Bhishma Ashtami Puja Muhurat: आज है भीष्म अष्टमी? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Bhishma Ashtami Puja Muhurat (भीष्म अष्टमी पूजा मुहूर्त): माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को द्वापर युग में भीष्म पितामह ने प्राण अपने त्यागे थे। हर वर्ष इस तिथि को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए पूजा, पाठ और कथा सुनने की परंपरा है। आज हम आपको भीष्म अष्टमी पूजा मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में बताएंगे।

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Bhishma Ashtami Puja Muhurat (भीष्म अष्टमी पूजा मुहूर्त): महाभारत द्वापर युग में लिखा गया एक महाकाव्य है जिसकी रचना वेद व्यास ने की थी। भीष्म पितामह को महाभारत का मुख्य पात्र माना जाता है। देवव्रत का भीष्म पितामह बनने का सफर एक प्रतिज्ञा से शुरू हुआ जो उन्होंने अपने पिता शांतनु की वजह से ली थी। मां गंगा के पुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने हस्तिनापुर पर राजा बनकर नहीं, बल्कि सेवक बन हस्तिनापुर सेवा की। महाभारत में कई महारथियों को अपने प्राण त्यागने पड़े जिनमें से एक भीष्म पितामह थे। महाभारत के घनघोर युद्ध में पांडवों की विजय हुई और द्वापर युग में धर्म की नींव रखी गयी। हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर एकदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। इस अवसर पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने के बाद माघ माह को देह त्यागने के लिए चुना था। ऐसे में चलिए भीष्म अष्टमी के पूजा मुहूर्त और विधि को जानते हैं।
Bhishma Ashtami Puja Muhurat (भीष्म अष्टमी पूजा मुहूर्त)
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 05 फरवरी को देर रात 02 बजकर 30 मिनट पर होगी और इसकी समाप्ति 06 फरवरी को देर रात 12 बजकर 35 मिनट पर होगी। सनातन धर्म में सर्योदय से तिथि की गणना की जाती है ऐसे में वर्ष 2025 में 05 फरवरी, बुधवार को भीष्म अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन श्राद्ध के लिए सुबह 11 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक का समय उचित है।
Bhishma Ashtami Puja Vidhi (भीष्म अष्टमी पूजा Vidhi)
•प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। यदि संभव हो, तो किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें।
•स्नान के बाद, अपने हाथ में जल लेकर तर्पण करें। तर्पण करते समय अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें।
•यदि आप जनेऊ धारण करते हैं तो इसे अपने दाहिने कंधे पर धारण करें और तब तर्पण करें।
•तर्पण के लिए ॐ भीष्माय स्वधा नमः। पितृपितामहे स्वधा नमः का जाप करें।
•तर्पण पूर्ण होने के बाद, यज्ञोपवीत को पुनः बाएं कंधे पर धारण करें।
•इसके बाद गंगापुत्र भीष्म को तिल के साथ अर्घ्य अर्पित करें और आशीर्वाद लें।
Bhishma Ashtami Importance (भीष्म अष्टमी का महत्व)
भीष्म पितामह एक महापुरुष थे जिनकी महानता का वर्णन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी महाभारत में किया है। भीष्म अष्टमी के दिन भक्त पूजा-पाठ करते हैं और भीष्म पितामह की कथा सुनते हैं ताकि उन्हें भी भीष्म जैसे संस्कारी और पिता-भक्त संतान की प्राप्ति हो। हर वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन का व्रत करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और पितृ दोष से भी छुटकारा पाता है।
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