Vayu and Akash Mudra: हृदय को जीवन दान देती है आकाश मुद्रा, पेट की गैस में आराम के लिए जानें कौन सी मुद्रा देगी आराम

Vayu and Akash Mudra: शरीर के सात चक्रों का संबंध होता है पंचतत्वों से और पंचतत्वों को संतुलित करती हैं हस्त मुद्राएं। कुंडलिनी जागरण में महत्वपूर्ण होती हैं मुद्राएं। वायु मुद्रा देती है पेट के गैस विकार में आराम। आकाश मुद्रा से हृदय रोगों में पाया जा सकता है लाभ। प्रतिदिन लगानी चाहिए ये मुद्राएं।

Vayu and Akash Mudra

आकाश मुद्रा के लाभ

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • वायु मुद्रा पेट में गैस की समस्या में है रामबाण
  • हृदय रोग में आराम को प्रतिदिन लगाएं आकाश मुद्रा
  • मुद्राएं करती हैं पंचतत्वों को संतुलित करने का काम

Vayu and Akash Mudra: यूं तो शास्त्रों में बहुत प्रकार की हस्त मुद्राओं का वर्णन मिलता है। तमाम मुद्राओं पर चर्चा योग एवं तंत्र ग्रंथाें में आपको मिल जाएंगी। लेकिन कुछ विशेष मुद्राएं ऐसी होती हैं जो तन−मन स्वस्थ रखने में तो उपयोगी हैं ही, साथ ही आध्यात्मिक उन्नति में भी विशेष भूमिका निभाती हैं। शरीर के सात चक्राें का संबंध पंचतत्वों सेे है और ये मुद्राएं पांचों तत्वों को संतुलित करती हैं। आइये आपको आज बताते हैं वायु मुद्रा और आकाश मुद्रा के बारे में।

वायु मुद्रा की विशेषता

तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ मेंं लगाकर उसे अंगूठे से हल्का सा दबाने पर वायु मुद्रा बनती है। इस मुद्रा से रोगी के शरीर में वायु तत्व शीघ्रता से घटने लगता है। वायु के प्रकुपित होने से उत्पन्न हाेने वाले रोग इस मुद्रा से शांत हो जाते हैं। वायु मुद्रा की सहयोगी प्राण मुद्रा होती है। यदि इससे लाभ नजर नहीं आता हो तो इसके साथ प्राण मुद्रा का अभ्यास कुछ देर तक करना हितकर सिद्ध होता है। हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से वायु मुद्रा से शनि पर्वत और रेखा के दोष दूर होते हैं।

आकाश मुद्रा की विशेषता

मध्यमा यानी सबसे बड़ी अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाने पर आकाश मुद्रा बन जाती है। बाकी अंगुलियां सहज सीधी रखनी चाहिए। इस मुद्रा को करने से शरीर में आकाश तत्व में वृद्धि होती है। मध्यमा अंगुली का हृदय के साथ विशेष संबंध होता है। अतः यह मुद्रा हृदय के लिए लाभदायक है। अधिकांश जप क्रिया या माला फेरने में मध्यमता अंगुली का उपयोग किया जाता है।

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द्रव्य प्राप्ति, संतान प्राप्त, परिवार शांति आदि के लिए माला अंगूठे पर रखकर मध्यमा अंगुली फेरने का विधान है। जबकि मोक्ष हेतु अनामिका अंगुली से और बैर क्लेश आदि के नाश के लिए तर्जनी अंगुली से माला फेरना उचित है। माला को सदैव ही दाहिने हाथ के अंगूठे पर रख हृदय के पास स्पर्श करते हुए फेरना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि माला के मणियों को फिराते समय उनके नख न लगें। और सुमेरु का उल्लंघन न हो। वरना लाभ कम होता है। इसके साफ, समान और पूरे 108 मनकों की सुमेरु सहित होनी चाहिए।

हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से शनि ग्रह से संबंध रखने वाले रोगों में यह मुद्रा लाभप्रद सिद्ध होगी जबकि जन्म कुंडली में शनि नीच का हो। यदि उबासी लेते हुए अचानक जबड़ा फंस जाए और मुख बंद न हो तो अंगूठे को मध्यमा अंगुली के साथ रगड़ने य चुटकी बजाने से फंसा हुआ जगड़ा तत्काल खुल जाता है। यदि कारण है कि बहुत से लोग उबासी लेते हुए, चाहे कारण न भी पता हो मध्यमा और अंगूठे को मुंह के पास ले जाकर चुटकी बजाते हैं। यह मुद्रा हृदय रोग में भी लाभकारी है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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