Sant Ravidas Jayanti Dohe 2025: 'मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊं सहज स्वरूप', यहां देखें संत रविदास जी के प्रसिद्ध दोहे
Sant Ravidas Jayanti Dohe 2025 (संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित): 'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' संत रविदास जी की ये खूबसूरत कहावत आज भी सभी के दिलों में रची-बसी हुई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संत रविदास जी के और भी प्रसिद्ध कहावतें और दोहे हैं जिनकी गूंज आज भी सुनाई देती है।

Sant Ravidas Ke Dohe With Meaning
Sant Ravidas Jayanti Dohe 2025 (संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित): हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती है। जो इस बार 12 फरवरी को मनाई जा रही है। इस दिन संत रविदास जी द्वारा किए गए महान कार्यों और उनकी रचनाओं को याद किया जाता है। कई इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि भगवान ने धर्म की रक्षा करने के लिए संत रविदास को धरती पर भेजा था। उनके भक्ति गीतों और छन्दों ने भक्ति आन्दोलन पर काफी गहरा प्रभाव डाला था। गुरु रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है। चलिए जानते हैं रविदास जी के प्रसिद्ध दोहे (Sant Ravidas Ke Dohe Arth Sahit)।
Sant Ravidas Ji Ka Jivan Parichay In Hindi
संत रविदास के दोहे अर्थ सहित (Sant Ravidas Ke Dohe With Meaning In Hindi)
मन चंगा तो कठौती में गंगा: संत रविदास जी के इस दोहे का अर्थ यह है कि, जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (बर्तन) में आ जाती हैं।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन: इस दोहे का अर्थ है कि, किसी को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर बैठा है। यदि व्यक्ति में उस पद के योग्य गुण ही नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए। इसकी जगह ऐसे व्यक्ति को पूजना सही है जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है।
मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊं सहज स्वरूप: इस दोहे का अर्थ है कि, निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के लिए बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे ही पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच, नकर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच: इस दोहे का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचे होने चाहिए।
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम, सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम: इस दोहे में रविदास जी कह रहे हैं कि जिस हृदय में दिन-रात बस राम के नाम का ही वास रहता है, ऐसा भक्त स्वयं राम के समान होता है। राम नाम की ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले साधक को न तो किसी के क्रोध से क्रोध आता है और न ही कभी काम भावना उस पर हावी होती है।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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