3 दिनों में पूर्वोत्तर भारत के लिए 2 बड़े फैसले, जानें शांति के लिए क्यों हैं अहम

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Apr 01, 2022 | 14:56 IST

AFSPA And Assam-Meghalaya Agreement: मोदी सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कई इलाकों से AFSPA हटाने का फैसला किया है। इसके अलावा असम-मेघालय सीमा विवाद का समझौता भी पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएंगे।

AFSPA And Assam-Meghalaya Agreement
पूर्वोत्तर भारत में शांति के लिए दो अहम फैसले 
मुख्य बातें
  • असम और मेघालय आपस में 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। 21 जनवरी 1972 में असम से अलग होकर मेघालय राज्य बनने के बाद, दोनों राज्यों के बीच 12 क्षेत्रों पर विवाद रहा है।
  • पूर्वोत्तर भारत में स्थानीय लोगों की नाराजगी की बड़ी वजह सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA)-1958 कानून रहा है।
  • त्रिपुरा से 2015 में और मेघालय से 2018 में पूरी तरह से AFSPA हटा लिया गया है।

AFSPA And Assam-Meghalaya Agreement: बीते जुलाई और दिसंबर में पूर्वोत्तर भारत के दो राज्यों में हुई हिंसक घटनाओं ने पूरे देश को हिला दिया था। एक तरफ जुलाई में असम और मेघालय के लोगों में सीमा विवाद के लिए ऐसा संघर्ष हुआ कि असम पुलिस के 6 जवान शहीद हो गए और दोनों राज्यों के 100 से ज्यादा पुलिस कर्मी और आम आदमी घायल हो गए। वहीं दूसरी तरफ दिसंबर में नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों द्वारा 14 आम नागरिकों की हत्या हो गई। सुरक्षा बलों ने इन लोगों के आतंकी होने के शक में गोलीबारी कर दी थी। 

 छह महीने के भीतर घटी इन दो  हिंसक घटनाओं से मोदी सरकार की पूर्वोत्तर राज्यों में शांति बहाल करने की रणनीति और सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA)कानून की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। लेकिन पिछले 3 दिनों में जिस तरह मोदी सरकार ने दो अहम कदम उठाए हैं, उसे पूर्वोत्तर भारत में स्थायी शांति की दिशा में बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है।

29 मार्च को पहला अहम समझौता

जिस सीमा विवाद को लेकर जुलाई में असम और मेघालय के लोग आपस में खूनी संघर्ष को उतारू हो गए थे। वह 50 साल पुराना विवाद सुलझता नजर आ रहा है। 29 मार्च को  गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा ने असम और मेघालय राज्यों के बीच अंतरराज्यीय सीमा विवाद के कुल बारह क्षेत्रों में से छह क्षेत्रों के विवाद के निपटारे के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। गृह मंत्रालय द्वारा मिली जानकारी के अनुसार इन 6 समझौतों से दोनों राज्यों के बीच लगभग 70 प्रतिशत सीमा विवाद खत्म हो गया है।

क्या है 50 साल पुराना विवाद

असम और मेघालय राज्य आपस में 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। 21 जनवरी 1972 में असम से अलग होकर मेघालय राज्य बनने के बाद, दोनों राज्यों के बीच 12 क्षेत्रों पर विवाद रहा है। इसके तहत बोरदुआर, बोकलापारा, ऊपरी ताराबारी, गजांग आरक्षित वन, हाहिम, लंगपीह, नोंगवाह, मातमूर, खानापारा-पिलिंगकाटा, देशदेमोराह ब्लॉक-1 और ब्लॉक-2, खंडुली और रेटचेरा के क्षेत्र हैं।

पहले चरण के समझौते के तहत  हाहिम, गिजांग, ताराबारी, बोकलापारा, खानापारा-पिलिंगकाटा, रेटचेरा क्षेत्र को शामिल किया गया है। इसके तहत 36.79 वर्ग किमी विवादित क्षेत्र में से असम को 18.51 वर्ग किमी और मेघालय को 18.28 वर्ग किमी का पूर्ण नियंत्रण मिलेगा। 

हालांकि अभी लंगपीह जिला का विवाद सुलझना बाकी है। जो कि दोनों राज्यों के बीच विवाद की एक बड़ी प्रमुख वजह है। लंगपीह ब्रिटिश शासन में कामरूप जिले का हिस्सा था। लेकिन आजादी के बाद यह गारो हिल्स और मेघालय का हिस्सा बन गया।असम इसे मिकिर पहाड़ियों का हिस्सा मानता है। हालांकि समझौते के तहत दोनों राज्य इस बात पर सहमत है। बाकी बचे मुद्दों को एक-एक करके सुलझा लिया जाएगा। और ऐसा करने में 6-7 महीने लग सकते हैं।

31 मार्च AFSPA पर बड़ा फैसला

पूर्वोत्तर भारत में स्थानीय लोगों की नाराजगी की बड़ी वजह सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA)-1958 कानून रहा है। जिसके जरिए सुरक्षा बलों के पास असीमित शक्तियां आ जाती है। इसके तहत सुरक्षा बलों को कोई तलाशी अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति मिलती है। यहीं नहीं सुरक्षा बलों की गोली से किसी की मौत हो जाए तो भी उन्हें गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई से संरक्षण प्रदान होता है। किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में यह कानून तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर देते हैं।

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बीते दिसंबर में नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों द्वारा 14 आम नागरिकों की हत्या हो गई। सुरक्षा बलों ने इन लोगों के आतंकी होने के शक में गोलीबारी कर दी थी। उसके बाद लोगों का गुस्सा भड़क गया था।  इस घटना पर  गृह मंत्रीअमित शाह ने संसद ने खेद जताया था। और उन्होंने कहा था कि घटना की पूरी जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है। जिसे 45 के अंदर जांच पूरी करने को कहा गया था।  इसके अलावा सेना ने इस मामले में कार्रवाई भी शुरू कर दी थी। अब AFSPA कानून की समीक्षा के लिए गठित विवेक जोशी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर यह फैसला लिया गया है..

1.अब एक अप्रैल से असम के 23 जिलों को पूर्ण रूप से और 1 जिले में आंशिक रूप से  के कानून को हटाया जा रहा है। इसके पहले पूरे असम में 1990 से कानून लागू था।

2. पूरे मणिपुर (इंफाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर) में साल 2004 से AFSPA लागू है। अब 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में एक अप्रैल से AFSPA नहीं लागू होगा। 

3.पूरे नागालैण्ड में साल 1995 से  AFSPA लागू है। एक अप्रैल से नागालैंड के 7 जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों में AFSPA लागू नहीं होगा। 

4.जबकि त्रिपुरा से 2015 में और मेघालय से 2018 में पूरी तरह से AFSPA हटा लिया गया है। वही अरूणाचल प्रदेश 3 जिलों में और 1 अन्ये जिले के 2 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में फिलहाल कानून लागू है।

पूर्वोत्तर भारत में घट रही हैं उग्रवादी घटनाएं

गृह मंत्रालय का दावा है कि साल 2014 की तुलना में साल 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है। उसी प्रकार इस अवधि में सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मृत्यु में भी क्रमश: 60 फीसदी और 84 फीसदी की कमी आई है।

राज्य साल उग्रवादी घटनाओं में कुल मौतें
असम 2014 306
  2021 29
मणिपुर 2014 55
  2021 27
मेघालय 2014 77
  2021 2
मिजोरम 2014 2
  2021 0
त्रिपुरा 2014 4
  2021 2

स्रोत: South Asia Terrorism Portal

पूर्वोत्तर भारत को लेकर अन्य अहम समझौते

1.जनवरी, 2020 को 50 साल पुराने विवाद को बोडो समझौता के तहत खत्म किया गया
2.सितंबर, 2021 में करबी-आंगलांग समझौता 
3. त्रिपुरा में उग्रवादियों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए अगस्त 2019 में NLFT(SD) समझौता 
4. जनवरी, 2020 में 23 साल पुराने ब्रु-रिआंग शरणार्थी संकट को सुलझाने के लिए समझौता किया गया, जिसके तहत 37000 आंतरिक विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाने के कार्य करने  का दावा गृह मंत्रालय ने किया है।

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