श्रीनगर: कश्मीर घाटे में कड़ाके की ठंड जारी है। कश्मीर में बुधवार को रात के दौरान तापमान हिमांक से नीचे दर्ज किया गया। दूसरी तरफ मौसम विभाग ने जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में शनिवार तक शुष्क और ठंडे मौसम का अनुमान लगाया है। सुबह की कड़ाके की ठंड ने बुधवार को ज्यादातर लोगों को घर के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया। चिल्लई कलान के शुरू होने में अभी 18 दिन का वक्त है लेकिन जिस तरह से ठंड की बढ़ रही है उससे लगता है कि यह ठंड लंबे वक्त तक निवासियों को ठुठराने वाली है।
'चिल्लई कलान'
कश्मीर में 'चिल्लई कलान' 40 दिनों की जो कड़ाके की ठंड पड़ती है उसे हीं कहां जाता है। चिल्लई का मतलब होता है चालीस। कश्मीर में 'चिल्लई कलां' नामक कड़ाके की ठंड की 40 दिनों की लंबी अवधि 21 दिसंबर से शुरू होती है और 31 जनवरी को खत्म होती है। इस दौरान भारी बर्फबारी के कारण घाटी के लगभग सभी बड़े और छोटे जलस्रोत जम जाते हैं और कश्मीर के बारहमासी जल जलाशय भर जाते हैं। लोगों को पानी की दिक्कतों का कई बार इस दौरान सामना करना पड़ता है।
सबसे ज्यादा होती है बर्फबारी
यह वह वक्त होता है जब सबसे ज्यादा यहां बर्फबारी होती है। इस अवधि के दौरान गुलमर्ग में सर्दियों वाले खेल भी होते हैं। 40 दिन की भीषण ठंड ‘चिल्लई कलां’ के बाद 20 दिन लंबी ‘चिल्लई खुर्द’ आता है और फिर 10 तक चलने वाली ‘चिल्लई बच्चा’ अवधि आती है। कलां और खुर्द का मतलब क्रमश: बड़े और छोटे से होता है।
घाटी के लोगों की बढ़ती हैं मुश्किलें
दरअसल कड़ाके की ठंड की वजह से कश्मीर के लोगों को कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहली दिक्कत पानी की होती है। चिल्लई कलां के दौरान कश्मीर में पेयजल आपूर्ति काफी प्रभावित होती है। पारा जमाव बिंदु के नीचे चला जाता है जिसमें दबाव से पाइप फट जाती हैं। अगर पेयजल आपूर्ति की पाइपें ठीक रहती हैं तो लोगों के घरों में नलों का पानी जमा रहता है।
कड़ाके की ठंड के बीच बढ़ती है चुनौतियां
इस वक्त कश्मीर के लोगों के लिए पोशाक के लिहाज से भी चुनौती भरा होता है। सबसे ज्यादा मोटे,उनी कपड़ों का इस्तेमाल इसी वक्त होता है। लोगों का पहनावा कड़ाके की ठंड की वजह से बदल जाता है। मोटे ऊनी कपड़ों के साथ फिरन पहनने वालों की तादाद बढ़ जाती है।
इस अवधि के शुरू होने से पहले ही लोग जहां तक हो सकता है सब्जियों,फलों और जरूरी चीजों का कुछ हद तक भंडारण कर लेते हैं। क्योंकि इस दौरान राजमार्ग भी बर्फबारी के दौरान कई दिनो्ं तक बंद हो जाते है। लिहाजा उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
कुल मिलाकर यह 40 दिन का वक्त घाटी के लोगों के लिए कई मायने में मुश्किल और चुनौती भरा होता है लेकिन फिर भी वो इसका सामना करते हैं।
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