हौसले की ऊंची उड़ान: हादसे ने छीना एक पैर, फिर भी नहीं रुके कदम, इस तरह रोजाना एक किमी दूर जाती है स्कूल

बिहार की जमुई में रहनेवाली एक लड़की की कहानी बेमिसाल है। उसने बचपन में एक पैर खो दिया लेकिन पढ़ने का जज्बा ऐसा कि वह रोजाना एक पैर से चलकर स्कूल जाती है और वह भी एक किलोमीटर।

वायरल वीडियो,ट्रेंडिंग वीडियो, जमुई बिहार गर्ल ,Viral Video, Trending Video, Jamui Bihar Girl
सीमा बिहार के सीमा खैरा प्रखंड के नक्सल प्रभावित इलाके फतेपुर गांव में रहती है। 

नई दिल्ली: कुछ ऐसे मिसाल होते है जिसको देखकर ऐसा लगता है कि बुलंद हौसले अगर इंसान के पास हो तो वो किसी भी विपरीत हालात से हार नहीं मान सकता। एक मासूम सी लड़की का हादसे में पैर चला जाता है। फिर भी उसने घुटने नहीं टेके। ऐसे जज्बे को यकीनन लोग सलाम करते है जहां एक हादसे ने पूरी जिंदगी बदल दी लेकिन लड़की ने हार नहीं मानी और वो एक पैर से चलकर स्कूल जाती है। बिहार में जमुई की रहनेवाली यह लड़की रोजाना 1KM पैदल चलकर जाती स्कूल जाती है।  

सीमा बिहार के सीमा खैरा प्रखंड के नक्सल प्रभावित इलाके फतेपुर गांव में रहती है। उनसे पिता का नाम खिरन मांझी है। सीमा की उम्र 10 साल है। 2 साल पहले एक हादसे में उसे एक पैर गंवाना पड़ा था। वह अपने एक पैर से चलकर खुद स्कूल पहुंचती है और आगे चलकर शिक्षक बनकर लोगों को शिक्षित करना चाहती है। सीमा के पिता बिहार से बाहर रहकर मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। सीमा की मां बेबी देवी बताती हैं कि 6 बच्चों में सीमा दूसरे नंबर पर है। सीमा कहती है कि मैं इसलिए पढ़ती हूं ताकि गरीबों को पढ़ा सकूं। 

पढ़ाई कर बनना चाहती हैं शिक्षक

दिव्यांग बच्ची सीमा के हौसले ने मुसीबतों की सीमा को भी कम कर दिया। एक पैर से सीमा रोजाना एक किलोमीटर की दूरी तय कर स्कूल जाती है। पढने की ललक के आगे दिव्यांगता हार गई है। खीरन मांझी की बेटी सीमा नक्सल प्रभावित फतेहपुर की रहने वाली है। सीमा रोजाना गांव की पगडंडी पर एक पैर से चलकर मध्य विद्यालय फतेहपुर पढ़ने जाती है। सीमा पढ़ाई पूरी कर शिक्षक बनना चाहती है ताकि आगे चलकर अन्य बच्चों को शिक्षित कर सके।

दो साल पहले हादसे में गवाई पैर

खैरा प्रखंड के फतेहपुर गांव की रहने वाली सीमा दो साल पहले एक हादसे की शिकार बन गई। जिसमें उसे एक पैर गवानी पड़ गई। उस वक्त सीमा महज 10 साल की थी। बावजूद उसके हौसले कम नही हुए पढ़ने की प्रति उसकी ललक ऐसी थी कि स्कूल के टीचर सीमा का एडमिशन ले लिया। सीमा के पिता दूसरे राज्य में मजदूरी का काम करते है। छह भाई-बहनों में सीमा दूसरे नबंर पर है। सीमा की मां बेवी देवी बताती है कि सड़क दुर्घटना में पैर गंवाने के बाद एक क्षण ऐसा लगा कि सीमा की जिंदगी अंधकार में डूब जायेगी। लेकिन दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख सीमा ने भी पढ़ने कि इच्छा जताई। 

सीमा बताती है कि एक किलो मीटर की दूरी एक पैर से तय करने में उसे अब परेशानी नही होती। पढ़ाई के साथ वह घर की सारा कामकाज कर लेती है। अपनी इच्छा जाहिर करते हुए सीमा ने बताया कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षिका बनना चाहती है ताकि समुदाय के वैसे बच्चे भी पढ़ाई कर आगे बढ़े जिनका बचपन बाल श्रमिक के रूप में छिन जाता है। 

अगली खबर