Video:'मैं नई दिल्ली सीट हूं...सदियों से सत्ता का केंद्र हूं, सत्ता की लड़ाई का मैदान भी' कहानी नई दिल्ली विधानसभा की

New Delhi Seat History: जिस नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 2013 में अरविंद केजरीवाल ने तीन बार की दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को ऐतिहासिक शिकस्त दी थी। आज उसी नई दिल्ली विधानसभा सीट पर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को हरा दिया है। नई दिल्ली विधानसभा सीट का इतिहास है कि यहां जो जीता वो दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो जाता है। पढ़िए कहानी नई दिल्ली विधानसभा के बहाने दिल्ली के सियासी सफर की।

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'मैं सदियों से सत्ता का केंद्र हूं, सत्ता की लड़ाई का मैदान भी'

New Delhi Seat History: मैं दिल्ली हूं..मैं सदियों से सत्ता का केंद्र हूं और सत्ता की लड़ाई का मैदान भी। कभी कौरवों-पांडवों के बीच मुझे पाने के लिए महायुद्ध हुआ जो महाभारत कहलाया। तब मैं इंद्रप्रस्थ कहलाती थी। मैंने सदियों देखा है सत्ता का भीषण संघर्ष। पृथ्वीराज चौहान से लेकर मंगोलों, मुगलों,अब्दालियों और तुगलकों को। मैंने देखा है अंग्रेजों का राज भी।मैं तब दिल्ली हुआ करती थी। जब मुल्क आज़ाद हुआ सदियों की गुलामी से तब मैं बनी नये नवेले देश की राजधानी और मैं कहलाई नई दिल्ली।

मैं नई दिल्ली हूं....नई दिल्ली विधानसभा। मैंने बहुत से राजाओं का राजतिलक किया है। लेकिन आज लोकतंत्र में जनता चुनती है राजा। तलवार नहीं EVM तय करती है तकदीर। मैं नई दिल्ली विधानसभा हूं..मैंने बनाए हैं कई मुख्यमंत्री। दिल्ली की सत्ता का रास्ता मुझसे होकर गुजरता है। आज भी मुझ पर ही टिकी हैं सबकी निगाहें। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे मुझे जीतने की जंग लड़े। क्योंकि पिछले ढाई दशक से जिसे मैंने जिताया है, दिल्ली की गद्दी उसी की हुई है।मैं सुनाती हूं आपको दिल्ली का चुनावी इतिहास भी।

दिल्ली का चुनावी इतिहास

आजादी के बाद मार्च 1952 में पहले दिल्ली चुनाव हुए थे। 7 मार्च 1952 को दिल्ली को राज्य का दर्जा मिला था।

गांधी जी के अनुयाई ब्रह्मप्रकाश यादव को दिल्ली ने अपना सिरमौर बनाया। उनके बाद गुरमुख निहाल सिंह भी थोड़े वक्त के लिए मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1956 में स्टेट्स रिकॉर्गनेशन एक्ट आया और दिल्ली के राज्य का दर्जा खत्म कर उसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। इसके बाद सालों बाद 1993 में दिल्ली दोबारा चुनावी मैदान में उतरी। राम मंदिर आंदोलन लहर पर सवार बीजेपी ने दिल्ली में प्रचंड जीत दर्ज की। पांच साल तक सरकार तो चली लेकिन बीजेपी ने 3 मुख्यमंत्री बदले। मदन लाल खुराना 27 महीने तक, साहिब सिंह वर्मा 31 महीने तक और आखिर में सुषमा स्वराज महज 52 दिनों के लिए CM रह पाईं।

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नई दिल्ली जो जीता वो ही बना CM!

फिर आए 1998 के विधानसभा चुनाव। बीजेपी को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस ने दिल्ली की कमान संभाली। लेकिन दिल्ली की गद्दी पर काबिज कौन हुआ? जिसे मैंने चुना। उनका नाम था शीला दीक्षित। मैंने उन्हें जिताया लेकिन पूरी दिल्ली ने उन्हें अपनाया। 1998 के बाद 2003 फिर 2008 लगातार तीन बार शीला दीक्षित का मैंने खुले बांहों से स्वागत किया। लगातार 15 सालों तक दिल्ली की सत्ता का केंद्र मैं रही और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं शीला दीक्षित। दिल्ली और देश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक महिला मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया शीला दीक्षित और सीना मेरा चौड़ा हुआ। दिल्ली की सत्ता का केंद्र जो बन गई थी मैं। लेकिन ये दिल्ली है जनाब! यहां सत्ता शेर की सवारी है। सत्ता से उतरना यानी राजनीतिक अंत....

आंदोलन से 'शीशमहल' तक

2013 विधानसभा चुनावों में दिल्ली बेहद गुस्से में थी। केंद्र की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली आंदोलन कर रही थी। निर्भया के साथ हुई दरिंदगी से दिल्ली गुस्से में थी। अन्ना आंदोलन की लहर पर सवार अरविंद केजरीवाल भी चुनाव लड़ने आए मेरे ही पास। तब मेरी चहेती शीला दीक्षित के सामने थे आंदोलनकारी अरविंद केजरीवाल। जो गुस्सा दिल्ली में था वो नई दिल्ली भी पहुंचा। सियासत में नये नवेले अरविंद केजरीवाल ने हासिल किए 44 हजार 269 (53.46%) वोट जबकि 3 बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मिले महज 18405 (22.23 %) वोट। शेर की सवारी से शीला उतर चुकी थीं और अरविंद केजरीवाल सवार हो चुके थे। मैं अब भी सत्ता का केंद्र थी। दिल्ली का नया मुख्यमंत्री भी वहीं अरविंद केजरीवाल बने जिन्हें मैंने चुना। अगले चुनावों में मैंने केजरीवाल के लिए दीवानगी का आलम देखा जब उन्हें 57,213 वोट मिले यानी (64.34%) वोट। अब दिल्ली के सर्वेसर्वा बन चुके थे अरविंद केजरीवाल। 2020 के विधानसभा चुनावों में भी मैंने अरविंद केजरीवाल के लिए 61 फीसदी वोट पड़ते देखा। लेकिन ये दिल्ली है जनाब। ये ताकत के आगे झुकती है।

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फिर आए 1998 के विधानसभा चुनाव। बीजेपी को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस ने दिल्ली की कमान संभाली। लेकिन दिल्ली की गद्दी पर काबिज कौन हुआ? जिसे मैंने चुना। उसका नाम था शीला दीक्षित। मैंने उन्हें जिताया लेकिन पूरी दिल्ली ने उन्हें अपनाया। 1998 के बाद 2003 फिर 2008 लगातार तीन बार शीला दीक्षित का मैंने खुले बांहों से स्वागत किया। लगातार 15 सालों तक दिल्ली की सत्ता का केंद्र मैं रही और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं शीला दीक्षित। दिल्ली और देश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया शीला दीक्षित और सीना मेरा चौड़ा हुआ। दिल्ली की सत्ता का केंद्र जो बन गई थी मैं।

चौंकाती रही है नई दिल्ली...

मैंने शीला दीक्षित की ऐतिहासिक उड़ान देखी तो उनको इतिहास बनते भी देखा। जिन्होंने शीला दीक्षित को सत्ता से बाहर किया आज वहीं केजरीवाल खुद हारे हुए खेमे के सेनापती बन चुके हैं। मैं नई दिल्ली सीट हूं। और मैंने आज उस अरविंद केजरीवाल को हारते हुए देखा है जिन्होंने मेरे रास्ते सत्ता की सवारी की थी। आंदोलन से निकली पार्टी जनता के गुस्से का शिकार हुई। मैं नई दिल्ली विधानसभा हूं। मैंने आज एक और मुख्यमंत्री को हारते देखा और शायद एक और नये मुख्यमंत्री को जीतते हुए भी...अरविंद केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा भी दिल्ली के मुख्यमंत्री थे। आज मैंने एक मुश्किल लड़ाई देखी। जद्दोजहद कर आखिरकार प्रवेश वर्मा ने मेरे दिल में प्रवेश कर ही लिया। उस अरविंद केजरीवाल को उन्होंने हरा दिया जिन्हें मैंने इतिहास रचते देखा था। मैंने जिसे जिताया है वो ही दिल्ली का मुख्यमंत्री बनता आया है। ये परंपरा शीला दीक्षित के वक्त से शुरू हुई थी। उन्हें हराने वाले केजरीवाल भी बाद में दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए। और आज उन अरविंद केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं...कम से कम मेरा इतिहास तो यहीं कहता है..मैं नई दिल्ली विधानसभा हूं। और मैंने आज भी दिल्ली चुनावों की सबसे चौंकाने वाली खबर दी है।। क्या मैंने दिल्ली को उसका अगला मुख्यमंत्री भी दे दिया है? इंतज़ार कीजिए ज़नाब..ये दिल्ली है यहां सत्ता का रास्ता सांप-सीढ़ी से ज्यादा मुश्किल है। नाम याद रखिएगा मैं नई दिल्ली विधानसभा हूं..

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    AdarshShukla author

    सत्याग्रह की धरती चंपारण से ताल्लुक रखने वाले आदर्श शुक्ल 10 सालों से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय और IIMC से पत्रकारिता की पढ़ा...और देखें

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