नई दिल्ली। हाथरस का मुद्दा इस समय चर्चा के केंद्र में है। इस मामले में कांग्रेस दूसरे विपक्षी दलों की तुलना में अपफ्रंट पर खेल रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होगी या बैकफायर कर जाएगा। दरअसल 29 सितंबकर की रात जब वाल्मीकि समाज से आने वाली लड़की के शव को जलाया गया उसके बाद से योगी सरकार निशाने पर आ गई। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने की कोशिश की थी लेकिन प्रशासन ने मना कर दिया था।
हाथरस पर सियासी लड़ाई
यूपी सरकार को लगने लगा कि कांग्रेस इसका फायदा उठा सकती है तो पांच लोगों की शर्त के साथ हाथरस जाने की इजाजत मिली। शनिवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जिस अंदाज में पीड़ित परिवार से मिलीं तो भावनाओं को ज्वार चढ़ गया। लेकिन पार्टी के अंदर कुछ लोगों को लगता है कि इतनी सक्रियता उलटा भी पड़ सकता है। दरअसल हाथरस के आसपास के गांवों में सवर्ण समाज से जुड़े लोग भी जातीय पंचायत कर रहे हैं।
कांग्रेस की राह में क्या है मुश्किल
आखिर वो कौन सी वजह है जो कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। दरअसल यहां पर पीड़ित और आरोपी के सामाजिक स्तर पर देखना होगा। पीड़ित वाल्मीकि समाज से आती है और यह समाज कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक में से एक था। लेकिन समय के वाल्मीकि समाज ने बीएसपी और बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया। जहां तक आरोपियों की बात है तो वो सवर्ण समाज(राजपूत) समाज से आते हैं और हाल ही में जब सरकार ने पीड़ित और आरोपी पक्ष के नार्को टेस्ट की बात की तो यह पहला मौका रहा जिसमें आरोपी पक्ष नार्को टेस्ट के लिए तैयार हो गया।
कांग्रेस में ही कुछ लोगों को बैकफायर का डर
पीड़ित पक्ष का कहना था कि दुख उन्हें मिला और टेस्ट वो लोग ही कराएं। लेकिन पेंच यही है, सवर्ण समाज को लगता है कि पीड़ित परिवार के बयानों में कई तरह की खामियां हैं और जिस तरह से वो परिवार नार्को से इंकार कर रहा है उसकी वजह से संदेह के बादल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही जिस तरह बुलंदशहर के कांग्रेस नेता ने कहा कि आरोपियों के सिर कलम करने वालों को एक करोड़ का इनाम देंगे उसके बाद सवर्ण समाज मे नाराजगी है।
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