष्टि करने के उनके अधिकार को शायद ही कभी चुनौती दी हो। उनके कार्यकाल के दौरान, टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के बीच तालमेल उनके व्यक्तिगत प्रभाव के कारण सुनिश्चित हुआ। सूत्रों का कहना है कि नोएल टाटा अब तक ऐसा अधिकार हासिल नहीं कर पाए हैं। हालांकि वे रतन टाटा के उत्तराधिकारी के रूप में निर्विरोध चुने गए थे।

ताजा विवाद में क्या है दांव पर?

टाटा ट्रस्ट का सामंजस्य लंबे समय से टाटा ग्रुप की स्थिरता की नींव रही है। अगर इसमें टूटा आती है, तो यह समूह की 26 सूचीबद्ध कंपनियों पर असर डाल सकता है, जिनकी मार्केट कैप 328 अरब डॉर (31 मार्च 2025) थी। इस विवाद को हल निकालने के लिए टाटा ट्रस्ट्स का बोर्ड 10 अक्टूबर को बैठक करेगा, जिसे शासन, पारदर्शिता और सूचीकरण संबंधी समूह के रुख पर संकेत देने वाला माना जाएगा। इस बैठक में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वे ट्रस्टीज़ को एक संगठित रुख पर एकजुट कर सकते हैं, जो नियमक मांगों, समूह रणनीति और पारिवारिक संबंधों के बीच संतुलन बनाए रखे। यह न केवल नोएल टाटा के नेतृत्व को परिभाषित करेगा, बल्कि भारत के सबसे महत्वपूर्ण समूह की अगली शासन अध्याय को भी तय करेगा।

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आलोक कुमार
आलोक कुमार Author

आलोक कुमार टाइम्स नेटवर्क में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट मीडिया में उन्हें 17 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव ह... और देखें

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