जहां गलती से हुई थी 226 मूर्तियों की खोज, वहां इतिहास की खोज करने को ASI मांग रहा इजाजत
हमारे देश में कई ऐसी जगहें हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। वहां की मिट्टी में इतिहास दफन है। लेकिन कई ऐसी जगहें भी हैं, जिनके बारे में लोगों को ज्यादा कुछ पता नहीं है। लेकिन वह इतिहास की दृष्टि से खजाना साबित हो सकते हैं। ऐसी ही एक जगह बिहार के गया में है, जहां ASI खुदाई कर खोज करना चाहता है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
जी हां, बात 1930 की है, जब बिहार में गलती से 226 मूर्तियों की खोज हुई थी। ASI के पटना सर्कल ने अब बिहार के गया जिले के कुर्किहार गांव में खनन के लिए अपने मुख्यालय से अनुमति मांगी है। गया जिले में वजीरगंज से करीब 5 किमी उत्तर-पूर्व और गया मुख्यालय से करीब 27 किमी पूर्व में स्थित कुर्किहार गांव के बारे में माना जाता है कि कभी यहां एक प्राचीन शहर और बौद्ध मठ था। अब अगर ASI को उत्खनन की इजाजत मिल जाती है तो गांव के नीचे छिपे शहर और बौद्ध मठ की हकीकत दुनिया के सामने आ सकती है।
ASI के पटना सर्कल ने पुरातात्विक खजाने की खोज व क्षेत्र के सांस्कृतिक अनुक्रम यानी cultural hierarchy को स्थापित करने के लिए इस उत्खनन की मंजूरी मुख्यालय से मांगी है।
ASI पटना सर्कल के रिकॉर्ड के मुताबिक ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी और पुरात्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861-62 और 1879-80 में कुर्किहार का दौरा किया था। उस समय उन्होंने वहां पर बौद्ध धर्म की बड़ी और कई छोटी मूर्तियां देखी थीं। इसके साथ ही उन्होंने बड़ी संख्या में मन्नत स्तूप भी यहां देखे थे। कनिंघम ASI के पहले निदेशक थे और उन्होंने ही सारनाथ व सांची सहित कई स्थलों की खुदाई की थी।
ASI पटना सर्कल के सुप्रीटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट सुजीत नयन का कहना है कि उन्होंने ASI मुख्यालय से कुर्किहार गांव में खुदाई की अनुमति मांगी है। उनहोंने कहा कि कुर्किहार के पुरातात्विक अवशेषों को 1847 में एक प्रसिद्ध पुरातत्विद् मार्खम किट्टो, 1861-62 और 1879-80 में कनिंघम और अन्य विद्वानों ने सबसे संज्ञान में लाया था।
उन्होंने बताया कि यहां पर ईंटों का एक विशाल टीला व एक बड़े मठ के अवशेष हैं। बौद्ध अवशेषों का मुख्य टीला लगभग 25 फींट ऊंचा है। बता दें कि प्रसिद्ध पुरातत्विद् मार्खम किट्टो के मुताबिक कुर्किहार एक प्राचीन शहर, बौद्ध मठ या विहार है। यहां मुख्य टीले पर बौद्ध अवशेष हैं, जिनमें पुरातन अवशेष के साथ ही सांस्कृति सामग्रियां और शिलालेख भी हैं।
नयन ने बताया, ‘प्रसिद्ध इतिहासकार के.पी. जायसवाल ने बताया था कि 1930 में यहां पर कैसे लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ था, जब स्थानीय मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित एक टीले पर लगभग 226 कांसे की मूर्तियों का एक समूह गलती से खोजा गया था।‘ उन्होंने कहा कि कांसे में ढली अधिकांश मूर्तियों को पटना संग्रहालय और विभिन्न देशों के कई अन्य संग्रहालयों के लिए अधिग्रहित कर लिया गया था। उनके अनुसार कुर्किहार में बहुत बड़ी वास्तुकला संपदा है, जिसके लिए उचित उत्खनन की जरूरत है। पाल रावजंश के समय की कई पत्थर की मूर्तियां भी यहां मिली हैं, जिनमें से कुछ की अब भी स्थानीय मंदिरों में सक्रिय रूप से पूजा की जाती है।
नयन के अनुसार कांसे की मूर्तियों पर यहां कई शिलालेख भी मिले हैं। कुर्किहार में मिले शिलालेख पाल वंशे के शासकों के कई कालखंड़ों से जुड़े हैं, जिनमें देवपाल, राज्यपाल, महिपाल, विग्रहपाल तृतीय का जिक्र है। यह सभी 9वीं शताब्दी से लेकर 1074 ईसवी तक हैं। यहां के मठ का नाम अपनका था, जिसका उल्लेख यहां के कई शिलालेखों में है। यह भी बताया कि दक्षिण भारत में कांची और अन्य अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के बीच यह मठ काफी लोकप्रिय था।
- PTI Input
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