ब्रह्मा के अंशावतार थे जाम्बवान, 27 दिनों तक किया था श्रीकृष्ण के साथ द्वंद्वयुद्ध

Shri krishna: राम अवतार में माना जाता है जाम्बवान को भगवान का प्रधानमंत्री। ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के साथ भगवान के अवतारों की आराधना और सहायता करने के लिए लिया था ऋक्षराज जाम्बवान का अवतार। जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती थीं श्रीकृष्ण की पत्नी। बहुत रोचक है भक्त जाम्बवान की कथा।

ब्रह्मा के अंशावतार थे जाम्बवान, 27 दिनों तक किया था श्रीकृष्ण के साथ द्वंद्वयुद्ध
मुख्य बातें
  • जाम्बवान ने ही कराया था हनुमान जी को शक्ति स्मरण
  • राम अवातार में जाम्बवान थे भगवान के प्रधानमंत्री की भांति
  • जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती थीं भगवान की श्रीकृष्ण की पत्नी

ऋक्षराज जाम्बवान ब्रह्माजी के अंशावतार थें। एक रूप से सृष्टि करते−करते ही दूसरे रूप से भगवान की आराधना और सहायता की जा सके, इसी भाव से वे जाम्बवान के रूप में अवतीर्ण हुए थें। आइये आपको बताते हैं भगवान ब्रह्मा जी के अवतार की ये पौराणिक कथा।

ऋक्षराज के रूप में अवतार का कारण

ऋक्ष के रूप में अवतीर्ण होने का कारण यह था कि उन्होंने रावण को वर दे दिया था कि उसकी मृत्यु नर−वानर आदि के अलावा किसी देव आदि से न हो। अब इसी रूप में रहकर रामजी की सहायता पहुंचायी जा सकती थी। जब भगवान विष्णु ने वामन का अवतार धारणकर बलि की यज्ञशाला में पहुंचे और फिर संकल्प लेने के बाद अपना विराट रूप प्रकट किया तक इन्होंने त्रिलोकी को नापते− नापते इनकी सात प्रदक्षिणा कर लीं। इनकी इस अपूर्व शक्ति और साहस को देखकर बड़े− बड़े मुनि और देवता प्रार्थना करने लगे। राम अवतार में तो मानो ये भगवान के प्रधानमंत्री ही थे। जब हनुमान जी की समुद्र पार जाकर माता सीता का पता लगाने की हिम्मत नहीं पड़ी तो जाम्बवान ने ही हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराया और लंका में जाकर क्या करना चाहिए, इस विषय में सम्मति दी। श्रीराम के चरणाें में प्रेम के कारण उन्हाेंने भगवान से द्वापर युग में आकर पुनः दर्शन देने की प्रार्थना की।

क्यों हुआ था श्रीकृष्ण−जाम्बवान युद्ध

जब द्वापरयुग में श्रीकृष्ण अवतार हुआ उस समय द्वारका के एक यदुवंश सत्राजित ने सूर्य की उपासनाकर स्यमन्तकमणि प्राप्त की। एक दिन स्यमन्तकमणि को पहनकर उसका छोटा भ्राता प्रसेन जंगल में गया हुआ था, वहां एक सिंह ने उसे मार डाला और मणि को छीन लिया। ऋक्षराज जाम्बवान ने सिंह को मारकर वह मणि ले ली। इधर द्वारका में में बात फैल गयी कि श्रीकृष्ण ने मणि की चाहत में प्रसेन का वध कर मणि को लिया होगा। ये सबकुछ श्रीकृष्ण ने अपने भक्त जाम्बवान से मिलने के लिए लीला रूप में रचा था। प्रायश्चित की यात्रा करते हुए श्रीकृष्ण जाम्बवान के घर पहुंचे। जाम्बवान का पुत्र मणि से खेल रहा था। श्रीकृष्ण उस मणि को देखने लगे। ये सब देखकर जाम्बवान को लगा कि वे मणि लेने आए हैं। भगवान को न पहचान जाम्बवान ने युद्ध के लिए ललकारा। भक्त और भगवान का 27 दिनों तक युद्ध चला। जब अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण ने मुष्ठिका प्रहार से जाम्बवान को गिरा दिया तो उनकी समझ आया कि ये तो मेरे प्रभु श्रीराम ही हैं। उन्होंने अपने इष्टदेव को साष्टांग प्रणाम किया। पूजा अर्चना, उपहारों के साथ वो मणि और अपनी कन्या जाम्बवती भी प्रभु चरणों में अर्पित कर दी।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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