Acharya Satyendra Das Jal Samadhi: कैसे दी जाती हैं संतों को जल समाधि? क्या है इससे जुड़ी मान्यता और महत्ता
Acharya Satyendra Das Jal Samadhi (आचार्य सत्येंद्र दास जल समाधि): अयोध्या के प्रसिद्ध राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। इन्हें पावन सरयू नदी में विधि-विधान से जल समाधि दी गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संत-महात्माओं को कैसे जल समाधि दी जाती हैं? आज हम आपको जल समाधि की प्रक्रिया और इससे जुड़ी मान्यता के बारे में बताएंगे।

कैसे दी जाती हैं संतों को जल समाधि? क्या है इससे जुड़ी मान्यता और महत्ता
Acharya Satyendra Das Jal Samadhi (आचार्य सत्येंद्र दास जल समाधि): अयोध्या में आचार्य सत्येंद्र दास पिछले 31-32 वर्षों से रामलला के मुख्य पुजारी थे जिन्होंने तन-मन से भगवान राम की निस्वार्थ सेवा की। आधुनिक युग में इन्होंने राम मंदिर के लिए किए गए संघर्ष को बेहद ही करीब देखा था। रामलला के भव्य मंदिर के निर्माण के बाद इन्हें पुनः राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा रामलला के दरबार का मुख्य पुजारी बनाया गया था। 13 फरवरी 2025, गुरुवार के दिन 85 वर्षीय आचार्य सत्येंद्र दास ने अपने प्राण त्याग दिए। इनके पार्थिव शरीर को सरयू नदी में परंपराओं के अनुसार जल समाधि दी गई है। जहां एक ओर सनातन हिंदू धर्म में मृत्यु के उपरांत शरीर को अग्नि में अंतिम संस्कार दिया जाता है तो वहीं संत-साधुओं को जल समाधि क्यों दी जाती है? आखिर इसका भारतीय संस्कृति में क्या विधान है? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब आज हम आपको बताएंगे। चलिए जानते हैं जल समाधि से जुड़ी मान्यता को।
What is Jal Samadhi (जल समाधि क्या होती है)
शास्त्रों के अनुसार मानव का शरीर पंच तत्वों से बना है जो कि आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी हैं। मनुष्य की मृत्यु के उपरांत या तो उसके शरीर को अग्नि में जलाया जाता है या तो पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साधु-संतों के मृत शरीर को नदी में प्रवाहित करके ही उनका अंतिम संस्कार किया जाता है। अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया या विधि को जल समाधि कहा जाता है। संन्यासी, पुजारी और साधु सांसारिक मोह-माया से दूर रहते हैं जिसके नाते उन्हें जल में प्रवाहित कर प्राकृतिक रूप से शरीर का उद्धार कर दिया जाता है ताकि उनकी देह पंच तत्त्व के जल तत्त्व मिल जाए।
Jal Samadhi Kaise Di Jaati Hai (जल समाधि कैसे दी जाती है)
जल समाधि देने के समय शव के साथ भारी पत्थर बांधे जाते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को नदी के बीच में प्रवाहित कर दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा, नर्मदा, सरस्वती, गोदावरी और इनकी सहायक पवित्र नदियों में संतों को जल समाधि दी जाती है, जिससे संतों की दिव्य ऊर्जा संपूर्ण संसार में फैल सके। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही संतों को जल समाधि देने की परंपरा रही है। ऐसा कहा जाता हैं कि जल पवित्र तत्व होता है और इसमें समाधि लेने से संतों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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