पसमांदा मुसलमानों को लेकर सरकार की कोशिश से खुश जमीयत, यूसीसी को बताया वोट बैंक की राजनीति
जमीयत ने आर्थिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुसलमानों के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों की सराहना की है। मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन जमीयत उलेमा हिंद के आम अधिवेशन में आज इस्लामोफोबिया से लेकर समान नागरिक संहिता जैसे तमाम ज्वलंत मुद्दों पर प्रस्ताव पास किए गए।
पसमांदा मुसलमान पर जमीयत का प्रस्ताव
अधिवेशन में पास किए प्रस्ताव हैं: मुसलमानों के खिलाफ घृणास्पद भाषण(इस्लामोफोबिया) पर रोक लगे, पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण मिले, समान नागरिक संहिता का विरोध, इस्लामिक मदरसों की स्वायत्तता बनी रहे, इस्लाम के बारे में गलत अवधारणा न फैसले, पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ मीडिया में गलत टिप्पणियों की आलोचना
पसमांदा मुसलमान पर जमीयत का प्रस्ताव
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हाल ही में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि,
'मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े-लिखे लोगों तक हमें सरकार की नीतियां
लेकर जानी हैं। हमें समाज के सभी अंगों से जुड़ना है और उन्हें अपने साथ जोड़ना है।' और आज जमीयत ने अपने प्रस्ताव में पसमांदा के कल्याण के लिए सरकार के प्रयासों का खुले दिल से स्वागत किया है। साथ ही सरकार से मांग की है कि संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन करके पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण का फायदा दिया जाए। साथ ही मुसलमान बुद्धिजीवियों से जातिगत भेदभाव न करने की अपील भी की है।
कौन हैं पसमांदा मुसलमान?
शेख, सैय्यद, मुगल और पठान के अलावा जो तबका मुसलमानों का है वो पसमांदा कहा जाता है। आबादी के हिसाब से देखें तो पसमांदा की आबादी मुसलमानों में सबसे ज्यादा है लेकिन आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक रूप से सबसे ज्यादा पिछड़े हैं। नाई, लोहार, बढ़ई, कसाई और ऐसे ही तमाम कामगार वर्ग पसमांदा कहे जाते हैं।
इस्लामोफोबिया पर जमीयत का प्रस्ताव
मुसलमानों के खिलाफ समाज में बढ़ती घृणा और हिंसा की घटनाओं को लेकर चिंता जताते हुए भारत सरकार के सामने कुछ मांगे रखी गईं जो इस तरह से हैं:
1.नफरत फैलाने वाले असामाजिक तत्वों और मीडिया पर बिना किसी भेदभाव के कठोर कार्रवाई की जाए। खासकर के सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने वाली एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई और अपराधियों को दंड दिया जाए।
2. विधि आयोग की सिफारिशों के मुताबिक हिंसा के लिए उकसाने वालों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग क़ानून बनाया जाए और सभी अल्पसंख्यकों खासतौर से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक-आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयासों पर रोक लगाई जाए।
3. देश में समरसता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी (National Foundation for Communal Harmony) और नेशनल इंटेगरल काउंसिल (National Integral Council) बनाया जाए।
समान नागरिक संहिता को लेकर जमीयत का प्रस्ताव
जमीयत के प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान बनते वक्त मुसलमानों के पर्सनल लॉ(पारिवारिक कानून) में बदलाव नहीं करने की गारंटी दी गई थी। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकार समान नागरिक संहिता के जरिए मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करना चाहती है। अधिवेशन के जरिए जमीयत ने सरकार को चेतावनी दी है कि कॉमन सिविल कोड लागू होने से न सिर्फ देश की एकता और अखंडता पर असर पड़ेगा बल्कि अराजकता भी फैलेगी।
मदरसों की स्वतंत्रता को लेकर जमीयत का प्रस्ताव
इस्लामिक मदरसों को लेकर एक वर्ग में तमाम गलतफहमियां हैं। ऐसे में जमीयत चाहता है कि मदरसों की वास्तविकता और उपयोगिता के बारे में देश और जनता को बताया जाए और बिगाड़ी गई छवि को ठीक करने के लिए मीडिया में जानकारी दी जाए। इसके अलावा मदरसों के आधुनिकीकरण की कोशिशें की जाएं। प्रस्ताव में ये भी कहा गया सरकार और जांच एजेंसियों को भरोसे में लेकर पूरी पारदर्शिता के साथ आतंकवाद, देश विरोधी गतिविधियों और कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव से मदरसे के छात्रों को बचाने की कोशिश की जाए। जमीयत ने अपने प्रस्ताव में मदरसों के प्रबंधन और रखरखाव साथ ही हिसाब किताब को लेकर सभी कानूनों के पालन की बात कही।
कुल मिलाकर देखा जाए तो जमीयत ने अपने अधिवेशन में मुसलमानों से जुड़े उन सभी सम सामयिक मुद्दों को उठाने की कोशिश की है जिनको लेकर भारत की राजनीति और समाज में चर्चा होती रहती है और मुसलमानों की आलोचना होती है। जमीयत ने एक तरफ मदरसों और पसमांदा की बात करके इस अधिवेशन को तरक्की की तरफ ले जाने की कोशिश भी की वहीं यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
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