शरीर की 72 हजार नाड़ियों में से सबसे प्रमुख हैं ये 10 नाड़ियां, समझें यहां

Kundalini Sadhna: शरीर में मौजूद 72 हजार नाड़ियां का होता है अलौकिक प्रभाव। नाड़ियों के प्रभाव से हाेता है कुंडलिनी जागरण। अध्यात्म के पथ पर चलने वाले भलिभांति समझते हैं इनके महत्व को। 72 हजार में से दस होती हैं महत्वपूर्ण। जबकि दस में से तीन विशेष नाड़ियां इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना करती हैं बाकी सभी नाड़ियों का नियंत्रण।

Kundalini Sadhna

10 नाड़ियां हैं प्रमुख

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • शरीर में मौजूद 72 हजार नाड़ियां करती हैं अलौकि कार्य
  • 10 नाड़ियां हैं प्रमुख और उनमें से तीन हैं विशेष
  • इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी करती हैं बाकी पर नियंत्रण

Kundalini Sadhna: प्राचीन योगियों और ऋषि मुनियों ने मनुष्य के शरीर में स्थित बड़ी−बड़ी विचित्र नाड़ियों और याेगचक्र जिन्हें स्नायु गुच्छ के नाम से भी जाना जाता है उनका वर्णन विशेष रूप से किया है। इन नाड़ियों में इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, गान्धारी, विश्वोदरा, हस्तजिह्वा, यशस्विनी, पूषानाड़ी, चित्रानाड़ी, वज्रानाड़ी, शंखिनी, कुहूनीनाड़ी, ब्रह्मनाड़ी, सूर्यरूपा, योगनाड़ी, लंबिका आदि 72 हजार नाड़ियों का वर्णन योगशास्त्र में किया गया है। इन सभी नाड़ियों के बहुत ही अलौकिक कार्य हैं। ये नाड़ियां विभिन्न मुद्राओं और योग की क्रियाओं द्वारा संचालित होती है। इन नाड़ियों से प्राण, जीवन शक्ति, प्रेरणाएं एवं अन्य उर्जाएं विद्युत तरंगों के समान बहती हैं। और साथ ही शरीर के विभिन्न कोशाें और अंगों के स्वास्थ्य और तालबद्धता को ये सही सलामत रखती हैं। 72 हजार नाड़ियों में 10 नाड़ियां प्रमुख मानी जाती हैं। ये नाड़ियां शरीर में चेतना और प्राण का वितरण एवं नियंत्रण करती हैं।

10 विशेष नाड़ियां

  • इड़ा
  • पिंगला
  • सुषुम्ना
  • गांधारी
  • हस्तजिह्वा
  • पूषा
  • यशस्वनी
  • वज्रा
  • कुहूनी
  • शंखनी

इन दस नाड़ियों में से भी तीन नाड़ियों का महत्व सबसे ज्यादा होता है। यही तीनों नाड़ियां ही अन्य सभी नाड़ियों काे नियंत्रण में रखती हैं। ये तीनों नाड़ियां हैं-

  • इड़ा
  • पिंगला
  • सुषुम्ना

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इसलिए हैं ये नाड़ियां महत्वपूर्ण

इड़ा नासारन्ध्र से चलने वाली इंद्र नाड़ी है। उसका वर्ण शुभ्र है और पिंगला दाएं नासारंध्र से चलने वाली सूर्य नाड़ी रक्त वर्ण की है। इडा़ को अमृत− विग्रहा और पिंगला को रौद्रत्मिका भी कहते हैं। ये दोनों नाड़ियां काल स्वरूप दिखती हैं। ये दोनों जब समगति से चलती हैं तब सुषुम्ना नाड़ी में उनका लय होता है। इसी अवस्था में सुषुम्ना नाड़ी में कुंडलिनी प्रवेश करती है। मूलाधार से जहां ये तीनों निकलती हैं, उसे मुक्तत्रिवेणी और आज्ञा चक्र के समीप जहां ये मिलती हैं, उसे युक्तत्रिवेणी कहते हैं।

इड़ा को गंगारूपा, पिंगला को यमुना स्वरूपा और सुषुम्ना को सरस्वती रूपिणी माना गया है। ये ही तीनों नाड़ियां आज्ञा चक्र के उपर जिस स्थान पर मिलती हैं, उस स्थान का नाम त्रिवेणी है। इस त्रिवेणी में स्नानविहीन व्यक्ति को बाह्य स्नान से किसी तरह का फल नहीं मिलता। इन तीनों ही नाड़ियों में सुषुम्ना नाड़ी प्रधान होती है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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