शरद पूर्णिमा हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पावन रात्रि मानी जाती है। यह रात न केवल चंद्रमा की सम्पूर्णता का प्रतीक है, बल्कि अध्यात्म, आरोग्य और शुद्ध प्रेम का भी प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर, मन और आत्मा तीनों को शुद्ध करने में सहायक माने जाते हैं। इस रात खीर बनाकर उसे चाँदनी में रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है, जो उसे केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रसाद बना देती है। लेकिन अगर खीर बनाने में कुछ त्रुटियाँ हो जाएँ, तो उसकी आध्यात्मिक प्रभावशीलता कम हो सकती है। आइए जानें कि शरद पूर्णिमा की खीर बनाते समय कौन-सी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए।
1. अशुद्ध मन और रसोई
खीर बनाते समय मन में क्रोध, जल्दबाज़ी या नकारात्मकता नहीं रखनी चाहिए। खीर बनाते समय शांत मन से भजन या मंत्रों का जप करें। रसोई को साफ रखें और स्नान करके पाक कार्य करें।
2. सामग्री की अशुद्धता
खीर बनाने के लिए बासी, पुरानी या अशुद्ध सामग्री का भूलकर भी प्रयोग न करें। ताज़ा दूध, साफ़ चावल और शुद्ध घी व मेवे का प्रयोग करें। जो वस्तुएँ प्रसाद में अर्पित होंगी, वे पवित्र होनी चाहिए।
3. खीर को जल्दी में बनाना
खीर को जल्दी-जल्दी बना लेना, ध्यान न लगाना गलत है। खीर को धीमी आँच पर प्रेम और ध्यान से पकाएँ। यह समय ध्यान और भक्ति का हो सकता है।
4. रखने की विधि में लापरवाही
खीर को ढक कर रखना या पूरी रात खुले में छोड़ देना आपकी सबसे बड़ी गलती होगी। खीर को एक साफ़ चाँदी या मिट्टी के पात्र में रखें, ऊपर जाली या पतला कपड़ा रखें ताकि चंद्र किरणें सीधे पड़ सकें। 1-2 घंटे पर्याप्त होते हैं।
5. खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण न करना
खीर को केवल मिठाई समझकर खाना गलत माना जाता है। खीर को पहले प्रभु को अर्पित करें, फिर इसे प्रसाद रूप में श्रद्धा और संयम से ग्रहण करें।
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