अध्यात्म

Dev Deepawali 2025 Katha (देव दिवाली कथा): देव दीपावली व्रत कथा, त्रिपुरासुर वध की कहानी से जानें क्यों देव दीवाली पर जगमगाती है काशी

Dev Deepawali 2025 Katha in Hindi (देव दिवाली क्यों मनाई जाती है), देव दिवाली की पौराणिक कहानी, varanasi ghat dev diwali utsav: देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन वाराणसी दीये की रौशनी से जगमगा उठती है। तो आखिर इतने भव्य तरीके से देव दीपावली क्यों मनाई जाती है, ये आप यहां से जान सकते हैं।

dev deepawali ki katha

देव दीपावली की कथा (pic credit: canva)

Dev Deepawali 2025 Katha (देव दिवाली कथा): देव दीपावली से जुड़ी पौराणिक कहानी के अनुसार, भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी विजय की खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था, इसलिए भी इस दिन को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। जब त्रिपुरासुर का वध हुआ था वह दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। देव दीपावली के दिन शिव मंदिर में दीएं जलाने से ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है। साथ ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आयु में वृद्धि होती है। इस दिन भगवान भोलेनाथ के दर्शन मात्र से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा देव दीपावली से जुड़ी कुछ और कहानियां भी हैं।

मत्स्य अवतार की कहानी

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक राक्षस ने जब वेदों को चुराकर समुद्र की गहराई में छुपा दिया था, तब विष्णु जी ने मत्स्य अवतार में आकर वेदों को पाया और उन्हें फिर से स्थापित किया। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार क्यों लिया, इसके संबंध एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा हैं एक समय में में संखासुर नामक राक्षस ने त्रिलोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। जिसके बाद डरे हुए देवतागण भगवान विष्णु के पास गए। और उनसे मदद मांगी। देवताओं की परेशानी सुनने के बाद श्री विष्णु ने मत्स्य अवतार लेने का निर्णय लिया।

महाभारत से जुड़ी कहानी

कार्तिक पूर्णिमा से महाभारत की भी एक कहानी जुड़ी हुई है। महाभारत का महायुद्ध सामाप्त होने पर पांडव इस बात से बहुत दुखी थे कि युद्ध में उनके सगे-संबंधियों की असमय मृत्यु हुई उनकी आत्मा की शांति कैसे हो। पांडवों की चिंता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को पितरों की तृप्ति के उपाय बताए। इस उपाय में कार्तिक शुक्ल अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक की विधि शामिल थी। कार्तिक पूर्णिमा को पांडवों ने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में तर्पण और दीप दान किया। इस समय से ही गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा स्नान और पूजा की परंपरा चली आ रही है।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें छोटी बड़ी सभी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। अध्यात्म (Spirituality News) अपडेट और चुनाव (Elections) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से।

लेटेस्ट न्यूज

End of Article