Swami Vivekananda Jeevani: राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर पढ़ें स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जानें कैसा रहा उनका सफर
Swami Vivekananda Biography in Hindi (स्वामी विवेकानंद की जीवनी हिंदी में): भारत सरकार ने 1984 में स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। राष्ट्रीय युवा दिवस का उद्देश्य युवाओं को स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और महान विचारों से अवगत कराना है। साथ ही स्वामी विवेकानंद जी की छवि को सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत के रूप में स्थापित करना है।
National Youth Day
Swami Vivekananda Biography in Hindi (स्वामी विवेकानंद की जीवनी हिंदी में): किसी भी देश के विकास में उस देश के युवाओं का अहम योगदान होता है इसलिए उन्हें सही समय पर सही मार्गदर्शन मिलना बेहद जरूरी है। स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के ज्ञाता के साथ ही युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत थे। उनकी कही हुई बातें आज भी लोगों पर गहरा असर डालती हैं। ऐसे में भारत सरकार ने 1984 में 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। राष्ट्रीय युवा दिवस का उद्देश्य युवाओं को स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और महान विचारों से अवगत कराना है। साथ ही स्वामी विवेकानंद जी की छवि को सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत के रूप में स्थापित करना है।
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता के उच्च न्यायालय में वकील थे। वहीं, उनकी मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था। एजुकेशन की बात करें तो स्वामी जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से हासिल की थी। इस विश्वविद्यालय में उन्होंने पढ़ाई लिखाई के साथ ही खेल कूद, व्यायाम, संगीत और नाटक में भी गहरी रुचि दिखाई और इन सभी क्षेत्रों में आगे भी रहे।
स्वामी विवेकानंद ने हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। हालांकि, उन्होंने एक साल बाद ही इस कॉलेज को छोड़कर स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला ले लिया। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्होंने यहां से फिलॉसफी की पढ़ाई की और 1881 में एफए परीक्षा पास की। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने साल 1884 में इसी कॉलेज से बीए की डिग्री भी हासिल की थी।
त्याग दी सांसारिक मोह माया
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रेरित होकर सिर्फ 25 साल की युवावस्था में सबकुछ छोड़कर नरेंद्रनाथ दत्त संन्यासी बन गए थे। परमहंस जी के महाप्रस्थान के बाद स्वामी विवेकानंद उनकी शिक्षाओं के प्रचार प्रसार में लग गए। फिर उन्होंने 1893 में अमेरिका में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। भारत वापस लौटने के बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य न केवल वेदान्त का प्रचार करना था बल्कि दीन हीन की सेवा के लिए शिक्षा संस्थाएं और चिकित्सालय खोलना भी था।
भारत और हिंदुओं का प्रतिनिधित्व
स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में रामकृष्ण मिशन की कई शाखाएं स्थापित की थीं। साल 1893 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भारत और हिंदुओं का प्रतिनिधित्व किया था। वहीं, साल 1900 में स्वामी जी ने पेरिस विश्व धर्म इतिहास सम्मेलन में भाग लिया। वापस भारत लौटने के बाद ये कुछ अस्वस्थ रहने लगे लेकिन उन्होने धर्म प्रचार, समाज सेवा और जन जागरण का काम जारी रखा। आखिरकार इस युग पुरुष ने 39 वर्ष की अल्प आयु में ही 4 जुलाई 1902 को अंतिम सांस ली।
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