Devshayani Ekadashi 2023: देवशयनी एकादशी कब है 2023? जानिए कब से लग रहा है चातुर्मास
Devshayani Ekadashi 2023: देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है। इसलिए इसे आषाढ़ी एकादशी (Ashadi Ekadashi 2023) के नाम से जाना जाता है। इस दिन से चातुर्मास (Cahturmas 2023) का प्रारंभ हो जाता है। जानिए इस साल कब है देवशयनी एकादशी (Dev Shayani Ekadashi 2023)।
Updated Jun 8, 2023 | 10:19 AM IST

Devshayani Ekadashi 2023 Kab Hai: देवशयनी एकादशी कब से है
Devshayani Ekadashi 2023: देवशयनी एकादशी हिंदू पंचांग अनुसार आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे आषाढ़ एकादशी (Ashad Ekadashi 2023), हरिशयनी एकादशी (Harishayani Ekadashi 2023) और पद्मनाभा एकादशी नामों से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है जो चातुर्मास (Chaturmas Kab Se Lag Rha Hai 2023) के नाम से जाना जाता है। बता दें साल के चार महीने श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2023) पर जागृत होते हैं। जानिए इस साल कब है देवशयनी एकादशी कब (Dev Shayani Ekadashi Kab Se Hai 2023) से शुरू हो रहा है चातुर्मास।
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देवशयनी एकादशी कब है 2023 (Devshayani Ekadashi 2023 Kab Hai)
- देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 गुरुवार को मनाई जाएगी।
- देवशयनी एकादशी व्रत का पारण समय 30 जून को दोपहर 01:01 PM से 03:43 PM तक रहेगा।
- एकादशी तिथि की शुरुआत 29 जून 2023 को 03:18 AM बजे से होगी।
- एकादशी तिथि की समाप्ति 30 जून 2023 को 02:42 AM पर होगी।
देवशयनी एकादशी का महत्व (Dev Shayani Ekadashi Significance)
जैसा कि हमने पहले बताया कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है जिसे चातुर्मास के नाम से जानते हैं। इस दौरान विवाह समेत कई मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है। कहते हैं चातुर्मास की अवधि में धरती का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। फिर प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु नींद से जागृत होकर फिर से धरती का संचार करने लगते हैं।
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि (Devshayani Ekadashi Puja Vidhi)
- देवशयनी एकादशी का व्रत रखने वाले लोग इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले रंग के आसन पर विराजमान करें और उनकी षोडशोपचार पूजा करें।
- पूजा के समय भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल और पीला चन्दन जरूर अर्पित करें।
- भगवान विष्णु को पान और सुपारी चढ़ाएं।
- इसके बाद उन्हें धूप और दीप दिखाकर फूल चढ़ाएं और उनकी आरती उतारें।
- फिर इस मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
- विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।
- इस तरह से भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
- रात में भगवान विष्णु भजन-कीर्तन करें।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक न करें ये काम
इस दौरान मीठा बोलना चाहिए। संभव हो तो इस अवधि में पलंग पर सोना त्याग दें। इस समय शहद, मूली, बैंगन और परवल का सेवन बिल्कुल भी न करें। दही-भात न खाएं। वंश वृद्धि की कामना हो तो दूध न पिएं।
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