Inquilab Shayari: ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है.., रगों में उबाल ला देंगे इंकलाब पर लिखे ये मशहूर शेर

Inquilab Shayari in Hindi: इंकलाब केवल शब्द नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। यह जनता को जागरूक करती है और बदलाव की लौ जलाए रखती है। यह हमें सिखाती है कि सच्चाई और न्याय के लिए आवाज़ उठाना हर युग की ज़रूरत है।

Inquilab

इंकलाब शायरी (Inqulab Shayari)

Inquilab Shayari in Hindi: इंकलाब शायरी उर्दू और हिंदी साहित्य का एक शक्तिशाली हिस्सा है, जो सामाजिक परिवर्तन, स्वतंत्रता और विद्रोह की भावना को व्यक्त करती है। यह शायरी उत्पीड़न, अन्याय और गुलामी के खिलाफ आवाज़ उठाती है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज के सामाजिक आंदोलनों तक प्रासंगिक है। इंकलाब शायरी न केवल कवियों की भावनाओं को उजागर करती है, बल्कि जनता को जागरूक और संगठित करने का भी माध्यम रही है। ऐसे शेर किसी के भी रगों में उबाल लाने का दम रखते हैं। दुनियाभर के शायरों मे इंकलाब को अपनी स्याही के रंग से सजाया है। आइए पढ़ते हैं इंकलाब पर लिखे चंद मशहूर शेर:

ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है

ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा

- साहिर लुधियानवी

हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही

- साहिर लुधियानवी

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे

जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

- दुष्यंत कुमार

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे

- हसन नईम

कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले

उस इंक़लाब का जो आज तक उधार सा है

- कैफ़ी आज़मी

रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब

चंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं

- क़ाबिल अजमेरी

दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल

जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो

- अज्ञात

काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब

मेरा ना'रा इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब

- जोश मलीहाबादी

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़

जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले

- मजरूह सुल्तानपुरी

इंक़लाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो

बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं

- अली सरदार जाफ़री

देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'

कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़

- फ़िराक़ गोरखपुरी

ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं

कि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे

- अहमक़ फफूँदवी

इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील

पत्थरों को दे रहे हैं आइने खुल कर जवाब

- हनीफ़ साजिद

इंक़िलाबों की घड़ी है

हर नहीं हाँ से बड़ी है

- जाँ निसार अख़्तर

बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए

वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहाँ होगा

- अली सरदार जाफ़री

इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद

हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा

- साहिर लुधियानवी

ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर

ख़ुद हम भी सोचते हैं कि अब तक कहाँ रहे

- शौकत परदेसी

बता दें कि इंकलाब शायरी केवल शब्द नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। यह जनता को जागरूक करती है और बदलाव की लौ जलाए रखती है। यह हमें सिखाती है कि सच्चाई और न्याय के लिए आवाज़ उठाना हर युग की ज़रूरत है।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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