दिल्ली के पास पांडवों के पांच गांव
Five Villages of Pandava Near Delhi: आप सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध भारतीय इतिहास और पौराणिक ग्रंथों की सबसे बड़ी और निर्णायक लड़ाई मानी जाती है। यह युद्ध केवल सत्ता या राजसिंहासन के लिए नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष का प्रतीक भी था। महाभारत की यह भीषण लड़ाई अनेक कारणों से आरंभ हुई थी, लेकिन इसका मुख्य कारण राज्य के बंटवारे और अधिकार को लेकर हुआ विवाद था। कहा जाता है कि इस युद्ध में लगभग एक लाख से भी अधिक योद्धा मारे गए थे। कई दिनों तक दोनों पक्षों में संवाद और सुलह की कोशिशें होती रहीं, लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचा नहीं जा सका। जब स्थिति लगातार बिगड़ती गई, तब पांडवों की ओर से भगवान भगवान कृष्ण को “शांतिदूत” बनाकर हस्तिनापुर भेजा गया। भगवान कृष्ण ने युद्ध टालने के उद्देश्य से दुर्योधन और कौरवों के सामने एक बहुत ही न्यायपूर्ण प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि यदि कौरव पांडवों को उनका राज्य नहीं लौटाना चाहते, तो कम से कम पांच गांव ही दे दें, ताकि वे शांति से वहां रह सकें और किसी भी प्रकार का युद्ध टल सके।
लेकिन दुर्योधन अहंकार और क्रोध से अंधा हो चुका था। उसने भगवान कृष्ण की बात को ठुकराते हुए गर्व से कहा “मैं पांडवों को सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूंगा। युद्ध ही अंतिम निर्णय होगा।” यही दुर्योधन का अहंकार और जिद थी जिसने महाभारत के युद्ध को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र की भूमि पर फिर वह महान संग्राम हुआ, जिसमें धर्म और अधर्म आमने-सामने थे। परिणामस्वरूप कौरवों का नाश हुआ और पांडवों ने धर्म की स्थापना की। प्राचीन काल का हस्तिनापुर आज का मेरठ माना जाता है। पर सवाल यह है कि पांडवों ने जिन पांच गावों की मांग की थी वो कहां हैं? तो आज हम आपको उन्हीं क्षेत्रों के वर्तमान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें से कुछ आज शहर बन गए तो कुछ अभी तक अपने गौरवशाली इतिहास की धरोहर संभाल रहे हैं।
इंद्रप्रस्थ को कुछ ग्रंथों में श्रीपत भी कहा गया है। यही वह स्थान है जिसे पांडवों ने अपने साम्राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया था। शुरूआत में यह क्षेत्र खांडवप्रस्थ नाम से जाना जाता था। एक ऐसा इलाका जो बंजर, निर्जन और रहने योग्य नहीं था। लेकिन जब भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर मयासुर ने यहां भव्य महल और किले का निर्माण किया, तो यह स्थान एक समृद्ध नगर बन गया। कहते हैं कि इस शहर की सुंदरता और वैभव स्वर्ग की राजधानी इंद्रलोक से भी तुलना की जाती थी। आज भी दिल्ली में पुराना किला (Old Fort) और उसके आस-पास का क्षेत्र इंद्रप्रस्थ नाम से प्रसिद्ध है। पुरातात्त्विक साक्ष्य भी बताते हैं कि यह वही स्थान था जहां कभी पांडवों का गौरवशाली नगर बसा था।
महाभारत काल में बागपत को व्याघ्रप्रस्थ कहा जाता था, जिसका अर्थ है “बाघों का निवास स्थान”। माना जाता है कि यह क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ था और यहां अनेक बाघ रहते थे। यही वह जगह है जिसका उल्लेख लाक्षागृह की कथा में मिलता है जहां दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने की साजिश रची थी। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा और विदुर की योजना से पांडव उस षड्यंत्र से बच निकले। मुगलकाल से लेकर आधुनिक युग तक बागपत व्यापार और कृषि का प्रमुख केंद्र रहा है। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है, जिसकी आबादी लगभग 50,000 से अधिक है।
सोनीपत का प्राचीन नाम स्वर्णप्रस्थ था, जिसका अर्थ है “सोने का नगर”। समय के साथ यह नाम ‘स्वर्णप्रस्थ’ से ‘सोनप्रस्थ’ और अंततः ‘सोनीपत’ हो गया। यह नगर अपने सुनहरे अतीत और समृद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध था। महाभारत में उल्लेख है कि यह क्षेत्र भी पांडवों को मांगे गए पांच गांवों में शामिल था। आज का सोनीपत हरियाणा का एक प्रमुख जिला है, जिसमें गोहाना, गन्नौर, मुंडलाना, खरखोदा और राई जैसे महत्वपूर्ण शहर शामिल हैं। यह क्षेत्र दिल्ली से सटा हुआ है और तेजी से औद्योगिक विकास की दिशा में बढ़ रहा है।
महाभारत के समय पानीपत को पांडुप्रस्थ कहा जाता था। यह स्थान ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय इतिहास की तीन सबसे निर्णायक लड़ाइयां — पानीपत की पहली, दूसरी और तीसरी लड़ाई यहीं लड़ी गईं। कुरुक्षेत्र, जहां महाभारत का युद्ध हुआ था, पानीपत से कुछ ही दूरी पर स्थित है। पानीपत न केवल युद्धों का गवाह रहा है, बल्कि अपनी हथकरघा और वस्त्र उद्योग के कारण इसे आज भी “सिटी ऑफ वीवर्स” यानी “बुनकरों का शहर” कहा जाता है। यह दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर में स्थित है।
तिलपत का प्राचीन नाम तिलप्रस्थ था। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले में यमुना नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक कस्बा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह क्षेत्र कभी पांडवों के नियंत्रण में था और उनकी धार्मिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता था। वर्तमान में तिलपत की आबादी लगभग 40,000 से अधिक है, और यहां के अधिकांश घर अब पक्के बन चुके हैं। यमुना के तट पर बसा यह कस्बा आज भी अपनी पौराणिक पहचान को जीवित रखे हुए है।
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