नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन बिल 2019 के पीछे क्या कोई खास मकसद है, या इस बिल के जरिए उन लोगों को राहत देने की कोशिश की जा रही है जो पाकिस्ता, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताणना का शिकार बने। विपक्ष को ऐतराज है कि इस बिल को लाने की कवायद तब की गई जब असम में एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू किया गया। ये बात अलग है कि बीजेपी ने सभी तरह के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि एनआरसी तो असम समझौते का ही हिस्सा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसे लागू किया गया। जहां तक कैब का सवाल है तो राजनीतिक फायदे के लिए कुछ दल भ्रम फैला रहे हैं।
सवाल ये है कि शिवसेना जब बीजेपी के साथ थी तो वो इस बिल का खुले तौर पर समर्थन करती थी। लेकिन अब उसके सुर बदले हुए नजर आ रहे है। कुछ यही हाल जेडीयू की भी है जिसके कुछ नेताओं ने असहमति के बोल बोले। ये बात अलग है कि जेडीयू की तरफ से औपचारिक बयान नहीं आया है कि लोकसभा से अलग हटकर राज्यसभा में उसका रुख क्या होगा।
लोकसभा में चर्चा के दौरान शिवसेना ने वोटिंग में हिस्सा लेने से पहले कुछ सुझाव दिए। उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को 25 साल तक मताधिकार नहीं देने की वकालत की है। अब इसे आपत्ति कहें या सुझाव इन सबके बीच वो मोदी सरकार के साथ खड़ी रही। लेकिन मंगलवार को शिवसेना प्रमुख का एक बयान काफी अहम था मसलन अगर इस बिल पर देश के लोगों को संदेह है तो केंद्र सरकार को उसे दूर करने के लिए आगे आना चाहिए।
बताया जाता है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी को शिवसेना के एक ट्वीट से आपत्ति थी जिसमें लिखा गया था कि राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर वो गठबंधन के विचार से सहमत हो वो आवश्यकक नहीं है। दरअसल इस ट्वीट से राहुल गांधी खफा बताये जा रहे थे। जानकार कहते हैं कि शायद इस दबाव में उद्धव ठाकरे की तरफ से बयाना।
यहां महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बाला साहेब थोराट का बयान भी गौर करने के लायक है जिसमें वो कहते हैं कि यह समझ के बाहर है कि शिवसेना बार बार अपने स्टैंड को क्यों बदल रही है। जानकार कहते हैं कि ये हो सकता है कि शिवसेना, मोदी सरकार का सीधे समर्थन न करे और वोटिंग के समय सदन का बहिष्कार करे।
अब बात करते हैं जेडीयू की। लोकसभा में जेडीयू के सभी 16 सांसदों ने बिल का समर्थन किया। ये बात अलग है कि पार्टी के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने संविधान का हवाला देते हुए नीतीश कुमार से अपील की। इन नेताओं की अपील ये थी कि पार्टी ने जो गलती लोकसभा में की है उसे राज्यसभा में न दोहराए। इसका अर्थ ये है कि राज्यसभा में जेडीयू सांसद बिल का विरोध करें। लेकिन नीतीश कुमार का औपचारिक फरमान आ चुका है और जेडीयू राज्यसभा में भी समर्थन करेगी।
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